जी. पार्थसारथी
जुलाई, 2013 में हेग स्थित संयुक्त राष्ट्र सागरीय कानून प्रावधान अधिकरण में फिलीपींस सरकार ने चीन के नागवार जलीय सीमा दावों पर फैसले के लिए मुकदमा दायर किया था। वर्ष 2016 में अधिकरण ने अपना निर्णय फिलीपींस के हक में दिया। न्यायालय ने पाया कि चीन दक्षिण सागर क्षेत्र में जिस 9 बिंदु वाली सीमा रेखा को आधार बनाकर, फिलीपींस के जलीय क्षेत्र पर अपना तथाकथित ऐतिहासिक हक जता रहा है, वह कानूनन पुख्ता नहीं है। फैसले में आगे कहा गया कि बेशक चीन अपने दावे में इसको अपने विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाने की जरूरतें पूरी करने में आवश्यक बता रहा है, लेकिन जो शिनाख्ती चिन्ह गिना रहा है, वह तथ्यों से मेल नहीं खाते। वहीं चीन ने इस निर्णय को यह कहकर सिरे से खारिज कर दिया कि वह इसे मानने को बाध्य नहीं है। रोचक बात यह है कि भारत ने इसी अंतर्राष्ट्रीय अधिकरण में बांग्लादेश से समुद्री क्षेत्र विवाद में अपना दावा गंवा दिया था और आए फैसले का पूरा सम्मान किया था।
पहले भी इस तरह बने हालातों में चीन बल प्रयोग से इलाका हथिया चुका है और दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में अपने दावे ताइवान, वियतनाम, इंडोनेशिया, मलेशिया, जापान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर और ब्रुनेई पर भी जता रहा है। वह न केवल जलीय सीमा विवादों में लिप्त है बल्कि भारत, नेपाल, भूटान, लाओस, मंगोलिया, म्यांमार, दक्षिण एवं उत्तर कोरिया और तिब्बत के साथ मान्यताप्राप्त थलीय सीमा रेखा की जरा भी परवाह न करते हुए, बलपूर्वक इलाके कब्जाने पर आमादा है। रूस के साथ चीन के सीमा विवाद 1970 और 1980 के दशकों में हुई तीखी झड़पों के बाद समाप्त हो पाए थे। चीन ने इलाकाई दावे पर कुछ दशक पहले वियतनाम के साथ कटु विवाद के बाद थलीय युद्ध भी लड़ा था। दोनों मुल्कों में समुद्री सीमा विवाद अभी भी जारी है, ठीक इसी तरह चीन का अन्य पड़ोसी देशों से भी तनाव है। अमेरिका यह पाकर कि चीन अपने लगभग हर पड़ोसी की जलीय सीमाओं का अतिक्रमण करने पर तुला हुआ है, जिसमें उसके निकट सहयोगी देश जापान और फिलींपीस भी शामिल हैं, उसने पश्चिमी प्रशांत महासागर में अपनी तगड़ी नौसैन्य उपस्थिति तैनात कर रखी है।
इस संदर्भ में, क्वाड संगठन बना, जिसमें अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत हैं। इसके उद्देश्यों में न केवल चीन के समुद्री दुस्साहसों को रोकना बल्कि हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना भी है। भारत ने हालिया वर्षों में, चीन के साथ सीमा-तनाव वाले काल में, अमेरिका के साथ सही समय पर और सार्थक तालमेल कायम किया है। पिछले साल लद्दाख में हुए चीनी अतिक्रमण के दौरान और उसके बाद, भारत–अमेरिकी सहयोग में इजाफा हुआ है। राष्ट्रपति बाइडेन ने पद संभालने के बाद क्वाड को सुदृढ़ करने में खासी रुचि दिखाई है। चूंकि, भारत हमेशा की तरह चाहता आया है कि हिंद-प्रशांत महासागरीय मुल्कों के बीच आर्थिक सहयोग ज्यादा बढ़े, लिहाजा क्वाड इस ओर उपयोगी और प्रभावशाली सिद्ध हो सकता है। फिलहाल भारत का जोर आर्थिक मामलों जितने ही जरूरी अन्य प्राथमिक अवयव यानी वैक्सीन निर्माण और इसकी वैश्विक आपूर्ति कड़ी बनाने पर ज्यादा है, जबकि विगत में ज्यादा ध्यान संयुक्त नौसैन्य अभ्यास पर केंद्रित रहता था।
