शमीम शर्मा
मुझे अपना समय याद है कि जब कभी होस्टल जाया करती तो मां या पापा कहते थे कि पहुंच कर चिट्ठी लिखना। इसके बाद जब घरों में फोन लगे तो यह सुनने में आता कि पहुंच कर फोन करना। चिट्ठियां तो खैर कभी की पुराने बस्ते में चली गईं। रही बात फोन करने की तो उसका रूप बदल गया है। अब तो घर से निकलते ही मोबाइल कॉल आ जाती हैं कि कहां पहुंचे। इस तरह पूरे रास्ते कई-कई बार फोन आते हैं। और तंग आकर फोन सुनने वाले को कहना ही पड़ता है कि आप पहुंचने दोगे तो ही कहीं पहुंचेंगे और ज्यादा फोन रास्ते-रास्ते करोगे तो कहीं ऐसा न हो कि सीधे ऊपर ही पहुंच जायें।
पुराने समय में जब कोई मोबाइल और दूरसंचार सेवाएं नहीं थीं तो ‘हिचकी’ को ही मिस्ड कॉल माना जाता था। खूब अंदाजे लगाये जाते कि किसके नाम की हिचकी है। कॉलेज के एक वरिष्ठ प्रोफेसर को एक लड़की बोली- सर मैंने आपको मिस कॉल दी थी, आपने देखी भी नहीं तो जवाब मिला- बेटी! हमारे टाइम में तो मिसेज कॉल आया करती और सारे काम छोड़ कर कॉल उठाया करता। अब ये मिस कॉल किस बला का नाम है? एक सेमिनार में अमेरिकी ने बताया कि मोबाइल का आविष्कार उनके मुल्क में हुआ है। जापानी वैज्ञानिक बोला कि सिम की खोज उनके देश में हुई है। चीनी बोला कि रिचार्ज वाउचर की खोज हमने की है। तब भारतीय वैज्ञानिक ने बताया कि मिस कॉल की उपज हमारे दिमाग की है।
हिचकी के बारे में तो अब यही कहा जायेगा—
अब उनकी मोहब्बत में वो बात नहीं,
अब हिचकियां लाती कोई पैगाम नहीं।
मुंडेर पर कौआ बोलता तो भी सबको यकीन हुआ करता कि यह मेहमान के आने की पूर्व सूचना है। पर अब तो मेहमान आने से पहले ही आने की सूचना तथा खाने की आइटम को व्हाट्सएप कर देता है और कौए बेचारे निठल्ले हो गये हैं। आजकल के बच्चे बताते हैं कि कौए अब स्मार्ट हो गये हैं। वे गर्मियों में पत्थर डाल-डाल कर पानी ऊपर नहीं लाते बल्कि स्ट्रॉ लेकर चलते हैं। वैसे आज की युवा पीढ़ी भी खूब स्मार्ट हो गई है। अगर उनकी सीधी अंगुली से घी न निकले तो वे टेढ़ी करने में अपनी एनर्जी नहीं गंवाते बल्कि घी पिघलाने में ज्यादा यकीन रखते हैं।
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एक बर की बात है अक रामप्यारी नैं किसी किताब मैं पढ लिया अक जिंदगी तो चार दिनां की है। फेर वा अपणे घरआले नत्थू तै धमकाते होये बोल्ली- जिंदगी चार दिनां की है अर तन्नै मोबाइल रिचार्ज 84 दिनां का क्यां खात्तर करवाया है?