
आरती राव
गोरा शासन भी भारत के प्राणों से खुलकर खेला था,/ तुम कहते विद्रोह! अरे सन सत्तावन बलि का मेला था,/ आजादी की बलि वेदि पर, लाखों प्राण प्रसून चढ़े हैं,/ तनिक नींव को खोदो, देखो, रंग रंग के खून भरे हैं।
मां भारती को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए शुरू हुई 1857 की क्रांति बेशक विभिन्न कारणों से विफल हो गई थी, लेकिन इस क्रान्ति ने भारतीयों के मन-मस्तिष्क में आजादी पाने का ऐसा जज्बा पैदा किया था, जिससे कालांतर में अंग्रेजों को देश छोड़ने को मजबूर होना पड़ा। स्वतंत्रता संग्राम की इस पहली जंग में जहां तात्या टोपे, महारानी लक्ष्मीबाई, मंगल पांडे, नाना साहब पेशवा जैसे महान जांबाज थे तो वहीं रेवाड़ी रियासत के राजा राव तुलाराम भी डटे थे। नारनौल क्षेत्र के नसीबपुर के जंग-ए-मैदान में ही राजा राव तुलाराम के नेतृत्व में 1857 की क्रांति के दौरान यहां के 5 हजार अनाम सैनिकों ने अपनी कुर्बानी दी थी।
नसीबपुर के जंग-ए-मैदान की रक्तिम माटी आज भी उस बलिदान की गवाह है। इस युद्ध के बारे में अंग्रेज लेखक मालेसन ने कहा था कि हिंदुस्तानी सैनिक इतनी वीरता के साथ इससे पहले कभी नहीं लड़े। अंग्रेजी फौज की ऐसी विकट टक्कर किसी प्रतिद्वंद्वी से नहीं हुई होगी। 9 दिसम्बर, 1825 को जन्मे राव तुलाराम, जो 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेताओं में से एक थे, को हरियाणा में ‘राज नायक’ माना जाता है। उनका जन्म रेवाड़ी शहर में राव पूरन सिंह तथा ज्ञान कुंवर के पुत्र के रूप में हुआ था। तुलाराम मात्र 14 वर्ष के थे तभी उनके पिता का देहांत हो गया। इसके बाद उनको रेवाड़ी रियासत की गद्दी सौंप दी गई।
किशोर तुलाराम को भारतीय संस्कृति, उर्दू, फारसी, हिंदी, धर्म, योग आदि समस्त विषयों की शिक्षा प्रदान करवाई गई। 1803 में राव राजवंश ने मराठा-ब्रिटिश संघर्ष के समय मराठों का साथ दिया था। 17 मई, 1857 काे क्रांति की लहर पहुंची तब राजा राव तुलाराम ने भी क्रांति का बिगुल बजा दिया। राव तुलाराम ने इस इलाके से अंग्रेजी सेना के खात्मे का ऐलान कर दिया। अंग्रेज गुरुग्राम व आसपास का इलाका छोड़ भाग गए तथा इस इलाके पर राव तुलाराम का शासन कायम हो गया। 1857 की क्रांति में हरियाणा के दक्षिण-पश्चिम इलाके से सम्पूर्ण बिटिश हुकूमत को उखाड़ फेंकने तथा दिल्ली में विद्रोही सैनिकों को सैन्य बल, धन व युद्ध सामग्री से सहायता प्रदान करने का श्रेय राव तुलाराम को ही जाता है।
गुस्साये अंग्रेजों ने संगठित होकर राव तुलाराम को घेरने की कोशिश की। 16 नवंबर, 1857 को नारनौल के समीप नसीबपुर के मैदान में अंग्रेजों व भारतीय योद्धाओं के बीच भीषण युद्ध हुआ, जिसमें अंग्रेजी सेना को भारी नुकसान उठाना पड़ा, पर राव तुलाराम के भी पांच हजार से अधिक योद्धा शहीद हो गए। राव के सिपाहियों का पहला हमला इतना रणनीतिक और जोरदार था कि अंग्रेजी फौज स्तब्ध हो गई। ब्रिटिश सेना की कमान संभालने वाले कर्नल जॉन ग्रांट गेरार्ड और कैप्टन वालेस को जान से हाथ धोना पड़ा, जबकि लेफ्टिनेंट ग्रेजी, केनेडी और पियर्स बुरी तरह जख्मी हुए।
देखते ही देखते दृश्य बदल गया और राव तुला राम का लश्कर टूट गया। अंग्रेजों के लिए यह इतनी बड़ी जीत थी कि लेफ्टिनेंट फ्रांसिस डेविड मिलेट ब्राउन को इस लड़ाई में विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया। वहीं राव तुलाराम अंग्रेजी सेना को चकमा देकर अपने साथियों के साथ अंग्रेजों के खिलाफ मदद मांगने के लिए काबुल पहुंच गए, परतु भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया। वहां से अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चाबंदी मजबूत करने से पहले ही उनका स्वास्थ्य खराब हो गया। 23 सितंबर, 1863 को आजादी का यह महानायक सदा के लिए सो गया, परंतु आजादी की जो चिंगारी उन्होंने सुलगाई थी, वही भविष्य में ज्वाला बनकर देश को आजाद कराने का कारण बनी। देश की आजादी के अमृत महोत्सव के मौके पर आजादी के लिए अपना बलिदान करने वाले शहीदों को शत शत नमन!
लेखिका राव तुलाराम की वंशज हैं।
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