यूं तो भारत के थलसेना अध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवणे एक धीर-गंभीर व्यक्तित्व के धनी हैं। गहरी नदी जैसा चुपचाप बहते हुए लक्ष्य की ओर उन्मुख रहना उनका स्वभाव है। देश का 28वां थल सेनाध्यक्ष बनने के बाद उनकी टिप्पणियां सधी और सटीक रही हैं। पूर्व थल सेनाध्यक्ष बिपिन रावत के मुखर व्यवहार के विपरीत वे धीर-गंभीर प्रवृत्ति के व्यक्ति माने जाते हैं। लेकिन पिछले दिनों वे सुर्खियों में रहे। वे नेपाल के राजकीय निमंत्रण पर थे। भारत-नेपाल की सेनाओं में सहयोग की दशकों पुरानी परंपरा के क्रम में थल सेनाध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवणे को नेपाली सेना के मानद सेनाध्यक्ष की उपाधि दी गई। राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने उन्हें मानद उपाधि प्रदान की। निस्संदेह दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग की लंबी विरासत है, लेकिन पिछले दिनों भारत-नेपाल के रिश्तों में जिस तरह की कड़वाहट मुखर हुई, उस दृष्टि से यह सुखद संकेत है। यह भी कि दोनों देशों के रिश्तों पर जमी बर्फ पिघलने लगी है। उन्होंने नेपाल के प्रधानमंत्री से भी मुलाकात की। यह संयोग है या कूटनीतिक निहितार्थ कि उनकी यात्रा के आसपास रॉ प्रमुख ने भी नेपाल की यात्रा की थी।
हाल के महीनों में भारत व नेपाल के बीच रिश्ते मनमुटाव के दौर तक जा पहुंचे थे। जून के महीने में उत्तराखंड के धारचूला से लिपुलेख को जोड़ने वाली सड़क के देश के गृहमंत्री द्वारा उद्घाटन के बाद नेपाल ने आक्रामक प्रतिक्रिया दी थी, जिसके बाद नेपाल ने नया नक्शा जारी करके उसे संसद में पारित करवाया था, जिसमें भारतीय क्षेत्र लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को भी शामिल किया गया था। फिर भारत की सीमा पर चौकी बनाने व टकराव की भी खबरें आईं। तब जनरल नरवणे ने कहा था कि ऐसा नेपाल किसी के इशारे पर कर रहा है। लगता है अब नेपाल को इस सच्चाई का अहसास हो गया है। ऐसे में थलसेना अध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवणे को सौहार्दकारी परंपरा में नेपाली सेना का मानद अध्यक्ष बनाया जाना, दोनों देशों के सुधरते रिश्तों का भी परिचायक है। उल्लेखनीय है कि सबसे पहले यह उपाधि भारतीय सेना के कमांडर-इन-चीफ रहे जनरल के.एम. करिअप्पा को वर्ष 1950 में दी गई थी।
वैसे तो भारत व नेपाली सेना की साझी विरासत का इतिहास पुराना है। ब्रिटिश समय से ही नेपाली नागरिकों की सेना में भर्ती जारी है और भारतीय सेना में बाकायदा गोरखा रेजिमेंट्स है। साथ ही नेपाली जूनियर व सीनियर अफसर को भारत में प्रशिक्षण दिया जाता रहा है। नेपाली नागरिकों को भारतीय सेना में छुट्टी आदि में विशेष सुविधा भी दी जाती है। साथ ही गोरखा रेजिमेंट के अधिकारियों को नेपाली सीखने की अनिवार्यता है। इतना ही नहीं, बिहार व झारखंड पुलिस में भी नेपाली नागरिकों को नौकरी देने की परंपरा रही है।
थल सेनाध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने बीते साल 31 दिसंबर को जनरल बिपिन रावत की जगह ली। इससे पहले वे सेना के उपप्रमुख थे। उनकी नियुक्ति ऐसे समय पर हुई जब एलओसी पर पाक प्रायोजित चरमपंथी गतिविधियां चुनौती बनी हुई थीं तथा चीन ने भारतीय संप्रभुता को चुनौती दी है। जनरल नरवणे ने जून, 1980 में सिख लाइट इन्फैंट्री रेजिमेंट में कमीशन लिया था। वे वर्ष 1976 में नेशनल डिफेंस अकादमी यानी एनडीए के 56वें कोर्स में शामिल थे। नरवणे को उत्तर पूर्व और कश्मीर में चरमपंथी विरोधी अभियानों के संचालन का लंबा अनुभव रहा है। विगत में उन्होंने जम्मू-कश्मीर में एक राष्ट्रीय राइफल्स बटालियन की कमान संभाली थी तथा मेजर जनरल के तौर पर असम राइफल्स के इंस्पेक्टर जनरल भी रहे हैं। वे कोलकाता में उस पूर्वी कमान के प्रमुख भी रह चुके हैं जो चीन से लगने वाली भारत की चार हजार किलोमीटर सीमा की निगरानी करती है।
22 अप्रैल, 1960 में महाराष्ट्र के पुणे में जन्मे जनरल मनोज मुकुंद नरवणे भारतीय सेना के 28वें सेना प्रमुख हैं। उनकी पत्नी वीना नरवणे एक शिक्षिका हैं। उनके परिवार में दो बेटियां हैं। जनरल नरवणे को सेना में अनेक उच्च सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है।
पदभार ग्रहण करने के बाद जनरल नरवणे के उस बयान को सराहा गया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि सेना संवैधानिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुए न्याय, समानता और बंधुत्व के सिद्धांतों का अनुसरण करती है। उन्होंने साथ ही पाक को आईना दिखाता बयान दिया था कि अगर भारतीय संसद चाहती है कि पाक अधिकृत कश्मीर को भारत में होना चाहिए तो इस बारे में आदेश मिलते ही हम उचित कार्रवाई करेंगे। उनके इस बयान पर पाक की तल्ख प्रतिक्रिया सामने आई थी। उनका कहना था कि यह संसदीय संकल्प है कि पूरा कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। उनका मानना रहा है कि भारतीय सेना पहले के मुकाबले बेहतर ढंग से तैयार है और भविष्य की तैयारी के लिए बेहतर प्रयास जारी हैं।