जींद के अश्वनी ‘जिज्ञासु’ने अन्न की बर्बादी रोकने की एक अनूठी मुहिम बच्चों के बीच शुरू की है। उनकी संस्था बच्चों को संस्कार दे रही है कि वे अपनी प्लेट में उतना ही भोजन लें, जितना खा सकते हैं। उनके लिए प्रेरक नारा है ‘उतना लो थाली में व्यर्थ न जाए नाली में।’
जब देश में करोड़ों लोग कुपोषण व भूख के संकट से जूझते हैं, तो विडंबना यह है कि देश में हर साल 92,000 करोड़ रुपये मूल्य का भोजन बर्बाद हो जाता है, जिसकी मात्रा 7.8 करोड़ टन से ज्यादा है। भोजन की यह बर्बादी मुख्य रूप से घरों व सार्वजनिक समारोहों में होती है। वहीं अन्य कारक गलत ढंग से भंडारण, कोल्ड चेन सिस्टम व परिवहन की कमी भी हैं। वर्ष 2022 के आंकड़े के अनुसार देश में हर साल प्रति व्यक्ति 55 किलो खाना बर्बाद हुआ। एक गणित के अनुसार वर्ष 2022 में जो 92 हजार करोड़ रुपये का अनाज बर्बाद हुआ, उसकी कीमत में सौ करोड़ लागत वाली 920 वंदे भारत ट्रेन तैयार हो सकती थी। संयुक्त राष्ट्र की फूड वेस्ट इंडेक्स रिपोर्ट-2021 की रिपोर्ट बताती है कि भारत में सबसे ज्यादा खाने की बर्बादी घरों में होती है।
यूं तो हम शादी व अन्य सार्वजनिक समारोहों में लोगों को प्लेट में भर-भर कर भोजन लेने और बचे खाने को कचरे में डालते देखते हैं। लेकिन हम निष्क्रिय रहते हैं। लेकिन इससे व्यथित, हरियाणा के जींद में एक शख्स ने अन्न का सम्मान करने की एक अनूठी मुहिम बच्चों के बीच स्कूलों से शुरू की है। ‘वन अर्थ, वन फैमिली’ संस्था बच्चों को संस्कार दे रही है कि वे उतना ही भोजन लें, जितना खा सकते हैं, जिसके सूत्रधार हैं संस्था के अश्वनी ‘जिज्ञासु’। बच्चों के लिए उनका प्रेरक नारा है ‘उतना लो थाली में व्यर्थ न जाए नाली में।’ अश्वनी इस नारे को लेकर जन-जागरण अभियान में जुटे हैं। वे जानते हैं कि कल के राष्ट्र निर्माता बच्चों को पहले संस्कार दिए जाने चाहिए। हो सकता है कि बड़ों को समझाने में, उनके ईगो को ठेस पहुंचे। अत: उन्होंने इस मुहिम को स्कूल-कॉलेजों से शुरू किया है। वे शादी-पार्टी, जागरण व विशेष उत्सवों पर बच्चों को संकल्प कराते हैं कि ‘मैं अन्न का अपमान नहीं करता।’
‘जिज्ञासु’ कहते हैं कि एक शादी समारोह में यदि एक हजार लोगों का खाना बनता है तो कम-से-कम डेढ़ से दो सौ लोगों का खाना बर्बाद होता है। ये अन्न का अपमान है। हम नहीं सोचते कि इस अन्न को पैदा करने में किसान ने कितना खून-पसीना एक किया है। जिस देश में करोड़ों लोग भूखे सोते हों, वहां इतने भोजन की बर्बादी अपराध जैसा है। एक भूखे को ही रोटी की कीमत का अहसास होता है।
