आलोक पुराणिक
मुर्गों की लड़ाई में आनंद तलाशने वाले बहुत बुजुर्ग मिल जायेंगे, जो किस्से बता सकते हैं कि किस तरह से मुर्गा-लड़ंत में रोमांच आता था और दर्शक मजे लेते थे। मुर्गा-लड़ंत का शौक पालने वाले कम रह गये हैं, अब मुर्गा-लड़ंत का रोमांच उन बहसों में आ सकता है, जो इन दिनों सुबह से शाम तक तमाम टीवी न्यूज चैनलों में चला करती हैं। पेट्रोल के भावों पर कुछ मुर्गा-विमर्श इस प्रकार है :- पक्षी मुरगा यानी सरकारी मुर्गा प्रवक्ता यानी समु
देखिये, कच्चे तेल की ग्लोबल कीमतें बढ़ रही हैं तो हमें भी कीमतें बढ़ानी पड़ेंगी।
विपक्ष मुर्गा प्रवक्ता—विमु
अच्छा, पर जब कच्चे तेल की ग्लोबल कीमतें कम हो रही थीं, तब तो आप कीमतें न घटा रहे थे, तो रकम बटोरकर खजाने में रख रहे थे।
समु—विपक्ष को ग्लोबल मुद्दों की समझ नहीं है।
विमु—समझ तो आपको आ गयी है कि जब हिमाचल में आप चुनाव हार लिये हैं। पब्लिक का डंडा पड़ता है, तो समझ सब आ जाती है। दस रुपये कमी करने के लिए दो चुनाव हारे, तो पचास रुपये की कमी के लिए दस चुनाव हारेंगे आप तो समझ में आ जायेगी।
समु—भौं भौं भौं भौं
विमु—भौं भौं भौं भौं
टीवी एंकर—देखिये आप राजनीतिक दलों के प्रवक्ता हैं, उन जैसे ही बरताव कीजिये। यह सब क्या कर रहे हैं।
समु—अगर विपक्षी दलों को इतना दर्द है, तो वो उन राज्यों में पेट्रोल डीजल पर टैक्स कम कर दें, जिन राज्यों में उनकी सरकार है।
विमु—सब हम ही करेंगे, तो आपको जनता ने क्यों चुना है।
समु—जिन्ना, पटेल, सांप्रदायिकता।
विमु—जिन्ना, पटेल, सांप्रदायिकता।
टीवी एंकर—देखिये हम बात कर रहे हैं पेट्रोल के भावों पर आप कहां से जिन्ना को ले आये। जिन्ना का क्या ताल्लुक पेट्रोल से।
समु—जिन्ना ने देश तोड़ा था, हमारी विपक्षी पार्टी जिन्ना की समर्थक है।
विमु—जिन्ना की मजार पर चादर चढ़ाने का काम आपके नेता ने किया था।
टीवी एंकर—देखिये आप पेट्रोल के बढ़े हुए भावों पर चादर न डालें, उस पर बात करें। मैं समु से पूछता हूं कि क्या आप ऐसा आश्वासन दे सकते हैं कि आने वाले समय में पेट्रोल-डीजल के भाव फिर न बढ़ाये जायेंगे और विमु आप क्या विपक्षी शासित राज्यों में पेट्रोल डीजल के भाव कम करने आश्वासन देते हैं।
विमु—जब हमारी सरकार थी 1947 में तब दिल्ली में पेट्रोल के भाव 27 पैसे प्रति लीटर था, अब सौ रुपये से प्रति लीटर के भाव हैं, सरकार बताये कि 27 पैसे प्रति लीटर के भाव कब आयेंगे।
टीवी एंकर—यह क्या बात हुई मगर 1947 के भाव 2021 में कैसे आ सकते हैं।
विमु—बिका हुआ मीडिया, बिका हुआ मीडिया, सरकार का फेवर कर रहा है। हमें 1947 के हमारी सरकार के भाव चाहिए।
समु—खौं खौं खौं खौं।
विमु—खौं खौं खौं खौं
टीवी एंकर— अब आपसे निवेदन है कि समस्या के हल की तरफ चलें, उस पर कुछ ठोस बात करें।
समु—खौं खौं
विमु—भौं भौं
आम मुर्गा अपने अपने आप से कह रहा है—सरकारी और विपक्षी मुर्गों की बात बेकार जो आज सरकारी मुर्गा बनकर आया है, ये कुछ समय पहले तक विपक्ष में था, इधर के उधर होते रहते हैं, होता जाता कुछ नहीं है। आखिर में कटना हमें ही है।