जयंतीलाल भंडारी
हाल ही में 11 मई को वाणिज्य विभाग द्वारा आयात में हो रही लगातार वृद्धि के मद्देनजर आत्मनिर्भर भारत कार्यक्रम के तहत उत्पादों के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के तरीकों के संबंध में विभिन्न उद्योगों के प्रतिनिधियों के साथ विशेष बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में ऐसे प्राथमिकता वाले उत्पादों की पहचान की गई है, जिनके आयात में पिछले कुछ महीनों में तेज इजाफा हुआ है। इन उत्पादों में प्रमुखतया विद्युत उपकरण, धातुएं, रसायन, पेट्रोलियम उत्पाद, कीमती और अर्ध-कीमती रत्न, बैटरी, प्लास्टिक और वस्त्र शामिल हैं। ये ऐसे उत्पाद हैं, जिनके उत्पादन को बढ़ावा देकर आयात में कमी की जा सकती है और निर्यात में वृद्धि की जा सकती है।
हाल ही में वाणिज्य मंत्रालय द्वारा प्रकाशित विदेशी व्यापार के आंकड़ों के अनुसार, पिछले वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान देश का व्यापार घाटा चिंताजनक रूप से बढ़कर अब तक का सर्वाधिक 192 अरब डॉलर रहा है। जहां पिछले वित्त वर्ष में भारत का उत्पाद निर्यात पहली बार 40 फीसदी की वृद्धि के साथ करीब 418 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया, वहीं भारत का उत्पाद आयात पिछले वित्त वर्ष में 610 अरब डॉलर की रिकाॅर्ड ऊंचाई पर रहा जो पूर्ववर्ती वित्त वर्ष 2020-21 के 394.44 अरब डॉलर की तुलना में 54.71 प्रतिशत बढ़ा है। ऐसे बढ़े हुए व्यापार घाटे के कारण देश में आर्थिक-वित्तीय मुश्किलें बढ़ गई हैं।
एक ऐसे समय में जब पिछले वित्त वर्ष 2021-22 में भारत का उत्पाद निर्यात 400 अरब डॉलर के लक्ष्य को पार करते हुए 418 अरब डॉलर के ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच गया है तब व्यापार घाटा बढ़ना चुनौतीपूर्ण है। अतएव ऐसे में घरेलू उत्पादन बढ़ाकर आयात में कमी व निर्यात में वृद्धि जरूरी है। भारत के तेजी से बढ़ते निर्यातों का ग्राफ इस बात का प्रतीक है कि भारतीय उत्पादों की मांग दुनियाभर में बढ़ रही है। यदि हम उत्पाद निर्यात के नए आंकड़ों का विश्लेषण करें तो पाते हैं कि खासतौर पर पेट्रोलियम उत्पाद, इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद, इंजीनियरिंग उत्पाद, चमड़ा, कॉफी, प्लास्टिक, रेडीमेड परिधान, मांस एवं दुग्ध उत्पाद, समुद्री उत्पाद और तंबाकू की निर्यात वृद्धि में अहम भूमिका रही है। साथ ही उच्च इंजीनियरिंग निर्यातों, परिधान और वस्त्र निर्यात आदि से संकेत मिलते हैं कि यह धारणा धीरे-धीरे बदल रही है कि भारत प्राथमिक जिंसों का ही बड़ा निर्यातक है। अब भारत द्वारा अधिक से अधिक मूल्यवर्धित और उच्च गुणवत्ता वाले सामानों का निर्यात भी किया जा रहा है।
नि:संदेह देश में आयात-निर्यात से संबंधित प्रमुख उत्पादों का उत्पादन बढ़ाकर और निर्यात अनुकूलताओं का लाभ लेकर निर्यात में वृद्धि की जा सकती है। इस समय देश की निर्यात अनुकूलताओं में कई बातें शामिल हैं। देश में कॉर्पोरेट कर दर को घटाया गया है। कई अहम क्षेत्रों में पीएलआई योजनाओं ने पहली बार कच्चे माल के बजाय उत्पादन को बढ़ावा दिया है। श्रम कानूनों को सरल किया गया है। एमएसएमई की परिभाषा को सुधारा गया है ताकि कई मध्यम आकार की इकाइयों को भी एमएसएमई का लाभ मिले। इन कदमों से घरेलू उद्योग का आकार बढ़ाने में मदद मिली और विदेशी व्यापार व निर्यात भी बढ़े। ढांचागत व्यवस्था में किए गए सुधार से भारत को वैश्विक मूल्य शृंखला से जुड़ने में मदद मिली और भारत में सामान बनाने वाले निर्यातकों के लिए सस्ते श्रम की तलाश में देश के दूरदराज के भागों तक पहुंचने में सरलता हुई है। दुनियाभर में तेजी से बदलती हुई यह धारणा भी लाभप्रद रही है कि भारत उत्पाद निर्यात के लिहाज से एक बढि़या प्लेटफॉर्म है।
इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि देश से बढ़ते व्यापार घाटे को कम करने के लिए आयात से संबंधित प्रमुख उत्पादों के घरेलू उत्पादन बढ़ाकर चीन से व्यापार घाटा कम किया जा सकता है। पिछले 6-7 वर्षों से चीन से व्यापार घाटा घटाने के लिए सरकार द्वारा कई रणनीतिक कदम उठाए गए हैं। इनमें टिक टॉक सहित विभिन्न चीनी एप पर प्रतिबंध, चीनी सामान के आयात पर नियंत्रण, कई चीनी सामानों पर शुल्क वृद्धि, सरकारी विभागों में चीनी उत्पादों की जगह यथासंभव स्थानीय उत्पादों के उपयोग की प्रवृत्ति जैसे जो विभिन्न प्रयास किए गए हैं उन्हें और गतिशील किया जाना होगा। वर्ष 2019 और 2020 में चीन से तनाव के कारण देशभर में चीनी सामान का जोरदार बहिष्कार दिखाई दिया था। स्थानीय उत्पादों के उपयोग की लहर का जोरदार असर था। ऐसे में भारत में चीन से होने वाले आयात में बड़ी गिरावट आने लगी थी। लेकिन वर्ष 2021-22 में चीन से विदेश व्यापार घाटा तेजी से बढ़ा है। ऐसे में चीन से आयात किए जाने वाले घरेलू उत्पादों के निर्माण को विशेष प्रोत्साहन देकर चीन से आयात को नियंत्रित किया जा सकता है।
यह जरूरी है कि घरेलू उत्पादन वृद्धि और स्थानीय उद्योगों को प्रोत्साहन के साथ आत्मनिर्भर भारत आभियान को तेजी से आगे बढ़ाकर व्यापार घाटे में कमी की जाए। इस ओर भी ध्यान दिया जाना होगा कि देश में अभी भी दवाई उद्योग, मोबाइल उद्योग, चिकित्सा उपकरण उद्योग, वाहन उद्योग तथा इलेक्ट्रिक जैसे कई उद्योग बहुत कुछ चीन से आयातित माल पर आधारित हैं। ऐसे में चीन के कच्चे माल का विकल्प तैयार करने के लिए पिछले डेढ़ वर्ष में सरकार ने प्रोडक्शन लिंक्ड इनसेंटिव (पीएलआई) स्कीम के तहत 13 उद्योगों को करीब दो लाख करोड़ रुपए आवंटन के साथ प्रोत्साहन सुनिश्चित किए हैं, उनके पूर्ण उपयोग पर रणनीतिक रूप से आगे बढ़ना होगा। यद्यपि देश के कुछ उत्पादक चीन के कच्चे माल का विकल्प बनाने में सफल भी हुए हैं, परन्तु अभी इन क्षेत्रों में अतिरिक्त प्रयासों से चीन तथा अन्य देशों से आयात को कम किए जाने की जरूरत बनी हुई है।
चूंकि देश के कुल आयात में रक्षा सामग्रियों के आयात पर बड़ा खर्च होता है, अतएव देश में रक्षा निर्माण सेक्टर में आत्मनिर्भरता और रक्षा निर्यात को बढ़ाने के अधिक प्रयास जरूरी हैं। इस परिप्रेक्ष्य में उल्लेखनीय है कि रक्षा मंत्रालय द्वारा 21 अगस्त, 2020 से लेकर 7 अप्रैल, 2022 तक स्थानीय स्तर पर निर्मित होने वाले 310 विभिन्न प्रमुख रक्षा उपकरण और रक्षा प्लेट फॉर्म संबंधी तीन सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची जारी की गई हैं। ये ऐसे स्वदेशी रक्षा उत्पाद होंगे, जो अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप होंगे। इससे प्रौद्योगिकी और विनिर्माण क्षमताओं में नए निवेश को आकर्षित करके स्वदेशी अनुसंधान व विकास (आरएंडडी) की क्षमता को भी प्रोत्साहित किया जा सकेगा।
देश में वैश्विक जरूरतों के अनुरूप घरेलू उत्पाद बढ़ाकर नए चिन्हित देशों में उत्पाद निर्यात बढ़ाने के साथ-साथ सेवा निर्यात भी तेजी से बढ़ाना जरूरी है। यद्यपि सेवा निर्यात वर्ष 2021-22 में 250 अरब डॉलर के स्तर को पार कर गया है, जिसमें पूर्ववर्ती साल के मुकाबले 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, लेकिन डब्ल्यूटीओ के अनुमानों के विश्लेषण से संकेत मिलता है कि भारत की सेवा निर्यात वृद्धि वर्ष 2021-22 में वैश्विक औसत से कम रही है। चीन ने वर्ष 2021-22 में सेवा निर्यात में 40.5 प्रतिशत की तेजी दर्ज की है।
लेखक आर्थिक विषयों के जानकार हैं।