देश में बाढ़ के कहर से जनमानस त्रस्त है। महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिम बंगाल, असम, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश आदि राज्य बाढ़ की चपेट में हैं। वहां जनजीवन अस्त-व्यस्त है। नदियां रौद्र रूप में हैं। उनका जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है। कहीं तटबंध टूट गए हैं। कहीं पहाड़ी इलाकों में नीचे बने पुलों के ऊपर से पानी बह रहा है। सड़कें धंस गई हैं। सड़क परिवहन बुरी तरह प्रभावित है। उत्तराखण्ड में भूस्खलन ने जहां रास्ते अवरुद्ध कर दिये हैं, वहीं हजारों गांवों का दुनिया से संपर्क टूट गया है। हजारों-लाखों हेक्टेयर फसल बर्बाद हो चुकी है। लोग जान जोखिम में डाल छोटे-छोटे बच्चों के साथ, आश्रय की तलाश को मजबूर हैं।
नेपाल से सटे उत्तरी बिहार के जिले बाढ़ के कहर से त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। यहां की सभी नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। कोसी, गंडक, बागमती के कहर से सैकड़ों गांव डूब गए हैं। गोपालगंज, सुपौल और सहरसा में तबाही का आलम है। कर्मनाशा की बाढ़ ने इसमें अहम भूमिका निभाई है। बागमती की बाढ़ ने तटबंध बहा दिए हैं। भागलपुर के 200 और गोपालगंज के 35 गांव पानी में डूबे हैं। सूत्रों के अनुसार बिहार के 12 से ज्यादा जिलों में बाढ़ से तकरीबन 25 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हैं।
असम की ब्रह्मपुत्र सहित 13 नदियों के बढ़ते जलस्तर ने भयावह स्थिति पैदा कर दी है। बाढ़ ने असम के सोनितपुर सहित 24 जिलों में तबाही मचाई है। तकरीबन 34 लाख लोग बाढ़ के शिकार हैं। लाखों खुले आसमान के नीचे सड़कों पर अपने बाल-बच्चों के साथ रहने को मजबूर हैं। डिब्रूगढ़, गुवाहाटी, वीरभूमि बाढ़ की चपेट में हैं। दरांग में बाढ़ से हालात बेहद गंभीर हैं। तेलंगाना, छत्तीसगढ़ भी बाढ़ के प्रकोप से अछूते नहीं है। देश की औद्यौगिक राजधानी मुंबई सहित कई शहर, उनकी सड़कें पानी से लबालब हैं। बिहार में बीमार जब अस्पतालों में इलाज के लिए पहुंचते हैं तो अस्पताल पानी से भरे मिल रहे हैं। वहां डाक्टर नदारद हैं।
बाढ़ ऐसी आपदा है, जिसमें हर साल करोड़ों का नुकसान ही नहीं होता बल्कि हजारों-लाखों घर, लहलहाती खेती बर्बाद होती है और अनगिनत मवेशियों के साथ हजारों इनसानी जिंदगियां पल भर में मौत के मुंह में चली जाती हैं। देश में पिछले कुछ वर्षों से बाढ़ से होने वाली तबाही बढ़ती जा रही है। लेकिन मुख्य समस्या गंगा के उत्तरी किनारे वाले क्षेत्र में है। गंगा बेसिन के इलाके में गंगा के अलावा यमुना, घाघरा, गंडक, कोसी, सोन और महानंदा आदि प्रमुख नदियां हैं जो मुख्यतः उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हिमाचल, हरियाणा, दिल्ली, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार सहित मध्य एवं दक्षिणी बगांल में फैली हैं। इनके किनारे घनी आबादी वाले शहर बसे हैं। इस पूरे इलाके की आबादी 40 करोड़ से ऊपर है। उसके ‘बाढ़ पथ’ पर रिहायशी कालोनियों का बिछता जा रहा जाल सबूत है कि सरकारें कितनी संवेदनहीन हैं।
आंकड़ों के अनुसार 1951 में देश में एक करोड़ हेक्टेयर बाढ़ग्रस्त क्षेत्र था, जो बढ़कर आज तकरीबन सात करोड़ हेक्टेयर से अधिक है। कुछेक दशक पहले जो इलाके बाढ़ से अछूते थे, आज वहां बाढ़ का तांडव दिखाई दे रहा है। राजस्थान इसका जीवंत प्रमाण है। गंगा, यमुना और अन्य नदियों का अधिकांश पानी मैदानी क्षेत्रों में खेतों की सिंचाई की खातिर नहरों के जरिये निकाला जाता रहा है। इससे नदियों में न के बराबर पानी रहने से वे गाद को समुद्र तक बहा ले जाने में नाकाम रहती हैं। हमारे यहां चाहे बड़ा शहर हो या छोटा, उसके निर्माण के समय बनी योजना में नदी-नालों के पानी की निकासी के बारे में सोचा ही नहीं गया, उसकी व्यवस्था की बात तो दीगर है। देश में हर साल बारिश से पहले नगर निकायों द्वारा नालों में जमी गंदगी की सफाई के दावे तो किये जाते हैं, लेकिन उस पर अमल होता नहीं है। नतीजतन जरा सी बारिश होने पर देश की राजधानी सहित अधिकांश शहरों में बाढ़ जैसे हालात हो जाते हैं। जबकि हमारे यहां बाढ़ नियंत्रण विभाग, आपदा विभाग, जल-कल विभाग, सफाई विभाग आदि पूरा का पूरा तंत्र मौजूद है।
हमारे यहां नदी प्रबंधन के नाम पर बांधों, बैराजों, पुश्तों का निर्माण और सिंचाई हेतु नहरें निकालने का काम तीव्र गति से हुआ है। इसमें चीन, पाकिस्तान आदि देशों के मुकाबले भारत शीर्ष पर है। हर साल बाढ़ की प्रकृति में बढ़ोतरी ढांचागत विकास में जल निकासी की अनदेखी का नतीजा है। इसमें जल संरक्षण में महती भूमिका निबाहने वाले परंपरागत जलस्रोतों की अनदेखी, नदियों में गाद की समस्या का समाधान करने में नाकामी और वनविहीन हो चुके नदियों के जलागम को वनाच्छादित करने में सरकार की विफलता जगजाहिर है। जरूरी है मौसम के बदलाव के मद्देनजर नदियों की प्रकृति का सूक्ष्म रूप से अध्ययन कर नदी प्रबधंन की व्यवस्था की जाये क्योंकि बाढ़ मानवजनित कारणों से उपजी समस्या है।