इंसान व जानवर के बीच प्यार-दोस्ती की तलाश : The Dainik Tribune

इंसान व जानवर के बीच प्यार-दोस्ती की तलाश

इंसान व जानवर के बीच प्यार-दोस्ती की तलाश

क्षमा शर्मा

क्षमा शर्मा

क्षमा शर्मा

जब हाथी के बच्चे रघु और उसके पालनकर्ता बोमन व बैल्ली तथा इस डाक्यूमेंट्री को सबसे अच्छी डाक्यूमेंट्री फिल्म पर ऑस्कर पुरस्कार मिलने की खबर पढ़ी तो सहसा ही अनेक वे बातें याद आने लगीं जो देखी, पढ़ी, सुनी और खुद अनुभव की हैं। हालांकि, बोमन और बैल्ली को ऑस्कर के बारे में कुछ पता नहीं है। लेकिन वे इस बात पर खुश भी हैं कि फिल्म बनाने वालों की मेहनत सफल हुई। उनका कहना है कि जंगल में उनका जीवन अनाथ हाथियों को पालते ही बीता है। अक्सर हाथी बिजली के करंट से मर जाते हैं। ऐसे में यदि कोई हाथी का बच्चा अनाथ हो गया तो उसकी जिम्मेदारी किसी परिवार को सौंप दी जाती है। बोमन और बैल्ली का परिवार ऐसा ही है।

पिछले दिनों एलिफेंट विस्परर्स की तरह का ही एक विदेशी वीडियो देखा था। जिसमें एक स्त्री ने हाथी के बच्चे को बचाया था। वह उसके घर में ही रहता है। महिला रसोई में हो तो रसोई में खड़ा रहता है। सोफे पर बैठे तो सोफे पर उसके साथ बैठना चाहता है। अब बेचारा सोफा उसका वजन कहां तक संभाले।

देहरादून के अख्तर इमाम ने अपनी पांच करोड़ की सम्पत्ति हाथियों के नाम कर दी थी। उनका कहना था कि हाथियों की देखभाल करने वाला कोई नहीं है। जंगल खत्म हो रहे हैं। वे शहरों की तरफ आते हैं और किसी न किसी कारण बुरी तरह से घायल हो जाते हैं या मारे जाते हैं। अख्तर अब इस दुनिया में नहीं हैं, मगर उनकी बात कितनी सही है। आज भी सैकड़ों की संख्या में हाथी बिजली के करंट लगने से मर जाते हैं। एलिफेंट विस्परर्स के शिशु हाथी रघु के माता-पिता भी इसी तरह मारे गए थे।

एक तेज़ आवाज़ सुनाई दे रही है-मम्मी... मम्मी। फिर दूर से आवाज़ आती है- आ रही हूं बेटा। खाना तो बना लूं। मम्मी-मम्मी पुकारने वाला कोई बच्चा नहीं लाल, पीले रंग का एक बड़ा तोता है। यह पीढ़े पर बैठकर आवाज़ लगा रहा है।

एक अन्य वीडियो में एक लड़की अपनी मां से बात कर रही है। वह कह रही है कि आपके जाने से गुड्डू बहुत उदास है। उससे बातें कर लो। तब मोबाइल स्क्रीन से आवाज़ उभरती है- गुड्डू बेटा क्या हाल है। यह एक कुत्ता है। पहले तो वह गर्दन इधर-उधर हिलाकर आवाज़ की दिशा को पकड़ने का प्रयास करता है। फिर समझ में आते ही मुंह ऊपर उठाकर जोर-जोर से रोने लगता है।

मनुष्य और पशु-पक्षियों की दोस्ती शायद उतनी ही पुरानी है, जितनी कि सृष्टि। अपने घोड़े, हाथियों, गायों, बकरियों, कुत्तों, तोतों, बंदरों, भालुओं आदि को लोग जब घर में पालते हैं तो वे घर के सदस्य हो जाते हैं। पेटा जैसी संस्थाएं इस बात की शिनाख्त कभी करती ही नहीं हैं। वे जानवर पालने को उन पर अत्याचार बताती हैं। जबकि बहुत-सी घटनाओं में यदि पालतू जानवर को उसके मालिक से अलग कर दिया जाए तो वह खाना-पीना तक छोड़ देते हैं। कई बार तो उनकी मृत्यु तक हो जाती है।

