देविंदर शर्मा
पंजाब में बनी आम आदमी पार्टी की नई सरकार ने कुछ महीने पहले पंजाब राज्य सहकारी कृषि विकास बैंक से कर्ज लेने वाले 2000 किसानों पर ऋण वापसी में असफलता के कारण दायर किए गए मामले वापस लिए थे। ये किसान 5 एकड़ से ज्यादा रकबे के मालिक थे। कर्ज वापसी में नाकामी पर किसानों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी करने की परिपाटी काफी समय से बनी हुई है, वह भी मामूली बकाए पर। बैंक ऋण देते वक्त किसान से हस्ताक्षरयुक्त किंतु बिना रकम लिखे जो चेक बतौर जमानत रखवा लेते हैं, किस्तें टूटने पर बैंक इनमें रकम भरकर सिविल मामले को आपराधिक केस में तब्दील कर देते हैं। सजा काटने के दौरान कई किसानों की मृत्यु होने की सूचनाएं मिली हैं। ऐसे मामले भी हैं, जिनमें अदालती नोटिस मिलने के बाद, सार्वजनिक मानहानि सहन न कर पाने के कारण किसान खुदकुशी करना चुनता है।
इसी बीच, पिछले 5 सालों में राष्ट्रीयकृत बैंकों के अलावा निजी बैकों ने कॉर्पोरेट्स की तरफ लगभग 10 लाख करोड़ बकाया कर्ज की उगाही छोड़ कर दी है। 21 नवम्बर, 2022 को इंडियन एक्सप्रेस अखबार में सूचना का अधिकार की मार्फत मिली जानकारी का हवाला देती एक खबर में बताया गया है कि मार्च, 2022 तक कॉर्पोरेट्स की तरफ निकलते कुल बकाया कर्ज में बैंक केवल 1.32 लाख करोड़ रुपये ही उगाह पाए हैं। पिछले 10 सालों में कॉर्पोरेट्स की कुल मिलाकर 13.22 लाख करोड़ रुपये ऋण माफी की गई है, इसमें भी 10.09 लाख करोड़ रुपये तो पिछले 5 सालों में माफ किये गये हैं। इसका लगभग 73 फीसदी बोझ राष्ट्रीयकृत बैंकों को वहन करना पड़ा है। यह तथ्य इस बात की ताईद करते हैं, जो लंबे से दोहराई जा रही है : ‘बात जब कॉर्पोरेट्स की आए तो हम समाजवादी बन जाते हैं लेकिन जब किसान की हो तब पूंजीवादी।’
आज तक कोई खबर नहीं देखी जिसमें बड़े पूंजीपति या किसी कॉर्पोरेट मुखिया को कर्ज उगाही की एवज में जेल में डाला गया हो। यह ‘त्रुटि’ खाता, जिसे बड़ी चतुराई से नॉन परफोर्मिंग एस्सेट्स (एनपीए) जैसा मासूम नाम दिया गया है, वास्तव में वह सुरक्षा छतरी है, जो कर्ज चुकाने में असमर्थ किसी किसान या आम नागरिक को उपलब्ध नहीं है, जो अपना घर बनाने अथवा कार के लिए ऋण की किस्तें नहीं चुका पा रहा हो। सवाल जो पूछा जाना चाहिए वह यह कि साधारण किसान या नागरिक के साथ ठीक वही व्यवहार क्यों नहीं होता जो पूंजीपतियों से किया जाता है। क्यों जेल जाने से अभयदान केवल बड़े खिलाड़ियों को उपलब्ध है जो कि कर्ज न चुकाने के कहीं ज्यादा बड़े दोषी हैं, क्यों इनसे बच्चों जैसा नरम व्यवहार किया जाता है।
सच तो यह है कि खुद रिज़र्व बैंक ने कई बार कहा है कि कर्ज वापसी के दोषी पूंजीपतियों का नाम उजागर करने से भावी निवेशकों को गलत संकेत जाएगा। वहीं दूसरी ओर आलम यह है कि कर्ज चुकाने में असमर्थ किसान का न केवल नाम बल्कि उसकी फोटो भी तहसील मुख्यालय में लगा दी जाती है, मानो कोई बहुत बड़ा वांछित अपराधी या आतंकवादी हो। यही कारण है कि जहां ऋण वापसी न करने वाले अमीर शानोशौकत भरी जिंदगी जीए जा रहे हैं, वहीं गरीब किसान जेल में सड़ता है।
इससे आगे, मीडिया बताता है कि कॉर्पोरेट्स का माफ किया गया भारी-भरकम ऋण वर्ष 2022-23 के कुल वित्तीय घाटे का 61 प्रतिशत हिस्सा होगा। यह तथ्य बहुत संगीन है क्योंकि क्रमवार आए वित्तीय आयोगों का लक्ष्य वित्तीय घाटे को सकल बजटीय मद के 3 प्रतिशत से नीचे रखने का रहा है। इसके अलावा, ऐसे समय पर जब सर्वोच्च न्यायालय यह तय करने में लगा हो कि किसको ‘मुफ्त की रेवड़ी’ माना जाए और यहां तक कि प्रधानमंत्री भी चुनावी भाषणों में ‘रेवड़ी संस्कृति’ का उलाहना दे रहे हों, तो यह बात एकदम साफ है कि जहां गरीब-भलाई की घोषणाओं को ‘राष्ट्रीय खजाने पर बोझ’ बताया जाता है वहीं हकीकत में यह बड़े कॉर्पोरेट्स हैं, जिन्हें सबसे ज्यादा रेवड़ियां मिल रही हैं।
