दिनेशराय द्विवेदी
यूं तो हम नगर में रहते थे। लेकिन नगर इतना बड़ा भी नहीं था कि आसानी पैदल नहीं नापा जा सके। नगर से बाहर जाने के लिए बसें और ट्रेन थी। नगर में सामान ढोने का काम हाथ ठेले करते थे। कुछ लोग जिन्हें काम से शहर के बाहर ज्यादा जाना होता था, उनके पास साइकिलें थीं। मोटर साइकिलें बहुत कम थीं। चौपाया वाहन तो इक्का-दुक्का ही थे। हां सरकारी जीपें बहुत थीं। पिताजी अध्यापक थे, अक्सर बाहर पोस्टिंग रहती थी। जैसे-जैसे मैं बड़ा होता गया, सोचता जरूर था कि घर में एक साइकिल तो होनी चाहिए। एक दिन पास के गांव से जो चार किलोमीटर दूर था, किसी बिरादरी वाले के यहां से भोज का निमन्त्रण मिला। दादाजी जा नहीं सकते थे। उन्होंने आदेश दिया कि मैं चला जाऊं। उन दिनों हमारे गांव का लड़का गणपत गुप्ता पढ़ने के लिए हमारे साथ ही रहता था। मैंने दादाजी से कहा कि मैं गणपत को साथ ले जाऊं, तो उन्होंने अनुमति दे दी। भोज के लिए गांव जाने के दो साधन थे। हम पैदल जा सकते थे, या फिर साइकिल से। साइकिल नहीं थी, पर किराए पर ली जा सकती थी। मुझे चलाना आता नहीं था। गणपत को आती थी। मैं बहुत खुश था कि गणपत चलाएगा, मैं कैरियर पर बैठ जाऊंगा। साइकिल लेकर हम कुछ दूर पैदल चले। फिर मैंने गणपत से कहा, ‘तुम साइकिल चलाओ, थोड़ा धीरे रखना मैं उचक कर कैरियर पर बैठ जाउंगा।’
मैं साइकिल तो चला लूंगा लेकिन मुझे पैडल से बैठना नहीं आता। कहीं ऊंची जगह होगी तो वहां पैर रख कर साइकिल पर चढ़ जाऊंगा, गणपत ने कहा। हम आधा किलोमीटर और चले। शहर खत्म हो गया। उसके बाद एक नाला आया। उसकी पुलिया पर पैर रख कर गणपत ने चालक की सीट संभाली। मैं कैरियर पर बैठ गया। गणपत ने पैडल मारा। साइकिल का हैंडल बायीं तरफ मुड़ा और पुलिया की मुंडेर खत्म होने के बाद सीधे नाले में। हमें चोट नहीं लगी। कपड़ों पर मिट्टी पड़ गयी। हाथ पैर भी मिट्टी मे सन गए। वापस जाने में बड़ी दिक्कत थी। शाम के खाने का क्या होगा? हम साइकिल लेकर पैदल चले। एक किलोमीटर बाद एक बावड़ी आई। उसमें हमने अपने कपड़ों से और शरीर से मिट्टी हटायी। फिर आगे चल पड़े। फिर उसी भोज में जाते कुछ परिचित मिले। उन्होंने कहा कि साइकिल होते हुए पैदल क्यों जा रहे हो? हमने अपनी दिक्कत बताई। उनमें से एक ने मुझे बिठा लिया। गणपत कहीं ऊंची जगह देख कर साइकिल पर चढ़ा और भोज वाले गांव पहुंचे। बाद में घर में साइकिल आई। उसके बाद के भी अनेक किस्से हैं। पर वे फिर कभी।
साभार : अनवरत डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम