
दीपक कुमार शर्मा
ऋग्वेद में वर्णित है कि जल आनंद का स्रोत है, ऊर्जा का भंडार है। कल्याणकारी है। पवित्र करने वाला है और मां की तरह पोषक तथा जीवनदाता है। दरअसल, जल इतना महत्वपूर्ण है कि इसके बिना जीवन की कल्पना संभव नहीं। साथ ही पीने योग्य जल धरती पर अत्यल्प मात्रा में उपलब्ध है। ऐसे में दुनियाभर में पानी व्यर्थ न बहाने व साथ ही बचाने की कोशिशें जारी हैं। जन जागरूकता अभियान सरकारों व अन्य संस्थाओं के स्तर पर जारी है। इसी के तहत जल बचत, संचय व पुन: उपयोग करने जैसे लक्ष्य तय किये जाते हैं। इसी क्रम में हम जल दिवस मनाते हैं। लेकिन इन सबके बावजूद जल संरक्षण का संदेश बार-बार देना पड़ता है। देखा जाये तो जीडीपी, रोजगार सब व्यर्थ हैं, अगर पानी नहीं होगा।
हम पानी पीते तो हैं, मगर पानी के बारे में जानने की कोशिश नहीं करते। हालांकि जल संरक्षण एक नागरिक के तौर पर भी हमारा दायित्व है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51ए (छ) के मुताबिक, हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है- वनों, झीलों, नदियों और वन्य जीवन सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना।
जीवन की मूलभूत आवश्यकता पानी है। मानव विकास के लिए पेयजल की सुनिश्चित उपलब्धता बहुत महत्वपूर्ण होती है। देश के लिए पानी खासी अहमियत रखता है। दुनिया की कुल आबादी में से लगभग 18 प्रतिशत लोग और 15 प्रतिशत मवेशी भारत में रहते हैं। लेकिन दुनिया की कुल जमीन में से हमारे पास मात्र 2 प्रतिशत भूमि और मीठे पानी के 4 प्रतिशत संसाधन हैं। अनुमानों के अनुसार, साल 1951 में मीठे पानी की प्रति व्यक्ति वार्षिक उपलब्धता 5177 घन मीटर थी जो 2019 में लगभग 1368 घन मीटर रह गयी, जो 2025 में घटकर संभवतः 1293 घन मीटर रह जाएगी। यदि यह गिरावट जारी रही तो वर्ष 2050 में मीठे पानी की प्रति व्यक्ति उपलब्धता घटकर 1140 घन मीटर ही रह जाएगी जो कि चिंता का विषय है।
देश की आबादी बढ़ने से पानी की खपत भी बढ़ रही है। पानी भू-जल के रूप में 28 प्रतिशत ही बचा है, जबकि पीने का पानी, खेती, उद्योग, सब में भू-जल का उपयोग कर रहे हैं। असल में जब तक निर्वहन और पुनर्भरण में संतुलन नहीं होगा, तब तक देश पानीदार नहीं बन सकता। भारत सरकार जल संरक्षण को लेकर प्रयास कर रही है। चाहे जल जीवन मिशन हो, अमृत सरोवर योजना हो या अटल भू-जल योजना हो। पंद्रह अगस्त, 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जल जीवन मिशन की घोषणा की थी। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य वर्ष 2024 तक हर घर को नल से जल देना है। उस समय देश में सिर्फ 16.66 प्रतिशत घरों को नल से जल मिल रहा था। इसकी तुलना में अब 59.10 प्रतिशत घरों को नल से जल मिल रहा है। पानी के संचय को लेकर अमृत सरोवर योजना के माध्यम से 15 अगस्त, 2023 तक देश भर के प्रत्येक जिले में 75-75 तालाबों का निर्माण किया जाएगा। नए तालाब खोदे जाएंगे और पुराने पुनर्जीवित किये जायेंगे। इसी दिशा में एक अन्य कदम अटल भू-जल योजना है। इसके तहत देश के 7 राज्यों गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में भू-जल प्रबंधन में सुधार करना है।
यहां सवाल उठता है कि क्या सिर्फ सरकार के प्रयासों से जल संरक्षण हो पाएगा। सच तो यह है कि जब तक जन सहभागिता नहीं होगी, जल संरक्षण नहीं होगा। पानी हम सबकी साझी संपत्ति है। पानी के ऊपर सबका समान अधिकार है तो हमें जल संरक्षण की दिशा में मिलकर काम करना होगा ताकि आने वाली पीढ़ी को जल संकट का सामना न करना पड़े। नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, 2030 में कई शहर ऐसे होंगे जहां जमीन के नीचे का पानी खत्म हो चुका होगा। देश की 6 प्रतिशत जीडीपी दर पानी न होने के कारण प्रभावित होगी। अब भी देश के महानगर चेन्नई में 2000 फुट गहरे तक पानी नहीं है।
पानी को लेकर हमारी मन:स्थिति अलग-अलग है। कोई भी इंसान बोतलबंद पानी का दुरुपयोग नहीं करता है। लेकिन नल के जल की हम बेपरवाह होकर बर्बादी करते हैं क्योंकि हमें लगता है पानी मुफ्त में मिल रहा है। जबकि सच यह है कि सरकार हमें हमारे ही पैसों से पानी उपलब्ध करवाती है। प्रत्येक नागरिक का यह दायित्व बनता है कि वह पानी बचाकर व संचित कर सरकारी पैसे का सदुपयोग करे। नल से जल का सही इस्तेमाल करे। ऐसे में सभी स्तरों पर जल संरक्षण की 5 आर रणनीति कारगर साबित हो सकती है। पहली, रिड्यूस यानी जल का व्यय कम करना, रियूज यानी जल का पुनः प्रयोग करना, रिचार्ज यानी वर्षा जल का संचय करना। रिसाइकिल यानी जल का पुनर्चक्रण करना। रिस्पेक्ट अर्थात् जल का आदर करना।
सरकारी योजनाओं के साथ ही इस रणनीति को अपनाकर हरेक नागरिक की जल संरक्षण में सहभागिता सुनिश्चित हो सकेगी। मौजूदा व आने वाली पीढ़ियों को जल मिलता रहे, इसके लिए जल संरक्षण की दिशा में सबको मिलकर काम करना होगा।
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