सीताराम गुप्ता
अक्सर प्रश्न उठता है कि क्या मात्र टैलेंट यानी प्रतिभा अथवा योग्यता के बल पर पूर्ण सफलता संभव है? एक उदाहरण देखिए। एक बार जूते बनाने वाली कंपनी ने अपने विक्रय प्रतिनिधि को अत्यंत पिछड़े इलाके में अपना कारोबार शुरू करने के लिए भेजा। जब वह प्रतिनिधि उस इलाके में पहुंचा तो देखा कि वहां किसी के भी पैरों में जूते नहीं हैं और न ही पूरे इलाके में कोई जूतों की दुकान ही है। इलाका बहुत पिछड़ा हुआ है। वह मायूस हो गया और उसने अपनी कंपनी से कहा कि यहां जूते बिकने की कोई संभावना नहीं है।
कंपनी ने उस विक्रय प्रतिनिधि को वापस बुला लिया और एक दूसरे प्रतिनिधि को वहां भेज दिया। दूसरे प्रतिनिधि ने भी वहां पहुंचते ही देखा कि किसी के भी पैरों में जूते नहीं हैं। उसने फौरन कंपनी से संपर्क किया और कहा कि यहां किसी के भी पैरों में जूते नहीं हैं अतः जूते बिकने की असीम संभावनाएं हैं। कृपया जितना भी स्टॉक है फौरन भेज दो। जीवन के हर क्षेत्र में सफलता के लिए इस प्रकार का सकारात्मक दृष्टिकोण अनिवार्य है।
ह्यूमन रिसोर्सेज ट्रेनर आर. अग्रवाल कहते हैं, सफलता हमारे टैलेंट यानी प्रतिभा अथवा योग्यता नहीं अपितु हमारे दृष्टिकोण पर निर्भर करती है। आपका दृष्टिकोण आपकी सफलता का मानक है। जैसा आपका दृष्टिकोण होगा जीवन में वैसी ही सफलता आपको प्राप्त होगी। जिस क्षेत्र में आपका दृष्टिकोण सकारात्मक होगा उसी क्षेत्र में आप बाजी मार ले जाएंगे। प्रश्न उठता है कि दृष्टिकोण से क्या तात्पर्य है? दृष्टिकोण अर्थात् देखने का ढंग।
हम घटनाओं, स्थितियों और व्यक्तियों को किस दृष्टि से देखते हैं, यह हमारे लिए अधिक महत्वपूर्ण है न कि वे क्या हैं? कोई घटना कैसी है, इसका कोई मापदंड नहीं होता। हर व्यक्ति उसे अलग ढंग से लेता है और जो जिस ढंग से लेता है उसका वैसा ही अच्छा या बुरा प्रभाव उस पर पड़ता है। किसी भी घटना, स्थिति या व्यक्ति के प्रति हमारा दृष्टिकोण या तो सकारात्मक हो सकता है या नकारात्मक।
जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण होना अनिवार्य है। वास्तव में हमारा दृष्टिकोण हमारे विचारों द्वारा संचालित होता है। जैसे विचार वैसा दृष्टिकोण और जैसा दृष्टिकोण वैसी उपलब्धि। विचार ही हमारे जीवन को वास्तविकता प्रदान करते हैं। यदि हमारा ध्यान अभावों पर केंद्रित रहता है तो हम सदैव अभावग्रस्त बने रहते हैं और यदि समृद्धि पर तो समृद्ध होते देर नहीं लगती। एक सफल व्यक्ति वही होता है जो सफलता के विषय में ही सोचता है।
यदि कमजोर बच्चे के बारे में एक अध्यापक अथवा ट्यूटर ये कहे कि ये बच्चा तो बहुत कमजोर है अतः मैं इसे नहीं पढ़ा सकता तो उस अध्यापक अथवा ट्यूटर के दृष्टिकोण के बारे में आप क्या कहेंगे? उसे न सिर्फ एक कमजोर बच्चा पढ़ाने के लिए मिल रहा है अपितु उसे स्वयं को प्रूव करने का मौका भी मिल रहा है जो उसके पेशे के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यदि आप उस बच्चे को पढ़ा पाते हैं तो ये आपके लिए एक विशेष उपलब्धि ही होगी।
कई व्यक्ति किसी भी काम को करने से पहले एक बार उसे करने से मना अवश्य करते हैं चाहे वह कितना ही आसान क्यों न हो जबकि कुछ व्यक्ति कभी किसी काम को मना ही नहीं करते। कुछ लोग किसी विषय में कोई निर्णय ही नहीं ले पाते जबकि कुछ लोग सही समय पर सही निर्णय लेने में देर नहीं लगाते। यह दृष्टिकोण का ही अंतर है। इच्छा-अनिच्छा अथवा निर्णय-अनिर्णय भी एक प्रकार का निर्णय ही है जो हमारे दृष्टिकोण पर ही निर्भर करता है।
एक बार एक उद्योगपति एक विमान से यात्रा कर रहा था। विमान से उतरने के फौरन बाद उसे सीधे एक जरूरी मीटिंग में जाना था। उड़ान के दौरान जब एक विमान परिचारिका उसे भोजन सर्व कर रही थी तो न जाने कैसे उसके क़मीज पर कुछ भोजन गिर गया और उसका क़मीज गंदा हो गया। विमान के कर्मचारियों ने उससे क्षमा-याचना की लेकिन उसे बहुत गुस्सा आ रहा था क्योंकि विमान से उतरने के फौरन बाद उसे एक जरूरी मीटिंग में जाना था। उसके पास दूसरे कपड़ों की व्यवस्था करने का समय नहीं था। उसने फैसला किया कि भविष्य में कभी भी इस एयरलाइन से यात्रा नहीं करूंगा।
अपने गंतव्य पर पहुंचने के बाद जैसे ही वह एयरपोर्ट की इमारत में दाखिल हुआ उस एयरलाइन का एक सीनियर मैनेजर उन्हें अपने कक्ष में ले गया। वहां पर ठीक उसी के साइज की बेहतरीन किस्म की तीन कमीजें रखी हुई थीं। मैनेजर ने उद्योगपति से यात्रा के दौरान हुई घटना के लिए पुनः क्षमा-याचना की और उन्हें नई कमीज बदलने का आग्रह किया। वापसी में न केवल उनकी अपनी कमीज साफ करवाकर लौटा दी गई अपितु शेष दो कमीजें भी उन्हें उपहार के रूप में दे दीं। अब उद्योगपति ने फैसला किया कि भविष्य में जब भी यात्रा करूंगा केवल इसी एयरलाइन से यात्रा करूंगा। संबंध चाहे व्यक्तिगत हों अथवा व्यावसायिक, उनको बनाने में हमारा दृष्टिकोण बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।