शेर सिंह सांगवान
भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) द्वारा 1970 से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर गेहूं और चावल की असीमित खरीद नीति; अनाज में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए किसानों हेतु एक निर्णायक प्रोत्साहन साबित हुई है। पंजाब और हरियाणा में गेहूं की एमएसपी पर खरीद पिछले 50 वर्षों से हो रही है तथा मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश पिछले 10 वर्षों में शामिल हुए हैं, जिससे उनके गेहूं उत्पादन में तेजी आई है। इसी तरह, चावल की खरीद मुख्य रूप से पंजाब, आंध्र प्रदेश और हरियाणा में की की जा रही है, लेकिन हाल के वर्षों में, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ व उड़ीसा जैसे अन्य राज्य भी इसमें शामिल हुए हैं, जिसके परिणाम स्वरूप इसका उत्पादन तेजी से हुआ है। निरंतर एमएसपी पर खरीद के कारण चावल और गेहूं का वर्तमान स्टॉक उनके आवश्यक बफर के दोगुने से अधिक है, जबकि हम लगभग एक लाख करोड़ रुपये के दाल और तिलहन आयात कर रहे है।
भारत सरकार ने खरीफ 2017 से दालों और तिलहन की खरीद भी एक अभूतपूर्व मात्रा में की है। यह खरीद उनकी एमएसपी पर मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत नेफेड के माध्यम से राजस्थान, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में की गई है। इनमें से अधिकांश राज्य गेहूं और चावल की खरीद के लाभार्थी नहीं रहे हैं। इन राज्यों के किसानों ने इन फसलों के तहत रकबा बढ़ाया है।
पिछले कुछ वर्षों में दालों की एमएसपी पर बढ़ी हुई खरीद के परिणामस्वरूप ही 2018-19 के बाद से उनका आयात नगण्य है, जो 2016-17 में लगभग 6 मिलियन टन था। लेकिन तिलहन उत्पादन में अब तक वृद्धि पर्याप्त नहीं है क्योंकि अभी भी हम लगभग 15 मिलियन टन वनस्पति तेल और बीज का आयात कर रहे हैं, जिसकी लागत का लगभग 70000 करोड़ रुपये है। अभी भी पंजाब, हरियाणा और यूपी के गेहूं उत्पादक राज्यों में किसान तिलहन के तहत कम क्षेत्र आवंटित कर रहे हैं, हालांकि, सरसों से उनकी आय गेहूं से अधिक है। उदाहरण के लिए, दो साल पहले, गेहूं उत्पादन में अग्रणी कैथल जिले के एक किसान ने बताया कि वे गेहूं की तुलना में सरसों से अधिक आय प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन एमएसपी पर सरसों खरीद की अनिश्चितता और उसकी कीमतों में अधिक अस्थिरता उन्हें वापस मोड़ रही है। उल्लेखनीय है कि कैथल जिले में हरियाणा में सरसों की सबसे अधिक पैदावार 11 क्विंटल प्रति एकड़ है और वर्ष 2021 में एमएसपी पर इसका सकल मूल्य रु. 51150 है, इसकी तुलना में गेहूं से 20 क्विंटल औसत उपज पर 39500 रुपये है। इसके अलावा गेहूं के मुक़ाबले सरसों के उत्पादन की लागत कम होगी। पंजाब के कुछ जिलों में 12 क्विंटल प्रति एकड़ तक की उपज की सूचना दी गई है। यदि एमएसपी पर सरसों की खरीद को असीमित कर दिया जाता है तो उसका मूल्य जोखिम शून्य हो जायेगा, तब कई किसान अधिक आय के लिए गेहूं से सरसों के उत्पादन में बदलाव करेंगे। स्मरण रहे कि वर्तमान में सरसों की एमएसपी पर खरीद, उत्पादन का 25 प्रतिशत या 25 क्विंटल प्रति किसान है जब कि गेहूं की खरीद असीमित है।
एमएसपी पर खरीद सार्वजनिक वितरण प्रणाली और खाद्य सुरक्षा के लिए अनाज स्टॉक बढ़ाने के लिए एफसीआई द्वारा शुरू की गई थी। एफसीआई का लाभ कमाने का कोई मकसद नहीं है यही कारण है कि आज उस पर लगभग 3 लाख करोड़ की देनदारी है। यह सोचा गया था कि नेफेड द्वारा तिलहन और दालों की 25 प्रतिशत खरीद के बाद, बाजार मूल्य में वृद्धि होगी परंतु 2018-19 में 8 राज्यों के हमारे अध्ययन के दौरान पता चला कि ऐसा नहीं हुआ है। इसलिए, अनाज और दालों में आत्मनिर्भरता हासिल करने के बाद, भारत सरकार को तिलहन उत्पादन को बढ़ावा देने और अपने आयात में प्रति वर्ष लगभग एक लाख करोड़ रुपये बचाने के लिए कुछ वर्षों के लिए 100 प्रतिशत तिलहन और 50 प्रतिशत दालों की खरीद करनी चाहिए। नतीजतन, सिंचित क्षेत्रों के कई किसान गेहूं से सरसों में में बदलाव कर सकते हैं। रोहतक के एक अधिवक्ता किसान जो 2016-17 में कम कृषि कीमतों से तंग आ गया था, एक संकेत दिया— ‘मेरे दोस्त के पास ऑस्ट्रेलिया में एक खेत है और उसकी सारी उपज न्यूनतम गारंटीकृत कीमतों पर खेत से उठाई जाती है। लेकिन उसे बुवाई के मौसम से पहले हर साल अपनी उत्पादन योजना को मंजूरी सरकार से लेनी होती है।’ इसका मतलब है कि कृषि उत्पादन अकेले किसानों के लिए नहीं बल्कि समग्र रूप से समाज, देश की आवश्यकता के लिए है। यह संभव हो सकता है, यदि बुवाई के मौसम से पहले, 100 प्रतिशत तिलहन और 50 प्रतिशत दालों के लिए एमएसपी पर खरीद का आश्वासन दिया जाये; तथा गेहूं और धान की खरीद को युक्तिसंगत बनाया जाये यानी सभी 86 प्रतिशत छोटे किसानों को पूरी खरीदारी का वादा। इस नीति के परिणामस्वरूप उर्वरकों और पानी का अधिकतम उपयोग होगा ।