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अदूरदर्शी नीतियों से उपजा प्रदूषण संकट

उद्योग व वाहनों की भूमिका
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दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण के लिए बेहतर है कि सरकार कोरे प्रचार और प्रशासनिक लीपापोती छोड़कर व्यावहारिक समाधान अपनाए। इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के मुताबिक, प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों-वाहनों को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से बाहर स्थानांतरित करने हेतु कड़े नियम लागू करने होंगे।

वर्तमान में दिल्ली की जनसंख्या लगभग 3.46 करोड़ और जनसंख्या घनत्व लगभग 27,000 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। आजादी के बाद, अदूरदर्शी सरकारी तंत्र ने दिल्ली को औद्योगिक नगरी बना दिया, जिसके परिणामस्वरूप यह दुनिया भर में सबसे ज्यादा प्रदूषित राजधानी बन गई। वर्ष 1901 में दिल्ली की जनसंख्या 4 लाख थी, जो 1947 में केवल 7 लाख हुई, लेकिन अगले 4 वर्षों में ही दुगनी से अधिक होकर 17 लाख हो गई। वर्ष 1951 की जनगणना के अनुसार, दिल्ली की कुल जनसंख्या 17,44,072 में से 10,26,762 लोग दिल्ली के बाहर पैदा हुए थे। सरकार ने शरणार्थियों को बसाने और उनके पुनर्वास व रोजगार आदि देने के लिए मुफ्त और रियायती दरों पर मकान, दुकान, उद्योग, बिजली, सस्ते ऋण आदि जैसी सुविधाएं प्रदान की। उद्योग और वाणिज्य क्षेत्र को दी गई भारी रियायतों और बेहतर रोजगार सुविधाओं की बदौलत, आजादी के बाद दिल्ली में प्रवासी जनसंख्या प्रत्येक दशक में लगभग दुगनी होती गई।

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अगस्त, 2025 में लगभग 73 लाख यानी 21 प्रतिशत दिल्लीवासी राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन में मुफ्त राशन ले रहे हैं, जो राजधानी की गरीबी की पोल खोल रहे हैं। कई हजार अवैध गंदी बस्तियों, झुग्गी-झोपड़ी कॉलोनियों का जमावड़ा, भीड़-भाड़ वाली टूटी-फूटी धूल से भरी सड़कें, प्रदूषित वायु और यमुना का प्रदूषित पानी, अब दिल्ली की पहचान बन गए हैं।

दिल्ली में 1950 तक, केवल 8 हजार छोटे-बड़े उद्योग थे, जो 2021-22 में बढ़कर 8.75 लाख और वर्ष 2025 में एक मिलियन से ज्यादा हो गए। इनमें 40 लाख से ज्यादा लोग कार्यरत हैं, जो दिल्ली में कर्मचारियों की कुल संख्या का लगभग 30 प्रतिशत हैं। फरवरी, 2025 के आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में लगभग 39 लाख पेट्रोल-डीजल चलित और 57 लाख इलेक्ट्रिक वाहन हैं। जबकि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 3.3 करोड़ पेट्रोल-डीजल से चलने वाले वाहन हैं। दिल्ली के दोषपूर्ण शहरीकरण नियोजन मॉडल को अपनाकर पड़ोसी राज्यों ने भी 90 किलोमीटर घेरे में 50 से ज्यादा औद्योगिक नगर बसाकर, दिल्ली में प्रदूषण को कई गुणा बढ़ाया है।

