अरुण नैथानी
बनारस की बेटी शिवांगी सिंह अब दुनिया का अाधुनिकतम युद्धक विमान राफेल उड़ाने को बेताब है। फ्लाइट लेफ्टिनेंट शिवांगी सिंह का चयन राफेल उड़ाने वाली पहली भारतीय महिला पायलट के रूप में हुआ है। फिलहाल वह अंबाला में कन्वर्जन ट्रेनिंग ले रही है। इस साल भारतीय वायुसेना में शामिल बहुचर्चित राफेल उड़ाना हर भारतीय वायुसेना के पायलट का सपना है। सही मायने में यह शिवांगी के सपने का साकार होना भी है।
बचपन से ही भारतीय वायुसेना में अपना दमखम दिखाने को बेताब शिवांगी उड़ते जहाजों को देखकर अक्सर कहा करती थी कि एक दिन में भी जहाज उड़ाऊंगी। वायुसेना अधिकारियों की वर्दी उसे सम्मोहित करती थी। घर वालों के लाख मना करने पर पतंग उड़ाती थी, आकाश से बातें करना उसे लुभाता था। बचपन में बड़ी जिद्दी थी। घर वालों के मना करने पर भी दीवाली पर खतरनाक किस्म के पटाखों से खेलती थी। उसका एक सपना था वायुसेना में दमखम दिखाना। एक बार स्कूली दिनों में नाना जी उसे दिल्ली में एयरबेस व वायुसेना का म्यूजियम दिखाने क्या ले गये, उसके संकल्प को पंख लग गये। सोते-जगाते एक ही रट कि वायुसेना में जाना है।
कहते हैं कि जब हम किसी लक्ष्य के संकल्प के साथ सारी ऊर्जा उसी पर केंद्रित कर देते हैं तो सारी कायनात भी उसी लक्ष्य को पूरा करने के लिये मदद करती है। बनारस के सेंट मेरी कानवेंट स्कूल से प्रारंभिक पढ़ाई पूरी करने के बाद वह माध्यमिक पढ़ाई के लिये सेंट जोजेफ स्कूल गई। बीएससी की पढ़ाई के लिये बीएचयू गई तो उसने एनसीसी की एयर विंग को चुना। लक्ष्य सिर्फ वायुसेना में पायलट बनना जो था।
वर्ष 2016 में वायुसेना में चुने जाने के बाद 2017 में शिवांगी ने भारतीय वायुसेना में कमीशन लिया। सेना में कर्नल रहे उसके नाना ने उसे समझाया कि वह नॉन फ्लाइट स्ट्रीम का चयन करे, पायलट बनने का विकल्प छोड़ दे। शिवांगी ने तब नाना को जवाब दिया, ‘सदा से मेरा सपना पायलट बनने का रहा है। नॉन फ्लाइट स्ट्रीम चुनने से बेहतर है कि मैं वायुसेना छोड़ दू्ं।’
पुरानी कहावत भी है कि ‘होनहार बिरवान के होत चिकने पात’ यानी प्रतिभाओं के लक्षण बचपन में दिखने लगते हैं। उसके दादा कहते हैं कि वह बचपन से ही फुर्र-फुर्र कहती उछलती थी। तब हम नहीं समझते थे। अब लगता है कि उसकी मेहनत-किस्मत हवाई जहाज फुर्र से उड़ाने में छिपी है।
शिवांगी बहुआयामी प्रतिभा की धनी रही है। वह पढ़ाई में तो अव्वल रही ही है, साथ ही खेलों में दमखम दिखाती रही है। वह बास्केटबॉल खेल में राष्ट्रीय स्पर्धाओं में शामिल रही। एथलेिटक्स में भी पदक जीते हैं। वह गिटार भी अच्छा बजा लेती है।
यूं तो शिवांगी के पिता कामेश्वर सिंह का ट्रंासपोर्ट का कारोबार है, मगर सेना से सेवानिवृत्त कर्नल नाना उसके प्रेरणा स्रोत रहे हैं। उसे सेना की वर्दी लुभाती रही है। शिवांगी का घर भी कैंटोनमेंट एरिया में होने के कारण फौजियों को देखकर देशसेवा का जज्बा उसके मन में हिलोरे लेता रहा है। यही वजह है कि आज वह भारतीय सेना में अपने सपने साकार कर सकी है। कमाल की बात है कि वह पहले तो सबसे पुराने मिग-21 बाइसन उड़ा रही थी और आज दुनिया के सबसे उन्नत युद्धक विमान को उड़ा रही है।
बचपन से ही शिवांगी में बड़ा दमखम था और अपने लक्ष्य के प्रति वह खासी जिद्दी थी। जो ठान लेती, घर वालों से पूरा करवाकर ही मानती। वही जिद आज उसे इस मुकाम पर ले आयी है कि वह कुछ दिनों में लद्दाख में जारी तनाव के बीच एलएसी पर देश की सीमाओं की पहरेदारी करती नजर आयेगी। अगर दुश्मन ने आंख दिखायी तो गरजेगी और बरसेगी भी। उसकी मां सीमा सिंह बेटी की कामयाबी से खुश तो है लेकिन कहती है कि पायलट बनने के साथ-साथ तमाम खतरे भी जुड़े होते हैं मगर हम इस बात से खुश हैं कि बेटी ने हमारा, बनारस और देश का नाम रोशन किया है। उसमें कोई तो गुण होगा जो देश के बहुचर्चित और अत्याधुनिक विमान उड़ाने का जिम्मा उसे मिला है।
अपने जुनून को पूरा करने के लिये वह कालेज के दिनों में सुबह छह बजे घर से निकलती और रात को आठ बजे घर पहुंचती थी। खेल, एनसीसी, पढ़ाई और प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करती थी। तब जो रूढ़िवादी लोग उसके बाहर रहने पर सवाल उठाते थे, आज उसकी कामयाबी पर फोन करके बधाई दे रहे हैं, जिससे मां खासी प्रफुल्लित है।
शिवांगी की कामयाबी महिला सशक्तीकरण की मिसाल है। ऐसे वक्त में जब तीनों सेनाओं में महिलाओं के लिये स्थायी कमीशन के द्वार खुले हैं, उसकी कामयाबी लाखों लड़कियों को अपने सपने साकार करने को प्रेरित करेगी। उसने बताया कि मध्यवर्गीय परिवारों से भी शिखर की कामयाबी का रास्ता निकलता है। महिला फाइटर पायलट के दूसरे बैच की शिवांगी जब कन्वर्जन ट्रेनिंग के बाद राफेल उड़ायेगी तो अपने सपने को साकार करने के साथ ही लाखों बेटियों को अपना आसमान चुनने का सपना दिखायेगी।