यह सही है कि कर्ज माफी बैंकों के बही-खाते से की जाती है ताकि राजकीय खजाने पर अतिरिक्त बोझ न पड़े। लेकिन आखिरकार बैंकों की भरपाई सरकार को ही करनी पड़ती है अर्थातzwj;् सारा बोझ अंततः राजकीय कोष पर आता है। अब यदि कुल वित्तीय घाटे के 61 फीसदी हिस्से के बराबर माफ किया धन सरकार के हाथ में रहता, तो मुझे पूरा यकीन है कि जन स्वास्थ्य, शिक्षा और किसानों को फसलों की ज्यादा कीमत देने लायक पर्याप्त पैसा होता।
ये भारी-भरकम ऋण-माफियां ऐसे वक्त पर हो रही हैं जब सरकार उद्योगों को भी सकल घरेलू उत्पाद के 5.5 प्रतिशत हिस्से के बराबर छूटें दे रही है। सितंबर, 2019 में, कोविड महामारी से पूर्व, सरकार ने भारतीय कॉर्पोरेट्स जगत को 1.45 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त कर-माफी की थी, तब भी अनेकानेक अर्थशास्त्रियों ने यह सवाल उठाया था कि इनकी वित्तीय मदद करने की बजाय यह राशि ग्रामीण क्षेत्र में मांग बढ़ाने में क्यों नहीं लगाई जाती?
हाल ही में संसद को बताया गया है कि ‘इरादन ऋण-दोषियों’ की संख्या अब 10000 से अधिक हो गई है, जो कर्ज चुकाने की हैसियत में तो हैं पर चुकाना नहीं चाहते। 100 करोड़ रुपये से ज्यादा के कर्जदारों में केवल 312 बड़े इरादन ऋण-दोषियों के उपर ही सार्वजनिक क्षेत्र की कुल देनदारी का 1.4 लाख करोड़ रुपये बकाया है। सच्चाई यह है कि सार्वजनिक डोमेन में कॉर्पोरेट्स की देनदारी को लेकर सहानुभूति पाई जाती है। जब कभी किसानों का कर्ज माफ होता है तो टीवी चैनलों पर गुस्सा जाहिर किया जाता है। किसानों की बारी खबरिया चैनलों की मुख्य सुर्खियां ‘ऋण माफियां बंद हों’ जैसी चिल्ल-पों मचाती हैं, वहीं कॉर्पोरेट्स को मिली भारी-भरकम ऋण माफी पर शायद ही कभी बहस होती दिखाई दे।
अब इस स्थिति का मिलान पंजाब के किसानों द्वारा फसलों पर लिए ऋण की अदायगी समय पर न होने से करें तो ‘दोषी’ किसानों की कुल संख्या लगभग 71000 है, जिनमें 2000 वह भी हैं, जिनके खिलाफ वारंट जारी हुए थे। इन सब पर कुल मिलाकर बकाया 3200 करोड़ रुपये बनता है। ऐसे मामले भी हैं जब हरियाणा में 80 साल से अधिक एक बुजुर्ग को महज 2 लाख ऋण वसूली की एवज में जेल में डाल दिया गया। अब यदि ऋण-दोषी किसान के विरुद्ध वारंट जारी हो जाता है तो क्योंकर कॉर्पोरेट जगत के इरादन ऋण-दोषियों से ठीक इसी तरीके से निपटा नहीं जाता? क्यों उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जाता? क्यों रिजर्व बैंक उनको सुरक्षा चक्र प्रदान करना जारी रखे हुए है?
न सिर्फ इरादन ऋण-दोषी बल्कि कॉर्पोरेट्स से बकाया वसूलने की समूची प्रक्रिया ऐसे तंत्र से युक्त है जो धारहीन है। यही समय है कॉर्पोरेट्स को दी जा रही इन छूटों से किनारा करने का। बैंकों द्वारा उनकी तरफ रहते बकाए की रकम को एक अलग खाते में डालकर यह कहना कि वसूली प्रक्रिया जारी रहेगी, दरअसल बैंकों द्वारा पर्दा डालने का एक बहुत चतुर और तकनीकी पैंतरा है, क्योंकि वे जानते हैं कि कर निर्धारण करते वक्त माफ की गई राशि घटा देने के बाद उनके अपने बही-खातों में दिखाया जाने वाला मुनाफा पाताल में चला जाएगा।
भारतीय दिवालिया एवं शोधन क्षमता कोड (इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड) भी कॉपोरेट्स से बकाया रकम उगाहने में नाकाम रहा है। दावों से इतर बहुत बड़े स्तर की ऋण माफी (कुछ मामलों में तो 80-90 फीसदी तक) को भी सार्वजनिक धन खुर्द-बुर्द करने का कानूनी तरीका माना जाता है। बहरहाल यह देखना रोचक होगा कि नवनिर्मित ‘बैड बैंक’ प्रणाली से किस तरह जनता का डूबा धन वापस मिल पाएगा।
लेखक खाद्य एवं कृषि मामलों के विशेषज्ञ हैं।