प्रधानमंत्री जी ने परीक्षा पर चर्चा क्या की जी, अडानी सेठ के सामने बड़ी कठिन परीक्षा आ पड़ी। हिंडनबर्ग वाले कह रहे हैं कि अपनी रिपोर्ट के लिए उन्होंने अडानी सेठ से अठासी प्रश्न पूछे थे। पहले तो उन्होंने कोई जवाब ही नहीं दिया। हो सकता है उस समय वे विभिन्न चैनलों में उनसे पूछे जा रहे सवालों के जवाब दे रहे हों। जलकुकड़े कह रहे हैं कि चैनल वाले सवाल पूछ ही कहां रहे थे, वे तो उन्हीं सवालों को दोहरा रहे थे, जो राहुल जी पूछ रहे थे। अडानी सेठ के सामने मुश्किल यह है कि सब उनसे सवाल ही पूछ रहे हैं। कभी राहुल जी पूछ रहे हैं, कभी चैनल वाले पूछ रहे हैं। अच्छी बात यही है कि इधर जनता ने सवाल पूछने छोड़ दिए हैं। वैसे भी वह सेठों से कभी सवाल नहीं पूछती। उनसे पूछे जाने वाले सवाल वह सरकार से पूछती है। जैसे दोनों एक ही हों। उनसे पूछा, इनसे पूछा। क्या फर्क पड़ता है।
एक और अच्छी बात यह है कि अडानी सेठ से सरकार भी कोई सवाल नहीं पूछ रही है। सरकार विरोधी तो यह भी मानते हैं कि हो सकता है राहुल जी के सवालों के जवाब भी सरकार ही उन्हें पहुंचा रही हो और चैनलों की खिड़कियों से उनके लिए पर्चियां फेंक रही हो। हमारे यहां परीक्षा का सीन यही होता है। खैर, ईडी, वीडी वाले तो उनसे बिल्कुल भी सवाल नहीं पूछ रहे। अभी वे सरकार के विरोधियों से सवाल पूछने और उन्हें फेल करने में ज्यादा व्यस्त हैं।
खैर जी, बताते हैं कि हिंडनबर्ग वालों ने उनके जवाब पाए बिना ही एक सौ छह पेज की रिपोर्ट दे दी। अगर इसे उनका रिपोर्ट कार्ड माना जाए तो यह उनके करिअर के लिए बड़ा ही खतरनाक साबित हुआ। शेयर वालों का तो उन पर से भरोसा ही उठ गया। उनके शेयर धड़ाम से गिर गए। अब शेयर कोई झूठ तो होते नहीं कि उनके पांव न हो। जलकुकड़े तो यहां तक कहते हैं कि खुद सेठ जी के ही पांव कहां हैं, वे भी सरकार की ही बैशाखी पर खड़े हैं। तो फिर यह डर क्यों सता रहा है कि अगर दूसरे सेठों की तरह अडानी सेठ भी देश छोड़कर भाग गए तो क्या होगा।
सेठ जी ने हिंडनबर्ग के सवालों के जवाब बेशक न दिए हों, उनकी रिपोर्ट का जवाब उन्होंने खूब दिया। उनकी एक सौ छह की रिपोर्ट का जवाब उन्होंने चार सौ तेरह पेज की रिपोर्ट में दिया। लेकिन हिंडनबर्ग वाले भी बड़े सख्त एग्जामिनर निकले। उन्होंने कहा कि हमारे अठासी सवालों में से सेठ जी ने सिर्फ छब्बीस सवालों के ही जवाब दिए हैं। यार आंसरशीट तो उनकी खूब भारी थी। हमारे यहां तो आंसरशीट जितनी भारी होती है, उतने ही ज्यादा नंबर मिलते हैं। लेकिन हिंडनबर्ग ने उन्हें पास करने से इंकार कर दिया। बोले राष्ट्रवाद की आड़ में फ्रॉड मत छिपाओ। परीक्षा सचमुच बड़ी कठिन है।