शमीम शर्मा
एक बार एक चीते और गधे में बहस हो गई कि घास हरी है या नीली। गधा बार-बार दोहराये जा रहा था कि घास नीली होती है और चीता अपने पक्ष पर अडिग था कि घास का रंग हरा है। इसी मुद्दे को लेकर गधा जंगल के राजा शेर के सामने उपस्थित हुआ तो सारी बात सुनकर शेर ने कहा- तुम इत्मीनान से जाओ, हम चीते को दंडित करेंगे। स्वयं को विजयी मानकर गधा उछलता-कूदता चला गया। इसके बाद चीते ने शेर से मिलकर प्रश्न किया कि आपने मुझे सजा क्यों सुनाई है, जबकि आपको भी पता है कि घास का रंग हरा होता है। शेर बोला- सजा इस बात की है कि जब तुम्हें पता ही है कि घास का रंग हरा होता है तो तुमने एक मूर्ख से बहस करके अपना और मेरा समय क्यों खराब किया? कुल सार इतना ही है जो लोग पूर्वाग्रहों से ग्रस्त हैं और अपनी धारणाओं पर कट्टर हैं, उन्हें समझाना महामूर्खता है। पर समय इतना विकराल आ गया है कि हर व्यक्ति दूसरे को मूर्ख समझता है या मूर्ख सिद्ध करने में जुटा हुआ है।
एक मनचले का कहना है कि उस आदमी को कोई मूर्ख नहीं बना सकता, जिसको अक्ल बादाम खाने से नहीं, मां की चप्पल खाने से आई हो। वैसे ज्यादा समझदार और मूर्ख में ज्यादा फर्क नहीं होता क्योंकि ये दोनों ही किसी की भी नहीं सुनते। उन्हें बस यही लगता है कि वे ठीक हैं और बाकी सारी दुनिया गलत। मूर्ख व्यक्ति की पहचान उसकी वाचालता से होती है जबकि मौन बुद्धिमान की पहचान है। सारा समाज चारित्रिक गुणों की बजाय कपड़ों से व्यक्ति को आंकने की मूर्खता में जुटा हुआ है। सारे पशुओं में गधे को मूर्ख का खिताब मिला है जबकि इसका कारण आज तक अज्ञात है। घर-घर में रखे टीवी को भी बुद्धू बॉक्स कहा जाता है। पर मेरी मान्यता है कि टीवी बुद्धू बॉक्स नहीं है बल्कि उसके सामने जो बैठे हैं, वे मूर्ख हैं क्योंकि अपना बहुमूल्य समय तो गंवाते ही हैं और साथ में आंखों की रोशनी को भी मद्धम कर लेते हैं।
एक बात कभी किसी की समझ में नहीं आ सकती कि औरतें अक्सर कहती मिलेंगी कि मर्द मूर्ख होते हैं। और साथ ही वे यह कहने से भी नहीं चूकती हैं कि हम पुरुषों से कम नहीं हैं।
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एक बर की बात है अक रामप्यारी लाड़ सा लड़ाते होये अपणे घरआले नत्थू तै बोल्ली— देखते-देखते अपणे ब्याह नैं आज पूरे बीस साल हो लिये। नत्थू नाड़ झटकते होये बोल्या— देखते-देखते तेरे बीस साल पूरे होये होंगे, मेरे तो सुनते-सुनते होये हैं।