भरत झुनझुनवाला
कुछ समय पूर्व तमाम वैश्विक संस्थाओं ने आकलन किया था कि 2021-22 में भारत की अर्थव्यवस्था 10 से 15 प्रतिशत की द्रुत गति से आगे बढ़ेगी। लेकिन कोविड की इस दूसरी लहर ने उस आकलन को निरस्त कर दिया है। इसी प्रकार ऑक्सफोर्ड इकोनाॅमिक्स ने आकलन किया था कि 2021 में कुछ गिरावट आने के बाद 2022 से विश्व अर्थव्यवस्था पुरानी गति से चलती रहेगी। वह आकलन भी निरस्त होता ही जान पड़ता है। इस दुर्गम परिस्थिति में सरकार की ऋण लेकर संकट को पार करने की नीति बहुत ही भारी पड़ेगी। 2020-21 में ऋण लेकर यदि 2021-22 में अर्थव्यवस्था चल निकलती तो संभवतः उस ऋण की अदायगी की जा सकती थी। लेकिन यदि 2021-22 और इसके आगे 2022-23 में यह संकट बना रहा तो ऋण के बोझ से अर्थव्यवस्था इतनी दब जायेगी कि आगे निकलना ही कठिन होगा। जिस व्यक्ति की नौकरी छूट गयी हो वह उत्तरोत्तर ऋण लेकर अपने जीवन स्तर को बनाये रखे और नौकरी दुबारा न लगे तो अंत में उसे भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि कोविड की वर्तमान दूसरी लहर आखिरी न होगी। कई देशों में तीसरी और चौथी लहर भी आ चुकी है। कोविड वायरस म्यूटेंट कर रहा है। आने वाले समय में कोविड के नए म्यूटेंट बन सकते हैं, जिनसे यह महामारी दुबारा फैल सकती है। इविन कालवे ने नेचर डाॅट काॅम वेबसाइट पर लिखा है कि जनवरी, 2021 में बायोटेक कम्पनी नोवावाक्स ने सूचना जारी की कि उनके द्वारा खोजे गए कोविड के टीके के क्लिनिकल ट्रायल में पता लगा कि वह इंग्लैंड के कोविड वैरिएंट पर 85 प्रतिशत सफल था, लेकिन दक्षिणी अफ्रीका के वैरिएंट पर मात्र 50 प्रतिशत सफल था। अतः वर्तमान टीके भविष्य में उत्पन्न होने वाले कोविड वैरिएंट पर संभवतः सफल न हों।
कालवे के अनुसार वायरसों का म्यूटेंट करना एक सामान्य प्रक्रिया है। फ्लू के वायरस भी लगातार म्यूटेंट करते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आस्ट्रेलिया में एक केंद्र बनाया है जो कि सम्पूर्ण विश्व के फ्लू के वायरस पर नजर रखता है। फ्लू के नये वैरिएंट के उत्पन्न होने पर अध्ययन करता है कि वह वैरिएंट कितना फैल रहा है। यदि वह वैरिएंट किसी विशेष स्थान में सीमित नहीं है और चारों तरफ फैल रहा है तो वे तत्काल नये टीके बनाने को कदम उठाते हैं। इसी प्रकार कोविड वायरस वर्तमान में म्यूटेट कर रहा है और आने वाले समय में यह लगातार म्यूटेट कर सकता है। ऐसे में उसका सामना करने के लिए हमें लगातार नये टीके बनाने की जरूरत पड़ सकती है। लेकिन कोविड का संकट फ्लू की तुलना में बहुत गहरा है। फ्लू का टीका बनने में यदि एक वर्ष लग जाए तो नुकसान होता है लेकिन हाहाकार नहीं मचता है। कोविड का टीका बनाने में यदि एक वर्ष का समय लग जाए तो सम्पूर्ण विश्व में हाहाकार मच सकता है।
कोविड का टीका बनाने का दूसरा तरीका फाज थेरैपी है। फाज वायरस होते हैं, जिनका मूल रूप कोविड अथवा फ्लू के वायरस जैसा ही होता है। लेकिन ये लाभप्रद वायरस होते हैं। फाज हमारे शरीर में दो प्रकार से काम करते हैं। ये सीधे रोगकारक बैक्टीरिया जैसे मलेरिया या टाइफाइड के बैक्टीरिया पर आक्रमण करके बैक्टीरिया के शरीर में प्रवेश करते हैं। बैक्टीरिया के शरीर के तत्वों का उपयोग करके ये स्वयं को मल्टीप्लाई कर लेते हैं। जैसे एक लाभप्रद फाज ने मलेरिया के बैक्टीरिया में प्रवेश किया तो वह 100 लाभप्रद फाज बनकर निकलता है। इस प्रकार जो हमारे शरीर में बैक्टीरिया सम्बन्धी रोग हैं उनका उपचार फाज के द्वारा किया जा सकता है। पूर्वी यूरोप के देश जार्जिया में इस दिशा में बहुत कार्य किया गया है। वहां पर फाज से क्रोनिक रोगों का उपचार लगातार किया जा रहा है।
