अनूप भटनागर
वर्ष 2022 के दौरान न्यायपालिका के समक्ष आने वाली नई चुनौतियों के अलावा फिलहाल इस साल देश की शीर्ष अदालत के पास पहले से ही लंबित मामलों की लंबी सूची है। इसमें लंबित राजद्रोह के अपराध से संबंधित भारतीय दंड संहिता के प्रावधान की संवैधानिकता, जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने संबंधी अनुच्छेद 370 खत्म करने, नागरिकता संशोधन कानून की संवैधानिकता, राज्यों में स्थानीय निकाय के चुनावों में ओबीसी आरक्षण, विभिन्न धर्मों में महिलाओं के अधिकारों से संबंधित विवाद आदि पर सुविचारित व्यवस्था की अपेक्षा है। इस दौरान देश को वर्तमान प्रधान न्यायाधीश सहित तीन प्रधान न्यायाधीशों की कार्यशैली से रू-ब-रू होने का अवसर मिलेगा।
इस दौरान न्यायालय को बहुचर्चित स्पाईवेयर पेगासस का कथित रूप से इस्तेमाल कर भारतीय नागरिकों की जासूसी मामले पर भी अपनी व्यवस्था देनी है। इस प्रकरण में न्यायालय ने विशेषज्ञों का एक दल गठित किया था जिसे सारे तथ्यों का अध्ययन करके अपनी रिपोर्ट देनी थी।
इसी तरह, न्यायालय 2002 के गुजरात दंगों से संबंधित कतिपय मामलों की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल द्वारा राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री और कुछ अन्य लोगों को क्लीन चिट देने के खिलाफ जाकिया जाफरी की याचिका पर अपनी व्यवस्था देगा। इन दंगों के दौरान गुलबर्ग सोसायटी में हुई हिंसा में जाकिया के पति और कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी भी मारे गए थे। इसके अलावा, कोविड-19 वैश्विक महामारी से उत्पन्न परिस्थितियों और इससे निपटने के सरकारों के उपायों, गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून की संवैधानिकता, सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की आजादी का दुरुपयोग सहित कई अन्य महत्वपूर्ण मामलों में न्यायालय की सुविचारित व्यवस्था की अपेक्षा है। शीर्ष अदालत में करीब 69,855 मामले लंबित हैं। इनमें संविधान पीठ के विचारार्थ 422 मामले भी शामिल हैं।
यह कहना मुश्किल है कि संविधान पीठ के विचारार्थ मामलों में कब सुनवाई होगी क्योंकि पांच, सात और नौ सदस्यीय संविधान पीठ का गठन बहुत आसान नहीं होता है। पांच सदस्यीय संविधान पीठ का गठन तो फिर भी हो जाता है लेकिन सात और नौ सदस्यीय पीठ का गठन करते समय पहले से लंबित अन्य मामलों की स्थिति और न्यायाधीशों की उपलब्धता को भी ध्यान में रखा जाता है। इस समय, संविधान पीठ के विचारार्थ मामलों में 135 मामले नौ सदस्यीय संविधान पीठ की व्यवस्था के इंतजार में हैं। इन मामलों में पांच तो मूल मामले हैं और 130 इससे संबद्ध मसले हैं।
इसी तरह, सात सदस्यीय संविधान पीठ के विचारार्थ 15 मामले हैं, जिनमे सात मामले मूल हैं और आठ इनसे संबद्ध हैं । पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भी 272 मामले विचारार्थ हैं। इनमें 38 मूल मामले हैं और 234 इनसे संबद्ध हैं।
देश को वर्ष 2022 में तीन प्रधान न्यायाधीश देखने को मिलेंगे। वर्तमान प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण 26 अगस्त तक न्यायपालिका के मुखिया रहेंगे। इसके बाद न्यायमूर्ति उदय यू. ललित प्रधान न्यायाधीश बनेंगे जो आठ नवंबर तक इस पद को सुशोभित करेंगे। न्यायमूर्ति ललित के सेवानिवृत्त होने पर आठ नवंबर को न्यायमूर्ति डॉ. धनंजय वाई. चंद्रचूड़ देश के प्रधान न्यायाधीश बनेंगे और 10 नवंबर, 2024 तक इस पद पर रहेंगे। बहुत लंबे समय बाद देश को दो साल की अवधि के लिए प्रधान न्यायाधीश मिलेगा।
न्यायमूर्ति डॉ. धनंजय वाई. चंद्रचूड़ के पिता न्यायमूर्ति वाईएस चंद्रचूड़ भी देश के प्रधान न्यायाधीश पद से सेवानिवृत्त हुए थे। न्यायमूर्ति वाईएस चंद्रचूड़ संभवत: सबसे लंबी अवधि तक देश के प्रधान न्यायाधीश रहे। वह 22 फरवरी, 1978 को देश के प्रधान न्यायाधीश नियुक्त हुए थे और सात साल से भी ज्यादा समय तक इस पद पर रहे। वह 11 जुलाई, 1985 को प्रधान न्यायाधीश पद से सेवानिवृत्त हुए थे। नयी सदी में, इससे पहले, न्यायमूर्ति केजी बालाकृष्णन और न्यायमूर्ति एसएच कपाड़िया ही ऐसे प्रधान न्यायाधीश हुए, जिनका कार्यकाल दो साल या इससे अधिक था।
इस वर्ष उच्चतम न्यायालय के आठ न्यायाधीश सेवानिवृत्त होंगे। इनमें प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण, न्यायमूर्ति उदय यू. ललित, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी, न्यायमूर्ति विनीत सरन, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी शामिल हैं। सेवानिवृत्त होने वाले न्यायाधीशों में सबसे पहले न्यायमूर्ति सुभाष रेड्डी हैं जो चार जनवरी को सेवानिवृत्त हो जाएंगे। इसके बाद, न्यायमूर्ति विनीत सरन 10 मई, न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव सात जून, न्यायमूर्ति खानविलकर 29 जुलाई, प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमण 26 अगस्त, न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी 23 सितंबर, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता 16 अक्तूबर और न्यायमूर्ति ललित आठ नवंबर को सेवानिवृत्त होंगे।
उम्मीद की जानी चाहिए कि 2022 में उच्चतम न्यायालय ही नहीं बल्कि उच्च न्यायालय और अधीनस्थ अदालतें भी पांच करोड़ से ज्यादा लंबित मुकदमों का तेजी से निस्तारण करने का प्रयास करेंगी। उच्च न्यायालयों में 56,50,485 और अधीनस्थ अदालतों में 4,04,589753 मुकदमें लंबित हैं।