हाल ही में जापान का राजनीतिक घटनाक्रम इतनी तेजी से बदला कि बिना किसी अशांति व चुनाव के नेतृत्व परिवर्तन हो गया। राजा की प्रतिष्ठा वाले देश में एक किसान का बेटा सत्ता शीर्ष पर जा बैठा। गली-गली दरवाजों पर दस्तक देकर जापान की संसद में डायट में जगह बनाने के लिए योशिहिदे सुगा ने वाकई बहुत जूते घिसे। मगर, अब वक्त की कसौटी पर घिस-घिस कर वे कुंदन होकर जापान के सत्ताशीर्ष पर दमकने लगे हैं।
ऐसा भी नहीं है कि ‘बिल्ली के भाग में छींका फूटा’ वाली कहावत चरितार्थ हुई हो। हां, यह जरूर है कि बीते अगस्त में बीमारी के कारण जापान में सबसे लंबे समय तक सत्ता में रहने वाले प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने पद छोड़ने की घोषणा कर दी थी। फिर सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी ने बाकायदा उन्हें अपना नेता चुना और बीते बुधवार को जापानी संसद ने उन्हें देश का प्रधानमंत्री चुन लिया।
हालांकि, उम्रदराज योशिहिदे सुगा शिंजो आबे के बेहद करीबी माने जाते हैं। पहली बार जब शिंजो आबे प्रधानमंत्री बने थे तो सुगा उनके साथ थे। फिर वर्ष 2012 में फिर जापान के प्रधानमंत्री बने तो आबे ने सुगा को मुख्य कैबिनेट सेक्रेटरी की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी। वे पर्दे के पीछे राजकाज चलाने में निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं, खासकर जापानी नौकरशाही के प्रबंधन में सुगा निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं।
माना जा रहा है कि जापान के इतिहास में दूसरे उम्रदराज प्रधानमंत्री 71 वर्षीय योशिहिदे सुगा आगे शिंजो आबे की नीतियों को लेकर ही आगे चलेंगे। हालांकि, फिलहाल उन्हें कोरोना संकट से जूझना और अगले साल ओलंपिक जैसे विशाल आयोजन का दायित्व भी निभाना है। ठीक एक साल बाद देश में संसदीय चुनाव भी होने हैं। जापान के उत्तर में स्थित स्नोवी में जन्मे सुगा का जन्म एक किसान परिवार में हुआ। उनके पिता स्ट्रॉबरी किसान थे। प्रारंभिक पढ़ाई के बाद अठारह साल की उम्र में उन्होंने टोक्यो छोड़ दिया और एक कार्डबोर्ड फैक्टरी में काम करने लगे। दरअसल, वे विश्वविद्यालयी शिक्षा के लिए अपना खर्च जुटाना चाहते थे।
निस्संदेह एक साधारण परिवार में जन्म लेकर जापान के सत्ताशीर्ष तक पहुंचने की सुगा की कहानी कठोर परिश्रम और संघर्ष की बानगी है। उन्होंने जापान की उस राजनीति में जगह बनायी जो अभिजात्य वर्ग के दखल के लिए जानी जाती थी। उन्होंने राजनीतिक जीवन की शुरुआत होसेई विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद संसदीय चुनाव मुहिम में भागीदारी करके की। पहले उन्होंने एलडीपी के एक सांसद के सचिव के रूप में देश के राजनीतिक मिजाज को पढ़ा। फिर देश की सक्रिय राजनीति में उतरे। सबसे पहले वे योकोहामा की सिटी काउंसिल के लिए चुने गये। फिर जापानी संसद के लिए पहली बार 1996 में चुने गये। पहले बड़े दायित्व के रूप में वर्ष 2005 में कोउजुमी सरकार में उन्हें आंतरिक मामलों व संचार विभाग का मंत्री बनाया गया। इसके उपरांत पहली बार प्रधानमंत्री बनने पर शिंजो आबे ने उन्हें वरिष्ठ मंत्री का दायित्व सौंपा। उनका आबे के साथ तालमेल लगातार बना रहा और जब शिंजो आबे दूसरी बार 2012 में प्रधानमंत्री बने तो सुगा को मुख्य कैबिनेट सचिव बनाया गया। शिंजो का दायां हाथ माने जाने वाले सुगा को जापान की जटिल नौकरशाही को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी मिली थी। उनका नौकरशाहों के बीच अच्छा-खासा दबदबा रहा है। मीडिया में उन्हें शिंजो सरकार की ‘आयरन वॉल’ पुकारा जाता रहा है। उन्हें जापानी प्रशासन का चेहरा माना जाता रहा है। वे कालांतर 14 सितंबर को लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता चुन लिये गये। फिर सोलह सितंबर को जापानी संसद डायट ने उन्हें अपना प्रधानमंत्री चुन लिया।
बहरहाल, अपने बूते जापान की राजनीति में जगह बनाने वाले सुगा के सामने कोरोना संकट के अलावा जापान की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की जिम्मेदारी भी है। वे कह चुके हैं कि शिंजो आबे की आर्थिक नीतियों ‘आबेनॉमिक्स’ को ही आगे लेकर चलेंगे। उनके सामने शिंजो आबे से पहले लंबे समय तक राजनीतिक रूप से अस्थिर रहे जापान में स्थायित्व बनाये रखने की चुनौती भी होगी। उनका मकसद द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के संविधान में संशोधन का भी, जिससे मौजूदा सुरक्षा चुनौतियों से मुकाबले के लिए सुरक्षातंत्र को मजबूत किया जा सके। साथ ही श्रम सुधार, कृषि सुधार के एजेंडे के साथ स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं में प्राणवायु का संचार करना भी उनका लक्ष्य है। वे देश में पर्यटन संस्कृति को बढ़ावा देना चाहते हैं।
निस्संदेह, सुगा के पास लंबा प्रशासनिक अनुभव है। उन्हें पहले भी पर्दे के पीछे का प्रधानमंत्री कहा जाता रहा है। हालांकि, उन्होंने कहा कि सरकार चलाने में वे शिंजो आबे का मार्गदर्शन लेते रहेंगे, लेकिन वे खुद प्रशासन चलाने में सक्षम हैं। वे दृढ़ व्यक्तित्व वाले राजनेता हैं और पर्दे के पीछे से नौकरशाही को संचालित करते रहे हैं। वे कहते भी रहे हैं कि मैंने शून्य से शुरुआत की है। राजनीति में मेरा कोई परिचित नहीं था।