प्रेस सूचना ब्यूरो द्वारा 31 दिसंबर, 2024 को दिए आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली का वार्षिक औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक कोविड वर्ष 2020 को छोड़कर कई दशकों से खराब श्रेणी में रहा है। जहां मानसून वर्षा के 3 महीनों (जुलाई-सितंबर) को छोड़कर पूरे वर्ष एक्यूआई 200 से ज्यादा रहता है, और अक्तूबर महीने में मानसून वापसी पर वायु गति कम होने से एक्यूआई 300 के पार चला जाता है, और सर्दी के 4 महीनों नवम्बर-फरवरी में हिमालय से आने वाली ठंडी हवाओं से तापमान गिरने के कारण, प्रदूषण के कणों का घनत्व वायुमंडलीय निचली सतह पर बढ़ जाने से वायु प्रदूषण बहुत गंभीर होकर जीवों की जान को खतरा बन जाता है।

आईपीसीसी द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, दिल्ली में कुल वायु प्रदूषण में अकेले वाहनों से होने वाले उत्सर्जन का योगदान लगभग 72 प्रतिशत है, जबकि उद्योग, सड़कों और निर्माण गतिविधियों से उत्सर्जन होने वाला धुआं-धूल और दूषित जल आदि दूसरे मुख्य कारक हैं।

वैज्ञानिक तथ्यों के विपरीत, कई दशकों से सरकारी तंत्र दिल्ली में वायु प्रदूषण के लिए किसान और धान पराली को खलनायक के रूप में प्रचारित करके, वायु प्रदूषण के असली गुनहगार वाहन-उद्योग को बचा रहा है। भारत सरकार के वायु गुणवत्ता जांच केंद्र के अध्ययन के अनुसार वर्ष 2025 में 26 नवम्बर तक (330 दिन), दिल्ली के वायु प्रदूषण में पराली का योगदान लगभग नगण्य रहा, जो सिर्फ 4 दिन 10 प्रतिशत से अधिक रहा है।

सरकार करोड़ों रुपये वार्षिक व्यय करके, अव्यावहारिक एक्स सीटू विधि (खेत से पराली के बंडल बनाकर उद्योग में उपयोग), बायोडीकंपोजर छिड़काव से पराली प्रबंधन आदि से किसानों को भ्रमित कर रही है। 6 नवंबर, 2025 को, हरियाणा के मुख्य सचिव ने अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया कि प्रदेश में 40 लाख एकड़ धान फसल से उत्पादित कुल 12 मिलियन टन पराली में से मात्र 1.9 मिलियन टन (लगभग 16 प्रतिशत) का प्रबंधन एक्स सीटू विधि से हुआ है। जबकि बाकी 84 प्रतिशत धान पराली का प्रबंधन किसानों ने इन-सीटू विधि (पराली को खेत में दबाकर जैविक खाद बनाना) आदि से किया। इसलिए सरकार को पर्यावरण हितैषी इन-सीटू समाधान के लिए किसानों को 2500 रुपये प्रति एकड़ प्रोत्साहन देना चाहिए। इसके साथ ही, वर्ष 2018 के आदेश ‘कम्बाइन हार्वेस्टर पर एसएमएस अनिवार्य’ करने को सख्ती से लागू करना चाहिए।

वायु प्रदूषण के मुख्य कारकों में वाहन-उद्योगों से उत्सर्जन के खिलाफ सरकार द्वारा ठोस कार्रवाई नहीं करना दुर्भाग्यपूर्ण है। वहीं सरकार अव्यावहारिक कृत्रिम बारिश, सड़कों पर पानी छिड़काव जैसे प्रचार से जनता को भ्रमित कर रही है। एक जनहित याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने 1996 में दिल्ली में प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को शहर से बाहर स्थानांतरित करने के आदेश दिए थे। इस निर्णय ने भारत में पर्यावरण कानून में ‘पूर्ण दायित्व सिद्धांत’ और ‘प्रदूषक भुगतान सिद्धांत’ को स्थापित किया। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को सरकारी तंत्र ने वोट राजनीति के चलते प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया। आज वायु प्रदूषण फैलाने और यमुना जल को प्रदूषित करने वाले उद्योग और पेट्रोल-डीजल चलित करोड़ों वाहन लगातार प्रदूषण फैला रहे हैं।

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