बहुत से लोग मांसाहारी जानवरों को पालने का शौक भी रखते हैं। इस संदर्भ में मशहूर लेखक रस्किन बान्ड की एक अखबार में छपी कथा याद आ रही है। उन्होंने लिखा था कि उनके दादा जी को एक शिशु बाघ जंगल में मिला था। वह उसे घर ले आए। वहीं पलने लगा। दादा जी से उसकी दोस्ती भी बहुत थी। जब थोड़ा बड़ा हुआ तो उनके साथ घूमने जाने लगा। धीरे-धीरे उसमें शिकार की प्रवृत्ति उभरने लगी। अब रास्ते में कोई भी जानवर दिखता तो वह उस पर हमला बोलने की कोशिश करता। जो लोग अपने कुत्तों को घुमाते थे, वे डरने लगे। इससे रस्किन बान्ड जी के दादा जी को चिंता हुई। अभी तो जानवरों पर हमला बोल रहा है, हो सकता है कल किसी आदमी पर ही बोल दे। इसलिए एक दिन वह उसे लखनऊ चिड़ियाघर में छोड़ आए, पर उसकी याद हमेशा आती। अगले साल उनका लखनऊ जाना हुआ तो वह बाघ के पिंजरे के पास पहुंचे। और हाथ डालकर उसकी गर्दन सहलाने लगे। वह उनका हाथ चाटने लगा। तभी बाघ की देखभाल करने वाला आ पहुंचा। वह बोला- साहब, यह आप वाला बाघ नहीं है। वह तो पिछले साल मलेरिया से मर गया। अब चौंकने की बारी दादा जी की थी। उन्होंने तत्काल हाथ बाहर निकाला। घबराहट भी हो ही रही होगी।

ऐसे किस्से हमारे जनजीवन में बहुतायत से मिलते हैं, जिनमें किसी न किसी पशु-पक्षी से मनुष्य की दोस्ती का कथन होता है। चकित करने वाले किस्से होते हैं। लोक कथाओं, लोकगीतों में इनकी भरमार है। विदेश में एक आदमी एक बार नदी के किनारे टहल रहा था। वहां उसे एक घायल मगरमच्छ मिला। वह उसे घर ले आया। वहां उसने उसका इलाज किया। इतने दिनों तक वह इस आदमी के घर में ही रहा। जब वह पूरी तरह से स्वस्थ हो गया तो यह आदमी उसे नदी में ही छोड़ आया। लेकिन आश्चर्य कि अगले दिन जब इस आदमी ने अपने घर का दरवाजा खोला तो मगरमच्छ वरांडे में सो रहा था।

छत्तीसगढ़ में एक महिला ने रामश्री नाम की मैना पाल रखी थी। महिला अपने खेतों पर काम करने जाती थी। जब उसके घर में कोई मेहमान आता तो मैना उड़कर महिला को सूचना देने जाती थी।

बहुत साल पहले ग्रेटर कैलाश भाग एक के बस स्टैंड पर एक ढाबा था। वहां के मालिक ने एक मैना और एक तोता पाले हुए थे। जब भी कोई ग्राहक आता तो तोता पूछता- रोटी-सोटी खाओगे। फिर मैना कहती लो जी। खा भी लो। वह बसों के हार्न की आवाज़ भी निकालती।

इस लेखिका के जीवन में जानवरों के बहुत से प्रसंग जुड़े हैं। गांव के जीवन में वैसे भी ऐसे प्रसंगों की भरमार होती है। बचपन में मां जब खेत पर काम करने जाती थी तो खेत की मेंड़ पर लिटा देती थी। तब घर का पालतू कुत्ता शेरा भी साथ जाता था। वह अपना पंजा ऊपर रखकर तब तक बैठा रहता था, जब तक कि मां वापस नहीं आ जाती थी। आखिर उसे कैसे पता था कि मां बच्ची को उसके हवाले कर गई है। और जब तक वह नहीं लौटती, बच्ची की रक्षा करना उसका फर्ज है। यह किस्सा मां बार-बार सुनाती थी। कई बार मालिक की रक्षा करने में जानवर अपनी जान तक गंवा देते हैं। ऐसे किस्से अक्सर छपते रहते हैं।

कई बार लगता है कि इस धरती पर मनुष्य से इतर जितने भी प्रकार का जीवन है, उनका उतना ही अधिकार है। मगर मनुष्य ने सब कुछ अपने कब्जे में कर रखा है। यह मनुष्यवादी राजनीति का ही परिणाम है कि जानवरों की सुनने वाला कोई नहीं। वे दोस्त बन जाएं तो आप पर अपार विश्वास करते हैं, मगर बहुत बार धोखा मिल सकता है। इंसानों का दायित्व है कि वे जानवरों के जीवन की भी रक्षा करें।

लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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