भारत के जोर देने पर, क्वाड ने अपनी सार्थकता और प्रभाव क्षेत्र में विस्तार करना माना है, अतएव आर्थिक मामलों में रुचि लेना तय किया गया है। इसी बीच फ्रांस और यूके ने हिंद और प्रशांत महासागर में संयुक्त नौसैन्य अभ्यास में हिस्सा लिया है। हालांकि यूके ने लगभग 6 दशक पहले स्वेज़ नहर के पूर्व में अपनी नौसैन्य उपस्थिति न रखना तय किया था, लेकिन इस पर पुनर्विचार करते हुए साल के शुरू में हुए संयुक्त अभ्यास में अपना विमानवाहक बेड़ा भेजा था। हालांकि, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया के मध्य 40 बिलियन डॉलर मूल्य वाले परमाणु पनडुब्बी सौदे में यूके का बीच में आना तनाव का कारण बन गया है। वाशिंगटन में संपन्न हुई हालिया क्वाड शिखर बैठक इस लिहाज से सफल रही कि अफगानिस्तान से हुए अमेरिकी पलायन के बाद राष्ट्रपति बाइडेन का रुख पता चल गया। वार्ता का परिणाम उम्मीद से कहीं ज्यादा रहा।
प्रधानमंत्री मोदी के साथ हुई भेंट में राष्ट्रपति बाइडेन ने जैसा दोस्ताना रवैया दिखाया है, वह विलक्षण है। इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह रहा कि यात्रा से पहले जो तैयारियां विदेश मंत्री एस. जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने की थीं, उन्होंने सुनिश्चित किया कि चीन से पैदा हुई चुनौतियों के मद्देनजर जो राष्ट्रीय सुरक्षा और कूटनीतिक उपाय हमने अपनाए थे, उन्हें क्वाड ने भी अंगीकार किया है। वाशिंगटन बैठक में कोविड-19 महामारी से पैदा हुई चिंताओं, पर्यावरणीय बदलावों और उभरती विशिष्ट तकनीक की पहुंच सदस्य देशों तक बनाने और नीतियों पर भी विचार हुआ है। भारत के सतत प्रयास सदका, खासतौर पर निर्यात के लिए कोविड वैक्सीन के अतिरिक्त 1.2 बिलियन टीके बनाने का निर्णय लिया गया है, जिस पर 3.5 बिलियन डॉलर का खर्च आएगा। इसका बड़ा हिस्सा जापान वहन करेगा। वैश्विक स्वास्थ्य और सुरक्षा को सुदृढ़ करने पर जोर दिया जाएगा। कोरोना वायरस से पैदा हुए खतरों को काबू करने के उपायों में क्वाड महत्वपूर्ण भूमिका अपनाएगा। इसमें वैक्सीन का उत्पादन बढ़ाकर भारत का योगदान काफी रहेगा। हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र और सहयोगी पूर्वी अफ्रीकी देशों तक फैले इलाके की वैक्सीन जरूरतें पूरी करने में भारत एक बड़ा प्रदाता होगा।
हिंद महासागर में चीन अफ्रीका के पूर्वी तटों से लेकर मलक्का की खाड़ी तक के जल क्षेत्र में अपनी नौसैन्य उपस्थिति बढ़ाने में लगा है। इस सिलसिले में वह पाकिस्तान के बलूचिस्तान और सिंध प्रांत में अड्डे बना रहा है और बंगाल की खाड़ी में म्यांमार के क्याकप्यू में बंदरगाह को विकसित कर रहा है। समय आ गया है कि भारत भी बहरीन स्थित अमेरिका के पांचवें बेड़े से अपना नौसैन्य सहयोग बढ़ाए। हालांकि भारत के पास दो परमाणु शक्ति चालित एवं बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बियां हैं, तथापि ऑस्ट्रेलिया की तर्ज पर हमें अपनी इस क्षमता में विस्तार करने की जरूरत है, साथ ही फ्रांस और रूस के सहयोग से हम हिंद महासागरीय इलाके में अपनी रिवायती मिसाइल सामर्थ्य में इजाफा कर सकते हैं।
वाशिंगटन की क्वाड शिखर बैठक में जिन अन्य साझा चिंताओं पर महत्वपूर्ण सहमति बनी है, उनमें एक है आतंकरोधी उपाय और अफगानिस्तान में मानवीय विषय पर निकट तालमेल बनाना। क्वाड ने आतंकवाद चलाने के लिए अन्य मुखौटे, जैसे कि लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद को मदद देना या सीमापार आतंक के लिए इस्तेमाल करने की निंदा की है। जाहिर है इसका अभिप्राय तालिबान, सिराजुद्दीन हक्कानी और उसके चट्टे-बट्टों से है। वैसे तो वह ज्यादातर पाकिस्तान में रहता रहा है, लेकिन अब उसे अफगानिस्तान की तालिबान सरकार में गृहमंत्री बनाया गया है। भारत सरकार ने तालिबान को मान्यता देने वाली सलाहों को अनसुना करना चुना है, क्योंकि सत्ता में आने के बाद उसका व्यवहार सभ्य दिखाई नहीं दे रहा। इसके अलावा ऐसा कोई लक्षण नजर नहीं आ रहा कि वह विश्वभर में फैले कट्टर इस्लामिक आतंकी संगठन, जैसे कि अल कायदा की मदद बंद करने जा रहा है। यह देखना बाकी है कि चीन के शिनजियांग प्रांत के वीगर मुस्लिमों से आने वाली मदद की गुहार पर तालिबान की प्रतिक्रिया क्या रहेगी।
लेखक पूर्व राजनयिक हैं।