सख्त सज़ा हो
बरसात के दौरान शहरों में हादसे होना हर साल की बात है। दुर्भाग्य से न तो सरकारी विभाग इन हादसों से सीख लेते हैं और न ही ठेकेदारों के कानों पर जूं रेंगती है। लगभग सभी महकमों में रसातल तक समाया भ्रष्टाचार इस तरह की घोर लापरवाहियों को अंजाम देता है। इस तरह के अपराधों को रोकने के लिए जिम्मेदार कर्मचारियों एवं अधिकारियों को तुरंत प्रभाव से बर्खास्त तथा दोषी ठेकेदारों को भारी आर्थिक दंड व कठोर सजा का प्रावधान होना चाहिए। जब तक जिम्मेवार व्यक्ति के मन में कानून का डर नहीं होगा तब तक ऐसे गैर-जिम्मेदाराना काम होते रहेंगे।
सुरेन्द्र सिंह ‘बागी’, महम
जवाबदेही तय हो
मानसून के दौरान हर साल निचले इलाकों में जलभराव से काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। शहर हो या गांव, हर जगह यही हाल है। प्रशासन की ओर से हर साल कई वादे किए जाते हैं लेकिन फ़ायदा कुछ भी नहीं होता। प्रशासन की लापरवाही का नतीजा हर साल जनता को भुगतना पड़ता है। जलभराव जैसी समस्याओं के दो मुख्य कारण हैं। पहला जल निकासी की उचित व्यवस्था न होना, जिसके कारण यह समस्या उत्पन्न होती है और दूसरा, नदियों में से रेत की निकासी न होना, जिसके कारण नदियों में थोड़ी-सी बरसात से ही जल नदियों में से बाहर आना शुरू हो जाता है, बाढ़ का खतरा लगातार बना रहता है।
रमन कुमार कुकरेजा, डेरा बस्सी, मोहाली
भ्रष्टाचार वजह
बरसात की आफत और आपराधिक लापरवाही से ही तो दिल्ली के मिंटो ब्रिज अंडरपास में भरे पानी में डूबकर टैम्पो चालक की दुखद मौत हुई। यह घटना उचित व्यवस्था के अभाव को ही दर्शाती है। बरसाती पानी की सही निकासी के लिए उचित नालों की भी कोई व्यवस्था ही नहीं है। ऊपर से गलियों और सड़कों पर बढ़ता अतिक्रमण भी इसमें एक अलग रुकावट है। भ्रष्टाचार इसके लिए मुख्यतः उत्तरदायी है। जिस कारण उचित व्यवस्था से काम नहीं हो पाता है।
वेद मामूरपुर, नरेला
जिम्मेदारी तय हो
हर वर्ष बारिश की वजह से जलभराव आदि की समस्या देश के कई हिस्सों में लोगों के लिए जानलेवा साबित होती है। दिल्ली में मिंटो ब्रिज के नीचे जलभराव की वजह से एक टैम्पू चालक की मौत ने फिर एक बार सरकार व प्रशासन की पोल खोल दी है। लम्बी-लम्बी बातें करने वाले धरातल पर कुछ नहीं करते। स्थानीय प्रशासन भी आंख मूंदे किसी अनहोनी की प्रतीक्षा में बैठा रहता है। आरोप-प्रत्यारोप लगाकर गंदी राजनीति की जाती है। जो समस्या हर वर्ष आफत बनकर आती है, उसके लिए क्यों नहीं किसी की जवाबदेही तय की जाती?
सत्यप्रकाश गुप्ता, बलेवा, गुरुग्राम
अंकुश जरूरी
भ्रष्टाचार एक ऐसा रोग है, जिससे पूरा देश चपेट में है। अनेक जगह सड़कें, पुल, तालाब तो बनते हैं लेकिन ठेकदारों द्वारा पूरा भुगतान प्राप्त करने के बावजूद इनको बनाने में घटिया सामग्री का उपयोग होता है। नतीजा यह होता है कि हर वर्ष बारिश में सड़कें उखड़ना, उसमें जलभराव होना, पुल का गिरना आम बात है। तालाबों का समय पर गहरीकरण नहीं होता है। कागजी कार्रवाई में अच्छी सड़कें व पुल दिखाए जाते हैं, फिर उनकी मरम्मत के नाम पर बिल बनाए जाते हैं। ये आपराधिक लापरवाही है, जिस पर अंकुश होना जरूरी है।
भगवान दास छारिया, सोमानी नगर, इंदौर
सामूहिक जिम्मेदारी
सरकार द्वारा हर साल बरसात से पहले नालों व सीवर की मरम्मत व सफाई के नाम पर लाखों रुपए खर्च किए जाते हैं परन्तु जरा-सी बारिश से ही नालियों का दम निकल जाता है। पानी निकासी के पंप भी खराब पाए जाते हैं और वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम भी ठीक से काम नहीं करते। सरकारी महकमों की लापरवाही आमजन के लिए आफत बन जाती है। जल संचय, जोहड़, तालाबों का जीर्णोद्धार, रजबाहों व नहरों की सफाई, कूड़े के निस्तारण की व्यवस्था व जलभराव से जान-माल के नुकसान पर स्थानीय निकायों की जिम्मेदारी तय करने की जरूरत है।
देवी दयाल दिसोदिया, फरीदाबाद
पुरस्कृत पत्र
बेनकाब तंत्र
दिल्ली में मिंटो ब्रिज अंडरपास पर भरे बारिश के पानी में डूबकर न केवल एक टैम्पो चालक की मौत हुई है अपितु हाईटेक व्यवस्था भी डूबकर मरी है। क्या कारण है कि चंद घंटों की बारिश में ही तमाम सरकारी दावों और घोषणाओं की पोल खुल जाती है? क्या कारण है कि बरसात के पहले नालों, मैनहोलों की सफाई ढंग से नहीं होती? लेकिन हर साल घटना घटने के बाद भी किसी की जबाबदेही तय नहीं होती। क्यों नहीं ऐसी घटनाओं को आपराधिक कृत्य मानकर दोषी को दंडित किया जाता? सवाल यह भी है कि कौन किसके विरुद्ध बोलेगा या कार्रवाई करेगा जबकि हमाम में सब नंगे हैं।
हर्ष वर्द्धन, पटना, बिहार