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लाल किला विस्फोट से उठे कुछ सवाल और सबक

दिल्ली में लाल किला बम विस्फोट मामला दिल दहलाने वाला है। हालांकि जम्मू-कश्मीर पुलिस के यत्नों से फरीदाबाद में विस्फोटक का जखीरा पकड़ा गया जिससे भारी तबाही टल गयी। ऐसी घटनाएं टालने को हमें अपने पुलिस थानों के नेटवर्क को...
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दिल्ली में लाल किला बम विस्फोट मामला दिल दहलाने वाला है। हालांकि जम्मू-कश्मीर पुलिस के यत्नों से फरीदाबाद में विस्फोटक का जखीरा पकड़ा गया जिससे भारी तबाही टल गयी। ऐसी घटनाएं टालने को हमें अपने पुलिस थानों के नेटवर्क को और मज़बूत करना होगा क्योंकि वे हमारे सुरक्षा तंत्र की मुख्य धुरी हैं। वहीं राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर राजनीतिक एकजुटता भी ज़रूरी है।

नई दिल्ली में हुए कार विस्फोट को कुछ अर्सा बीत चुका है। काफी वक्त बीत चुका और जांच ने रफ़्तार एवं दिशा पकड़ ली है। हमले संबंधी अलग-अलग थ्योरियों को समझाने और खुलासे करने के लिए इतना समय पर्याप्त है। लाल किले के गेट के पास हुआ विस्फोट दहलाने वाला और धृष्टता रोंगटे खड़े करने वाली थी।

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जो बात एकदम दिमाग में आती है वह यह है कि योजनाएं लंबे समय से बन रही होंगी; प्रोफेशनल्स (अधिकतर डॉक्टर) को इसे अंजाम देने के लिए मानसिक रूप से तैयार किया गया, और इसमें काफी समय लगता है। उच्च-स्तरीय विस्फोटक बनाने के लिए सामग्री इकट्ठा की गई, आसानी से उपलब्ध कैमिकल से बम बनाने का बढ़िया प्रशिक्षण दिया गया (यह फिल्मों में दिखाए जाने वाले काम जितना आसान नहीं,बल्कि इसके लिए बहुत कौशल चाहिए)। टार्गेट चुने गए, रेकी की गई और एक साथ कई इलाकों में बड़े पैमाने के हमले करने के लिए इस जाल के सब धागों के साथ सामंजस्य स्थापित किया गया।

ऐसा लगता है कि इस बार हमारी पुलिस और खुफिया एजेंसियां पूरी तरह बेखबर थीं और एक बहुत खतरनाक दुश्मन संगठन के मंसूबों और गतिविधियों को पकड़ नहीं पाईं। यह सिर्फ जम्मू एवं कश्मीर पुलिस की कारगुजारी रही, जिसने भारी मात्रा में अमोनियम नाइट्रेट पकड़ा, जिससे आगे चलकर आतंकवादियों के एक जटिल और बड़े नेटवर्क का भंडाफोड़ हुआ और दिल्ली एवं अन्य जगहों पर तबाही मचाने की उनकी नापाक योजना का पता चल सका।

ऐसा लगता है कि ये आतंकवादी तुर्की और पाकिस्तान में बैठे हैंडलर्स के साथ समन्वय बनाकर काम कर रहे थे। गतिविधियों का केंद्र फरीदाबाद स्थित अल फलाह मेडिकल कॉलेज लगता है, और कथित तौर पर इसका उद्गम स्थल कश्मीर है। कतिपय कारणों से, प्रशासन में बैठे लोग जम्मू-कश्मीर से स्थानीय आतंकवादियों का सफाया कर दिए जाने का दावा करते रहते हैं। जाहिर है, इस हमले से उनके दावे की कलई खुल गई और इस सिलसिले में आयेदिन जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, इत्यादि में नए खुलासे, नई धरपकड़ एवं गिरफ्तारियां हो रही हैं। जाहिर है, पकड़े गए लोगों से पूछताछ ही इन हिरासतों और बरामदगी का आधार है।

मुझे इस बात की चिंता है कि प्रथम विचार से लेकर लोगों को प्रशिक्षित करने तक, सामग्री खरीदना, टार्गेट चुनना और लोगों एवं सामान की तैनाती, यह एक मुश्किल और समय लेने वाला काम है, जिसे अत्यंत गुपचुप तरीके से अंजाम दिया गया। ज़्यादातर काम पूरे हो चुके थे और आखिरी दांव चलने को था, लेकिन हम बहुत बड़ी तबाही देखने से बच गए... यह हमारी खुशनसीबी रही। हालांकि, यहां गौरतलब कि शुरुआती कामयाबी जम्मू-कश्मीर पुलिस के यत्नों से मिली, जिसने फरीदाबाद में विस्फोटक सामग्री का एक बड़ा जखीरा ढूंढ़ निकाला। बढ़िया पुलिस कारगुजारी यही होती है।

अगला स्वाभाविक प्रश्न जो साफ तौर पर उठता है वह यह कि : इस किस्म के कितने आतंकी समूह अभी भी सक्रिय हैं? उनकी संरचना और संभावित निशाने क्या हैं? इन कुकृत्यों के असली गुनहगार कौन हैं? उम्मीद है, ये प्रश्न हमारे देश के संबंधित अधिकारियों और संगठनों को चौबीसों घंटे काम करते रहने के लिए प्रेरित करेंगे, क्योंकि दूसरा कोई विकल्प समझ में नहीं आता। आज, जब स्थितियां और भी ज़्यादा नाजुक हैं, तो ऐसे और हमले होने की आश्ांका हो सकती है। हमें न सिर्फ अंदरूनी तौर पर पैदा हुए आतंकियों पर नज़र रखनी है, बल्कि अपने पड़ोसियों पर भी निगाह रखनी होगी।