फाज दूसरी तरह से भी हमारे शरीर में काम करते हैं। ये शरीर में प्रवेश करके अपने समकक्ष दूसरे फाज के प्रवेश को रोक सकते हैं। पोलैंड के प्रोफेसर एन्द्रेज गोर्सकी के अनुसार हमारे फेफड़ों में जिन कोशिकाओं में कोविड का वायरस प्रवेश करना चाहता है, उन कोशिकाओं में ये फाज प्रवेश करके कोविड के वायरस के प्रवेश को रोक सकते हैं। इसी क्रम में तुर्की के पाक ग्रुप ऑफ कम्पनियों के मर्ट सेलीमुगलू ने कैप्सिड एंड टेल पत्रिका में लिखा है कि कोविड वायरस का सामना करने का एक उपाय यह है कि फाज के मिश्रण का उपयोग करके वैक्सीन बनाई जाए। फाज के मिश्रण को मनुष्य को देने पर उसके शरीर में तमाम प्रकार के फाज उपस्थित हो जायेंगे। उनमें से जिस फाज के समकक्ष बैक्टीरिया शरीर में उपलब्ध होंगे उन बैक्टीरिया को वह फाज समाप्त कर देगा। और जिन कोशिकाओं को जो फाज रोक सकेगा उनमें वह प्रवेश करके कोविड के प्रवेश को भी रोक सकेगा। मिश्रण में दिए गए दूसरे फाज जो उपयोगी नहीं होंगे वे स्वयं समाप्त हो जायेंगे। जैसे किसान द्वारा खेत में मिश्रित खेती की जाती है और एक ही खेत में तीन फसलों के बीज बो दिए जाते हैं। तीनों में जिस फसल के अनुकूल मौसम होगा वह फसल सफल कामयाब हो जायेगी और बाकी दोनों फसलें समाप्त हो जायेंगी। इसी प्रकार सेलीमुगलू का कहना है कि हम मिश्रित फाजों से टीका बनाकर मनुष्य को दे सकते हैं जो कि कोविड के विभिन्न वैरिएंट को समाप्त करने में सफल हो सकता है।
इस दिशा में अपने देश में विशेष उपलब्धि गंगा नदी की है। नेशनल एनवायरन्मेंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टिट्यूट के अनुसार गंगा में 200 प्रकार के फाज पाए जाते हैं, जिसकी तुलना में यमुना और नर्मदा नदी में केवल 20 प्रकार के। अतः हम गंगा नदी के मिश्रित फाजों का उपयोग करके कोविड का टीका बना सकते हैं। मेरिलैंड अमेरिका के फेज थेरेप्यूटिक्स कम्पनी ने फाज आधारित कोविड का टीका बनाया है और उसकी फेज वन ट्रायल चल रही है। विश्व में चल रहे ये प्रयोग हमें उत्साहित करते हैं कि कोरोना वायरस के संक्रमण का उपचार गंगाजल से करने का अध्ययन करें।
वर्तमान संकट से शीघ्र ही छुटकारा मिलने वाला नहीं दिख रहा है। सरकार को सर्वप्रथम टीका बनाने में भारी निवेश करना चाहिए विशेषकर देश में उपलब्ध गंगा के फाज अथवा आयुर्वेद इत्यादि से। दूसरे, ऋण लेकर अपने खर्चों को सामान्य रूप से बनाये रखने की नीति को त्याग कर सरकारी खर्चों में 50 प्रतिशत की कटौती तत्काल कर लेनी चाहिए ताकि हम हम ऋण के बोझ से न दबें। तीसरे, तात्कालिक विषम परिस्थिति में सरकार को आक्सीजन, आक्सीजन कन्सन्ट्रेटर, टीका इत्यादि की जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात करना चाहिए। लेकिन दीर्घकाल के लिए इनके साथ तमाम आयातों पर आयात कर बढ़ाना चाहिए, जिससे आने वाले संकट में हमें ऑक्सीजन के लिए आयातों का सहारा न लेना पड़े।
लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं।