अवधेश कुमार
जिन्होंने पिछले 30 वर्ष में बदलते भारत को देखा है, वे अगर अतीत में जाएं तो स्वीकार करेंगे कि उस समय आज के भारत की कल्पना तक नहीं की जा सकती थी। आज अगर भारत की अर्थव्यवस्था का आकार दुनिया की विकसित 10 अर्थव्यवस्थाओं में शुमार है तो इसका नक्शा बनाने से लेकर नींव डालने और स्तंभ, दीवार आदि खड़ा करने का श्रेय नरसिम्हा राव को देना होगा। निस्संदेह, उस समय मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे। जाहिर है, नरसिम्हा राव के अंतर्मन में भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर भविष्य की कल्पना थी।
24 जुलाई, 1991 को जब मनमोहन सिंह ने बजट भाषण आरंभ किया तो बड़े-बड़े अर्थशास्त्रियों को भी भनक नहीं थी कि अर्थव्यवस्था के आमूल रूपांतरण का दस्तावेज सामने आने वाला है। मनमोहन सिंह ने अपने भाषण के दूसरे पैराग्राफ से ही अर्थव्यवस्था के गहरे संकट का विवरण आरंभ किया। बताया कि राजनीतिक अस्थिरता, भुगतान असंतुलन तथा खाड़ी संकट के कारण हमारी अर्थव्यवस्था के प्रति अंतर्राष्ट्रीय विश्वास काफी कमजोर हुआ है। जून 1991 में केवल 110 करोड़ डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार हमारे पास था, जिससे सिर्फ 15 दिन का आयात बिल चुकाया जा सकता था। तीन वर्ष मानसून अच्छा होने और फसलों की पैदावार बेहतर होने के बावजूद आम उपयोग की वस्तुओं के दाम बेतहाशा बढ़ गए थे। मनमोहन सिंह ने कहा भी कि अर्थव्यवस्था का संकट काफी गहरा एवं तीखा है। लालफीताशाही यानी लाइसेंस और परमिट प्रणाली के कारण किसी को निवेश करने, उद्योग लगाने आदि के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते थे, इसकी चर्चा यहां आवश्यक नहीं। यह वही समय था जब पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के कार्यकाल में 67 टन सोना बैंक ऑफ इंग्लैंड में गिरवी रखकर कर्ज लेना पड़ा था।
हालांकि, बजट के पहले ही 24 जून, 1991 से लेकर 24 जुलाई, 1991 तक के एक महीने में राव और मनमोहन की जोड़ी ने अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में नये अध्याय लिखने आरंभ कर दिए थे। भारतीय रुपये का 20 प्रतिशत अवमूल्यन हुआ, नयी व्यापार नीति की घोषणा हुई, 6 जुलाई से 18 जुलाई तक तीन किश्तों में करीब 45 टन सोना इंग्लैंड भेजा गया, जिसके बाद भारत 4000 लाख डाॅलर कर्ज लेने की स्थिति में आ गया था। बजट के बाद उसी दिन देश की नयी औद्योगिक नीति प्रस्तुत की गई। इस तरह गहराई से देखें तो मानना पड़ेगा कि नरसिम्हा राव के मन में पूरी कल्पना थी जिसे मनमोहन सिंह के साथ मिलकर वे संकट काल में भी साहस के साथ निश्चित समयावधि में सामने लाये।
आज अर्थव्यवस्था में संकट तथा विकास की गति धीमी होने के बावजूद अगर विश्व के निवेशकों के लिए भारत चीन के साथ अनुकूल देश बना हुआ है तो ईमानदारी से यह कहना होगा कि नरसिम्हा राव द्वारा भविष्य की इमारत के लिए बुने गए नक्शे के आधार पर ही यह संभव हुआ है। अगर भारत अंग्रेजों के आने के पहले विश्व के सर्वाधिक अर्थव्यवस्था के आकार वाले यानी जीडीपी वाला देश था, विश्व व्यापार में उसका अंश सर्वाधिक था तो इसके पीछे हमारी सहकारी समाज व्यवस्था थी, जिसमें अर्थ नीति अपने आप समाहित थी। अंग्रेजों ने उसे ध्वस्त कर अपने स्वार्थ के अनुरूप धीरे-धीरे आर्थिक ढांचा विकसित किया जो हमारी कंगाली का कारण बना।
नरसिम्हा राव ने अत्यंत कुशलता से उस स्थिति को संभाला तथा अमेरिका सहित पश्चिमी देशों के साथ नए सिरे से संबंध स्थापित हुए। इनके आधार पर ही आज हम आसियान, पूर्वी एशिया आर्थिक समूह, जी 8, जी 20 आदि में सम्मानजनक स्थान बनाने में सफल हैं।