पवन कुमार
पढ़ाई पूरी करने के बाद एक छात्र किसी बड़ी कंपनी में इंटरव्यू देने के लिए पहुंचा। छात्र ने पहला इंटरव्यू पास कर लिया। अब फाइनल इंटरव्यू कंपनी के डायरेक्टर को लेना था। डायरेक्टर ने छात्र का सीवी देखा और पाया कि पढ़ाई के साथ-साथ यह छात्र ईसी यानी अतिरिक्त एक्टिविटी में भी हमेशा अव्वल रहा। डायरेक्टर ने पूछा, ‘क्या तुम्हें पढ़ाई के दौरान कभी छात्रवृत्ति मिली?’ छात्र ने कहा, ‘जी नहीं।’ ‘इसका मतलब स्कूल-कॉलेज की फीस तुम्हारे पिता अदा करते थे।’ छात्र ने हां कहा। डायरेक्टर ने पूछा, ‘तुम्हारे पिताजी क्या काम करते हैं?’ छात्र ने कहा, ‘जी वो लोगों के कपड़े धोते हैं।’ डायरेक्टर ने कहा—‘ज़रा अपने हाथ तो दिखाना।’ छात्र के हाथ रेशम की तरह मुलायम और नाज़ुक थे। डायरेक्टर—‘क्या तुमने कभी कपड़े धोने में अपने पिताजी की मदद की?’ छात्र—‘जी नहीं, मेरे पिता हमेशा यही चाहते थे कि मैं पढ़ाई करूं… हां, एक बात और, मेरे पिता बड़ी तेजी से कपड़े धोते हैं।’ डायरेक्टर—‘आज घर वापस जाने के बाद अपने पिताजी के हाथ धोना, फिर कल सुबह मुझसे आकर मिलना।’ छात्र ने पिता को घर आकर अपने हाथ दिखाने को कहा।
कुछ देर में ही हाथ धोने के साथ ही उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। पिता के हाथ रेगमाल की तरह सख्त और जगह-जगह से कटे हुए थे। छात्र को अहसास हुआ कि ये वही हाथ हैं जो रोज़ लोगों के कपड़े धो-धोकर उसके लिए अच्छे खाने, कपड़ों और स्कूल की फीस का इंतज़ाम करते थे। पिता के हाथ धोने के बाद उसने उस दिन के बचे हुए सारे कपड़े भी एक-एक कर धो डाले। अगली सुबह छात्र फिर डायरेक्टर के ऑफिस में था। डायरेक्टर—क्या तुम अपना अनुभव शेयर करना पसंद करोगे? छात्र—‘श्रीमान कल मैंने जिंदगी का एक वास्तविक अनुभव सीखा। नंबर एक…, मैंने सीखा कि सराहना क्या होती है। नंबर दो…, पिता की मदद करने से मुझे पता चला कि किसी काम को करना कितना सख्त और मुश्किल होता है। नंबर तीन, मैंने रिश्तों की अहमियत पहली बार इतनी शिद्दत के साथ महसूस की।’ डायरेक्टर—‘यही सब है जो मैं अपने मैनेजर में देखना चाहता हूं। मैं यह नौकरी केवल उसे देना चाहता हूं जो दूसरों की मदद की कद्र करे।’ आप खाने के बाद कभी बर्तन धोने का अनुभव भी बच्चों को करने दें। सबसे अहम हैं आपके बच्चे किसी काम को करने की कोशिश की कद्र करना सीखें। यही है सबसे बड़ी सीख।
साभार : हिंदी सोच डॉट कॉम