अभी हाल ही में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने सशस्त्र बलों के अत्याधुनिक प्रशिक्षण के लिए नया आदेश जारी कर दिया है। उद्देश्य है कि युद्ध लड़ने एवं उसे जीतने में सक्षम विशिष्ट चीनी बल तैयार रहने चाहिए। शी जिनपिंग ने अपने आदेश में कहा है कि सशस्त्र बलों को प्रौद्योगिकी तथा युद्ध तकनीकों के साथ अपने प्रतिद्वंद्वियों पर नजदीक से नजर रखनी चाहिए। इसके लिए क्रमबद्ध प्रशिक्षण को मजबूती प्रदान करनी चाहिए और विशिष्ट बलों के गठन के लिए नवीनतम प्रौद्योगिकियों का विकास करना चाहिए जो युद्ध लड़ने में सक्षम हों। ज्ञातव्य है कि चीनी सेना का वार्षिक रक्षा बजट 200 अरब डॉलर अर्थात् 14908 अरब रुपये है। चीन की इस अत्याधुनिक सेना से निपटने की तैयारी भारत को करनी होगी।
सेंट्रल मिलिटरी कमीशन के प्रमुख के तौर पर पीएलए को 2022 में दिया गया राष्ट्रपति शी जिनपिंग का यह पहला आदेश है। यह आदेश हिन्द-प्रशान्त महासागर क्षेत्र, अमेरिका, जापान एवं अन्य पड़ोसी देशों के मद्देनजर सेना को आधुनिक बनाने के लिए है। दक्षिण चीन सागर और उसके बाद एशिया-प्रशान्त क्षेत्र में अमेरिका तथा उसके सहयोगियों की बढ़ती ताकत को देखते हुए चीन काफी दिनों से अपनी सैन्य ताकत बढ़ाने को तत्पर दिख रहा था। गौरतलब है कि हाल ही के वर्षों में इन क्षेत्रों को लेकर चीन के खिलाफ दो रणनीतिक गठबंधन क्वाड और ऑकस बने हैं, जिनमें अमेरिका व भारत की मौजूदगी है। इसलिए चीन का चिन्तित होना स्वाभाविक है। भारत पर दबाव बनाने के उद्देश्य से चीनी सेना पूर्वी लद्दाख में एलएसी के पास पैंगोंग त्सो झील के अपने वाले हिस्से में एक पुल बना रही है। इस पुल के बन जाने से चीनी सेना किसी भी यौद्धिक स्थिति के उत्पन्न होने पर वह भारतीय सीमा के निकट शीघ्रता के साथ पहुंच जाएगी। अभी तक इस हिस्से में पहुंचने में चीनी सेना को 200 किलोमीटर का रास्ता तय करना पड़ता है। इस पुल के बन जाने से यह दूरी 40 से 50 किलोमीटर ही रह जाएगी। विदित हो कि पैंगोंग त्सो लेक की लम्बाई 135 किलोमीटर है। स्थलीय सीमा से घिरी हुई इस झील का कुछ हिस्सा लद्दाख और बाकी हिस्सा तिब्बत में है। झील के उत्तरी तट पर फिंगर आठ से 20 किलोमीटर पूर्व में ब्रिज का निर्माण किया जा रहा है। ब्रिज साइट रुतोग काउंटी में खुर्नक जिले के ठीक पूर्व में है जहां पर पीएलए के अनेक सीमावर्ती ठिकाने हैं।
विदित हो कि अगस्त, 2020 में चीनी सेना पैंगोंग त्सो झील के फिंगर-4 तक आ गई थी। करीब डेढ़ साल के तनाव के बाद चीनी सेना पीछे हटी लेकिन अब उसने अपनी तरफ पुल बनाना शुरू कर दिया है। सामरिक दृष्टिकोण से चीन इस पुल से भारतीय सेना की गतिविधियों पर निगरानी कर सकेगा। पीएलए ने इस पुल से आने-जाने के लिए सड़क बनाने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है। पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग त्सो झील पर चीन द्वारा पुल बनाए जाने पर भारत ने स्पष्ट किया है कि यह निर्माण झील के उस हिस्से में किया जा रहा है जो एलएसी के पार बीते 60 सालों से चीन के अवैध कब्जे में है लेकिन भारत ने इस अवैध कब्जे को कभी स्वीकार नहीं किया है। भारत इस पर नजर बनाए हुए है और इस स्थिति से निपटने के लिए आवश्यक उपाय कर रहा है।
लद्दाख में अब भारतीय सेना के जवानों का सामना ठण्ड से कांपते चीनी सैनिकों के बजाय उसकी रोबोट आर्मी और अनमैंड व्हीकल्स से होगा क्योंकि चीन ने लद्दाख से लगती सीमा पर इनकी तैनाती कर दी है। चीन ने यह कार्य तिब्बत की कड़कड़ाती ठण्ड नहीं झेल पा रहे अपने सैनिकों के बचाव के लिए किया है। विदित हो कि चीनी सैनिकों को ठण्डे इलाकों में लड़ाई का अनुभव नहीं है जिस वजह से उन्हें भारतीय सैनिकों के हाथों मुंह की खानी पड़ती है। लद्दाख तनाव को कम करने के लिए भारत और चीन के बीच कई दौर की वार्ता के बाद भी कोई समाधान नहीं निकल सका है।
दरअसल, पीएलए ने तिब्बत में ऑटोमैटिक रूप से चलने वाली 88 शॉर्प क्लॉ व्हीकल्स को तैनात कर दिया है। इसमें से 38 शॉर्प क्लॉ व्हीकल्स को लद्दाख सीमा पर लगाया गया है। इन गाड़ियों को चीन की हथियार निर्माता कम्पनी नोरीनको ने तैयार किया है। इन वाहनों का इस्तेमाल सीमा क्षेत्रों में शत्रु की निगरानी या अन्य क्षेत्रों में निगरानी के लिए किया जाता है। इसके अलावा इन गाड़ियों का उपयोग हथियार व अन्य आवश्यक सैन्य साजो-सामान की आपूर्ति के लिए किया जाता है।
चीन ने तिब्बत में स्वचालित म्यूल-200 अनमैन्ड व्हीकल्स भी तैनात कर दिए हैं। ये वाहन मुश्किल पहाड़ी इलाकों में शत्रु की निगरानी करने के साथ-साथ 50 किलोमीटर की दूरी तक आक्रमण करने में भी सक्षम हैं। इस क्षमता के अलावा इनकी मदद से एक बार में 200 किलोग्राम से ज्यादा वजन का गोला बारूद और हथियारों को ले जाया जा सकता है। वायरलेस से भी कंट्रोल की जाने वाली ये गाड़ियां रोबोट की तरह युद्ध लड़ने में सक्षम हैं। तिब्बत के इलाके में 200 लिंक्स ऑल टेरेन व्हीकल्स मौजूद हैं। इनमें से तकरीबन 150 लद्दाख सीमा क्षेत्र में हैं। इसके अलावा ये वाहन भारी वजन वाले हथियारों और एयर डिफेंस संबंधी हथियारों के लिए प्लेटफार्म के तौर पर भी काम आ सकते हैं।