शमीम शर्मा
एक इंसानी प्रजाति की सोच कुत्ते की दुम की तरह हमेशा टेढ़ा ही सोचती है। कुत्ते की इसी आदत पर बहस छिड़ गई और एक सज्जन ने डार्विन की विकास थ्योरी पर असहमति जताते हुए यह निष्कर्ष निकाल दिया कि संभवत: आदमी का विकास बंदर से नहीं हुआ है। वह आदमी इस बात पर अड़ गया था कि यह प्रजाति बंदर से नहीं कुत्ते से विकसित हुई है। उसका तर्क था कि सर्वाधिक आसानी से पालतू बनाये जा सकने वाला जंगली जानवर कुत्ता ही है। प्राचीन समय से कुत्ते और आदमी का साथ बहुत गहरा है। आज भी कुत्ता किसान की बैलगाड़ी के नीचे हमेशा साथ चलता है। एक बार तो मुझे उसकी बात में दम दिखने लगा ।
आज की दुनिया में एक प्रजाति को देखकर लगने लगा है कि कहीं उनका विकास कुत्ते से तो नहीं हुआ है, विकास क्रम में शायद उसकी पूंछ गायब हो गई है पर दुम हिलाने की कला में वह आज भी पारंगत है। चाटने की कला में वह सबसे आगे है। कुत्ते किसी का तलवा तो नहीं चाटते पर इस प्रजाति ने तो तलवे भी नहीं छोड़े।
अपने इर्दगिर्द हमें ऐसे अनेक मिल जाते हैं जो कुत्ते से भी ज्यादा भौंक सकते हैं। कुत्तों को तो फिर भी दुत्कार कर, धमका कर चुप करवाया जा सकता है पर भौंकता हुआ शख्स किसी के काबू नहीं आता। अनेक लोगों की घ्राण क्षमता कुत्तों से भी तेज़ है। अड़ोस-पड़ोस के घरों के भीतर तक का सूंघ लेते हैं। सूंघने वाले तो फाइलों में नोट बरसाने के रास्तों को भी सूंघ लेते हैं।
ऐसे भी दीवाने हैं जो कुत्तों को स्वामीभक्ति में भी पछाड़ देते हैं, खासकर नेताओं के भक्तगण और कॉर्पोरेट जगत के चमचे। कहते हैं कि प्रकृति ने कुत्तों को सुनने की अदृश्य शक्ति दी है। कुछ प्राणी भी अपने बॉस के मन की अदृश्य तरंगों से सुन लेते हैं। जिस तरह कुछ कुत्ते न घर के होते हैं न घाट के, वैसे ही इस प्रजाति के लोगों की भी यही अवस्था है।
कुछ कुत्ते बाइक सवारों या कारों के पीछे यूं दौड़ते हैं मानो अगले चौराहे पर दो झापड़ मार कर झपट लेंगे। और बंदे तो झपट्टामार संस्कृति में माहिर है ही।
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एक बर की बात है अक एक गधा किसी कुत्ते के सामीं रोते होये बोल्या- मेरा मालिक कसाई तै भी बाद मेरी पिटाई करै है। कुत्ता उसतै समझाते होये बोल्या- तो फेर तै भाज क्यूं नीं जात्ता? गधा बोल्या- बात या है अक जद मालिक की एक सुथरी सी छोरी पढाई नीं करै तो उसका बाब्बू कहवै- एक दिन किसी गधे गैल तेरा ब्याह कर द्यूंगा। इसे उम्मीद नैं जकड़ राख्या हूं।