
अशोक उपाध्याय
कर्नाटक में एक बार फिर चुनावी राजनीति का आगाज हो चुका है। सत्तारूढ़ भाजपा, कांग्रेस और जनता दल एस सत्ता में वापसी के लिए उम्मीदवारों के चयन करने के साथ मतदाताओं को रिझाने में जुटे हैं। विधानसभा चुनाव का ऐलान इस महीने के अंत तक हो सकता है। चुनाव आयोग ने विधानसभा चुनाव की तैयारियों का जायजा लिया है। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा कि राज्य विधानसभा का कार्यकाल 24 मई को पूरा होगा लिहाजा चुनावी प्रक्रिया इससे पहले ही पूरी हो जाएगी।
सत्तारूढ़ भाजपा हर बार की तरह चुनावी तैयारियों को लेकर पहले से तत्पर हो गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का एक और कर्नाटक दौरा हो चुका है जिसमें 16,000 करोड़ रुपये की परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया गया। मोदी ने कांग्रेस और जनता दल एस के गढ़ मांड्या में रोड शो किया। चिरपरिचित अंदाज में मोदी ने कांग्रेस पर तीखे हमले किए और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को निशाने पर लिया।
मोदी ने मांड्या में जनसभा में कटाक्ष किया कि कांग्रेस मोदी की कब्र खोदने में व्यस्त है और मोदी गरीबों का जीवन आसान करने में व्यस्त हैं। इसके बाद उन्होंने हुबली-धारवाड़ में भी राहुल गांधी पर निशाना साधा और कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि लंदन में भारत के लोकतंत्र पर सवाल उठाए गए। भारत के लोकतंत्र की जड़ें हमारे सदियों के इतिहास से सींची गई हैं।
राहुल गांधी ने कर्नाटक के हिरियूर में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राज्य सरकार और भाजपा पर जबर्दस्त हमला बोला था। राहुल ने आरोप लगाया कि कर्नाटक सरकार देश की सबसे भ्रष्ट सरकार है।
राहुल के बाद मोदी के चुनावी बाणों से भाजपा उत्साहित है लेकिन उसके लिये आगे की राहें आसान नहीं दिख रही हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेता और गृहमंत्री अमित शाह को चुनावी बेरोमीटर मापने का विशेषज्ञ माना जाता है। भाजपा हाईकमान ने कर्नाटक के बड़े लिंगायत नेता बीएस येदियुरप्पा को उम्र का हवाला देकर मुख्यमंत्री पद से हटा दिया था लेकिन चुनाव के नजदीक आते ही एक बार फिर येदियुरप्पा कर्नाटक की चुनावी राजनीति में भाजपा की डगमगाती नैया के खवैया बन गये हैं।
खुद अमित शाह ने कर्नाटक के पिछले दौरे में मोदी के साथ येदियुरप्पा को राज्य में तवज्जो देने की बात की थी। शाह ने येदियुरप्पा से भेंट की थी जो इस मायने में अहम है कि एक बार फिर नेतृत्व यह सुनिश्चित करना चाहता है कि येदियुरप्पा हाशिये पर धकेले जाने का अहसास न करें। पार्टी को डर है कि यदि येदियुरप्पा निष्क्रिय होने का फैसला करते हैं तो उसका चुनाव पर नकारात्मक असर पड़ेगा।
कर्नाटक उन आधा दर्जन राज्यों में शामिल है जहां इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं। भाजपा 2018 के कर्नाटक चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी लेकिन उसे बहुमत से नौ सीटें कम मिली थीं। कुल 224 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा ने 104 सीटें जीती थीं।
कांग्रेस ने जनता दल (एस) के साथ चुनाव के बाद गठबंधन किया और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के बेटे एचडी कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने थे लेकिन उनकी सरकार 14 महीने चल पाई और जुलाई, 2019 में कांग्रेस और जनता दल (एस) के विधायकों ने पाला बदल लिया जिससे भाजपा को सरकार बनाने का एक और मौका मिल गया।
भाजपा तब से कर्नाटक में शासन कर रही है। पहले अनुभवी नेता बीएस येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बने फिर जुलाई, 2021 में उनके स्थान पर बसवराज बोम्मई को नियुक्त किया गया। बोम्मई सरकार का कमजोर प्रदर्शन भाजपा को कर्नाटक में अपनी जीत की संभावनाओं के बारे में पर्याप्त विश्वास दिलाने में विफल रहा है। भाजपा कर्नाटक को दक्षिणी राज्यों में राजनीति में प्रवेश द्वार के रूप में देखती है। भाजपा के लिए ये चुनाव इसलिये भी अहम है कि कर्नाटक के पड़ोसी राज्य तेलंगाना में इस साल दिसंबर में चुनाव होने हैं जिस पर वह अपनी प्रतिष्ठा को दांव पर लगाकर अभी से तैयारी में जुटी है।
तीन पूर्वोत्तर राज्यों- त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय के विधानसभा चुनावों के बाद कर्नाटक का चुनाव भाजपा के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है। इसके बाद मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी चुनाव होंगे जहां पिछली बार कांग्रेस ने बाजी मार ली थी। हालांकि भाजपा ने मध्यप्रदेश में जोड़तोड़ कर फिर से सरकार बना ली थी।
कर्नाटक में हार न केवल तेलंगाना में चुनाव को प्रभावित कर सकती है बल्कि अन्य राज्यों में होने वाले चुनावों से पहले भाजपा के लिए गलत संदेश जा सकता है। कांग्रेस के लिये कर्नाटक एक अवसर है जिससे वह अपने खोये हुए जनाधार को फिर से हासिल कर सकती है। जनता दल एस ने भाजपा और कांग्रेस से समान दूरी बनाये रखने की बात कही है, लेकिन उसे इस नीति से ज्यादा फायदा नहीं होगा क्योंकि सत्ता में रहकर कुमार स्वामी कुछ खास नहीं कर पाये।
कांग्रेस के लिए कर्नाटक के क्षत्रप मल्लिकार्जुन खड़गे एक तुरूप का पत्ता हैं जो इस समय पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। इस बार कर्नाटक के चुनाव में उनकी अहम भूमिका हो सकती है। वे क्षेत्रीय भाषा कन्नड़ में जनता से सहज संवाद कर सकते हैं। उन्हें कर्नाटक के चुनावी गणित की जानकारी है और वे अपने पुराने अनुभवों का लाभ उठाने में कसर नहीं छोड़ेंगे। बतौर राष्ट्रीय अध्यक्ष उनके लिये राष्ट्रीय स्तर पर खुद को स्थापित करने के लिये भी यह बढ़िया मौका होगा।
लेखक यूनीवार्ता के संपादक रहे हैं।
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