पाकिस्तानी हमेशा से सक्रिय रहे हैं, और अमेरिकी मदद से उनकी दुम ऊपर को उठी लगती है; हमें याद रखना चाहिए कि जम्मू-कश्मीर और कुछ दूसरे राज्यों में भी, सतह के ऊपर और भूमिगत रहकर काम करने वाला उनका नेटवर्क हमेशा से रहा है। अखबार उत्तर भारत के राज्यों में हो रही विस्फोटक सामग्री की बरामदगी की खबरों से भरे पड़े हैं। इसमें बांग्लादेश से साथ बनी नई दुश्मनी और उसके साथ हमारी काफी नाजुक और खुली सीमा को जोड़ दें... तो समस्या कई गुना बढ़ जाती है। अब हमें उत्तर-पूर्व में भी अवश्य सावधान रहना होगा।

मीडिया में जो नया और हैरान करने वाला फैक्टर सामने आया है, वह है तुर्की की भागीदारी। वह जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थक रहा है, लेकिन यह पहली बार है जब यह आरोप लगा है कि आतंकवादी अपने हैंडलरों से मिलने तुर्की गए थे... इस पर ध्यानपूर्वक नज़र रखने की ज़रूरत है।

मैंने जानबूझकर चीनी फैक्टर के बारे में बात करने से परहेज किया है क्योंकि हमेशा की तरह वे पड़ताल से परे और रहस्यमयी हैं, लेकिन निश्चित रूप से यह बात हमारे लिए फायदेमंद नहीं। तो, कुल मिलाकर, जांच अब तक अच्छे नतीजे दे रही है और एक बड़े नेटवर्क का पर्दाफाश हुआ है। समय रहते फरीदाबाद में विस्फोटक सामग्री की बरामदगी होने से हम एक बड़ी त्रासदी से बच गए हैं। हालांकि, अंदरूनी तौर पर साफ-साफ बोलना होगा, और अपनी कमियों को स्वीकार करना चाहिए। यह केवल उच्चतम राजनीतिक एवं पेशेवर स्तर पर की गई दखल से ही संभव है। देश की सुरक्षा से ज़्यादा ज़रूरी कुछ नहीं और इसे सुरक्षित रखने के लिए समय पर और बेहतरीन पुलिस कारगुजारी व खुफिया जानकारी से बेहतर कोई तरीका नहीं है।

हमारे जैसे जटिल एवं विशाल मुल्क को हमेशा अंदरूनी और बाहरी, दोनों तरफ से, चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। इनका सामना राजनयिक और सैन्य, दोनों तरह से मज़बूत बनने से हो पाएगा, क्योंकि सबसे बढ़िया जीत वो होती है जिसके लिए लड़ाई की ज़रूरत न पड़े। सन त्ज़ू ने कहा था : ‘अगर आप दुश्मन को जानते हैं और खुद को भी जानते हैं, तो आपको सौ लड़ाइयों के नतीजे से डरने की ज़रूरत नहीं है। अगर आप खुद को जानते हैं लेकिन दुश्मन को नहीं, तो हर जीत के साथ आपको हार भी मिलेगी। अगर आप न तो दुश्मन को जानते हैं और न ही खुद को, तो आप हर लड़ाई में हार जाएंगे’।

इस ताकत का केंद्रबिंदु थाना स्तर की बढ़िया पुलिस कारगुजारी और खुफिया जानकारी है, जो हम इकट्ठा कर सकते हैं, यानी कार्रवाई करने को प्राप्त पक्की खुफिया जानकारी।

अंदरूनी तौर पर, हमें अपने पुलिस थानों के विशाल नेटवर्क को और मज़बूत करना होगा क्योंकि वे हमारे सुरक्षा तंत्र की धुरी हैं। हमने पंजाब और जम्मू-कश्मीर में देखा है कि आतंकवाद का सबसे अच्छा जवाब एक सक्रिय और प्रेरित पुलिस बल है, क्योंकि वे धरतीपुत्र होते हैं और उन्हें अपने इलाके की भूमिगत गतिविधियों और कारकुनों का बखूबी पता होता है। जरूरत उन्हें प्रेरित करने की है, न कि उन्हें नीचा दिखाने की - यही एक अच्छे नेतृत्व की निशानी है।

यदि कहीं भाड़े के विदेशी लड़ाके हैं भी, तो भी उनकी शिनाख्त स्थानीय लोग और पुलिस आसानी से कर लेते हैं, क्योंकि वे अपने इलाके के चप्पे-चप्पे को और स्थानीय लोगों को पहचानते हैं। इसके लिए पुलिस और राजनीतिक नेतृत्व, दोनों के बीच तालमेल बनाने की ज़रूरत है।

राष्ट्रीय सुरक्षा की ज़रूरतें सबसे महत्वपूर्ण हैं, और यह आवश्यकता सभी दलों को इस स्थिति का सामना करने के तरीकों पर राष्ट्रीय सहमति कायम करने लायक बनाए।

लेखक मणिपुर के राज्यपाल एवं जम्मू-कश्मीर में पुलिस महानिदेशक रहे हैं।

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