समाज में जागरूकता के लिए कई अभियानों से जुड़े अश्वनी ने इस मुहिम को सिरे चढ़ाने के लिए ‘वन अर्थ, वन फैमिली’ नामक ट्रस्ट बनाया है। जीवनपर्यंत अविवाहित रहकर समाज में बदलाव की मुहिम में जुटे अश्वनी इससे पहले गरीबों को भोजन देने के ‘रोटी बैंक’ ‘पहली रोटी गाय माता की’… जैसे अभियानों से जुड़े रहे हैं। ‘पहली रोटी गाय माता की’ अभियान के तहत वे स्कूलों में जागरूकता अभियान चलाते रहे हैं। हर रोज जो हजारों रोटियां बच्चे उत्साह से जुटाते रहे हैं, उन्हें गोशालाओं में भेज देते। वे मानते हैं कि दूसरों के दुख को अपना समझना ही परमात्मा को अनुभव करने की अनुभूति है। अभियान का मकसद यह भी रहा है कि बच्चों में देने के भाव का विकास हो सके।
मुहिम में ‘रोटी बैंक’ तहत सेवा कार्य जींद, पानीपत, टोहाना व चंडीगढ़ के स्कूलों में लंबे समय तक चला। कालांतर ‘विचार मंच’ के तहत यह एक मुहिम बन गई। संस्था चंडीगढ़ व हरियाणा के अन्य शहरों में शादी या अन्य उत्सव के बाद बचे खाने को एकत्र कर उसे जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाती रही है। समारोह में बचे व्यंजन जब जरूरतमंद लोगों तक पहुंचते तो उनके लिये यह उत्सव का हिस्सा बनने जैसा होता। चेहरों पर सुकून के भाव उभरते।
अब ‘रोटी बैक’ मुहिम के बाद जिज्ञासु ने ‘सेल्फी ऑफ देखो मेरी थाली साफ’ मुहिम को गति दी। वे बच्चों से संकल्प करवाते हैं कि अन्न ही जीवन है और हम इसका अपमान नहीं करते। इसमें विवाह व अन्य समारोहों में बच्चों की थाली चेक होती है। फिर बच्चा सेल्फी लेकर बोलता ‘देखो मेरी खाने की थाली साफ है’। अधिक बच्चों को प्रेरित करने हेतु बच्चे की सेल्फी नाम व मोबाइल नंबर के साथ सोशल मीडिया पर डाली जाती है। फिर बच्चों के नाम ड्रा में शामिल करके उन्हें सम्मानित किया जाता है। उत्साहित बच्चे कहते दिखते हैं ‘अंकल देखो, अन्न का एक भी दाना वेस्ट नहीं किया। मुझे भी ड्रा में शामिल कीजिए।’
मुहिम के तहत शादी व अन्य पार्टियों में बच्चों द्वारा तीन बैनर्स लगाये जाते हैं। लोगों को जागरूक करने के लिए पहले में लिखा होता ‘उतना लो थाली में, व्यर्थ न जाए नाली में।’ दूसरे बैनर्स में लिखा होता ‘सेल्फी ऑफ देखो मेरी थाली साफ है।’ तीसरे बैनर में लिखा होता है ‘अन्न ही ब्रह्म, अन्न ही जीवन।’
इसके अलावा सोशल मीडिया में चिपके रहने वाले बच्चों को भारतीय संस्कारों से जोड़ने की मुहिम भी अश्वनी चला रहे हैं। दैनिक जीवन में भारतीय संस्कारों वाली 25 आदतों से जोड़कर सफल प्रतिभागियों को पुरस्कार दिए जाते हैं। ये दैनिक जीवन की आदतें उन्हें अच्छा इंसान बनाने हेतु प्रेरित करती हैं। बच्चे इन आदतों को अपनाने वाले फॉर्म पर अभिभावक से हस्ताक्षर करवाते हैं। अब कुछ बच्चे भी शिक्षक बन गए हैं। आदत के सौ दिन पूरा होने पर स्कूल में बेस्ट किड्स अवार्ड से सम्मानित किया जाता है। बच्चों को सिखाया जाता है कि ‘जरूरतमंद के चेहरे पर मुस्कान लाना ही सच्ची पूजा है’।

