जी. पार्थसारथी
अहंकारी इमरान खान के इस भ्रम कि इस्लामिक जगत में पाकिस्तान की भूमिका बहुत महती है और उनके कार्यकाल में विश्व की बड़ी ताकतें जैसे कि रूस और अमेरिका के साथ पाकिस्तान के मौजूदा रिश्तों ने इस कर्जे में डूबे देश को और मुश्किलों में डाल दिया है। इमरान खान को अक्सर ‘चुनकर आया’ (चुनाव में) की जगह ‘चुना हुआ’ (मेहरबानी से) कहा जाता है। यह कोई छिपा रहस्य नहीं है कि पाकिस्तानी सेना के पैंतरे ही थे, जिनकी वजह से इमरान खान को प्रधानमंत्री की कुर्सी नसीब हुई है। भारत और भारतीयों के प्रति नफरत इमरान खान की रगों में बहती है। कट्टरपंथी इस्लामिक गुटों के साथ इमरान का राब्ता काफी पुराना है और अगाध भी, जिसके चलते उन्हें ‘तालिबान खान’ भी कहा जाता है। इमरान को राजनीति में लाने वालों में एक आईएसआई के पूर्व प्रमुख ले. जनरल हमीद गुल हैं। यह वह शख्स है, जिसकी करतूतों में अनेकानेक अफगान मुजाहिदीन गुटों की सृजना के अलावा भारत के जम्मू-कश्मीर और पंजाब के आतंकवादियों को तैयार करना और कैंपो में ट्रेनिंग दिलवाने के साथ इन सबको धन, शस्त्र मुहैया करवाना था।
जनरल जिया के अलावा पाकिस्तान का शायद ही कोई अन्य नेता इतनी ज्यादा कट्टर इस्लामिक सोच रखता होगा, जितनी इमरान खान की है। हाल ही में उन्होंने आतंकवादी सरगना ओसामा बिन लादेन को शहीद करार दिया था। अफगानिस्तान के लिए अमेरिका के विशेष दूत ज़लमई खलीलज़ाद मुख्यतः पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष कमर जावेद बाजवा से राब्ता रखना पसंद करते हैं, जबकि इमरान खान की हैसियत दूर खड़े दर्शक की है। बतौर एक कट्टर इस्लामिक व्यक्तित्व इमरान खान को यकीन था कि वे सऊदी अरब के नेतृत्व वाले इस्लामिक जगत को भारत के खिलाफ करने में आसानी से सफल हो जायेंगे। जाहिर है ऐसा करते वक्त वे भूल जाते हैं कि वास्तव में यह उनके प्रतिद्वंद्वी नवाज़ शरीफ हैं, जिन्हें सऊदी अरब के सुल्तानों ने सबसे ज्यादा इज्जत दी है। अगर जनरल मुशर्ऱफ पर सऊदी अरब का अंकुश न रहता तो उन्होंने कब का नवाज़ शरीफ को सूली पर लटका दिया होता लेकिन सऊदी हस्तक्षेप के बाद उन्हें न केवल नवाज शरीफ को अंदरखाते छोड़ना पड़ा था बल्कि पनाह के लिए सऊदी अरब जाने दिया था। मुशर्ऱफ को भली भांति पता था कि सऊदी अरब की हुक्मउदली करने या नवाज़ शरीफ को ठिकाने लगाने का मतलब है सऊदियों की रुष्टता मोल लेकर पाकिस्तान को कंगाल बनाना।
जब इमरान ने पाया कि जम्मू-कश्मीर के बारे में भारत के खिलाफ सऊदी अरब से मनमाफिक प्रतिक्रिया नहीं करवा पाए हैं तो उपरोक्त समीकरणों की परवाह न करते हुए उन्होंने सऊदी अरब से सीधे टक्कर लेने की राह चुनी। उनके बड़बोले विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने चेतावनी देते हुए कह डाला कि हमारे आह्वान पर सऊदी अरब ने भारत की भर्त्सना करने वाले प्रस्ताव को पेश करने से बचाने की खातिर अगर 57 सदस्यीय ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कंट्रीस (ओआईसी) की बैठक न बुलाई तो पाकिस्तान सऊदी अरब को दरकिनार कर खुद सम्मेलन बुला लेगा। इस सिलसिले में मलेशिया, तुर्की, पाकिस्तान और दीगर इस्लामिक देशों को अपने साथ जोड़कर नया गुट बनाने का प्रस्ताव पेश कर इमरान खान ने सऊदी अरब को नाराज कर डाला है। सऊदी अरब ने भी त्वरित प्रतिकर्म किया और पाकिस्तान पर बकाया कर्ज फौरन चुकाने को कह दिया। यह देखकर सेनाध्यक्ष बाजवा तुरत-फुरत सऊदी अरब को मनाने वहां जा पहुंचे, लेकिन उनको भी ठंडा इस्तकबाल मिला और युवराज सलमान से भेंट तक समय नहीं दिया गया। हालांकि एक बार फिर चीन ने कर्णधार बनते हुए उसका उधार चुकता किया है।
लेकिन इसके बाद पाकिस्तान के संबंध अरब देशों, खाड़ी के प्रभावशाली सुल्तानों, मिस्र और जॉर्डन के साथ और बिगड़ गए हैं क्योंकि इमरान खान ने यूएई-बहरीन-इस्राइल के बीच बने ताजा राजनयिक संबंधों के तुरंत बाद जो प्रतिक्रिया दी वह इन तीनों के घोर प्रतिद्वंद्वी मुल्कों तुर्की और ईरान द्वारा व्यक्त विचारों की प्रतिध्वनि है, जो इस संधि की मुखर आलोचना कर रहे हैं। दूसरी ओर भारत ने इस्राइल के साथ अपने अच्छे संबंध बनाए रखते हुए ठीक इसी वक्त अरब और इस्लामिक देशों के बीच आपसी प्रतिद्वंद्विता में खुद को फंसने से बचाए रखा है। भारत और खाड़ी के अरब देशों के बीच, खासकर सऊदी अरब के साथ, व्यापार और निवेश काफी बढ़ने को है, जिसके अंतर्गत वे भारत के ऊर्जा क्षेत्र में भारी निवेश करने जा रहे हैं।
जिस तरह इमरान खान ने अपनी विदेश नीति में खरमस्तियां की हैं, इसको लेकर अब देश के अंदर आलोचना और दबाव बढ़ने लगा है, जिससे वह खुद और उनकी सरकार कमजोर पड़ी है। पाकिस्तान की आर्थिक मुश्किलें, खासकर लगातार बढ़ता विदेशी कर्जा और घरेलू बचत एवं विकास की स्थिति शोचनीय है। किंतु इमरान खान अभी भी राजनीतिक विरोधियों जैसे कि नवाज़ शरीफ और बिलावल भुट्टो को सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल करके तंग करने और जेल में डालने को आमादा हैं। हाल ही में नवाज़ शरीफ ने लंदन वाले अपने घर से इमरान पर हमला बोला है। उन्होंने पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के बिलावल भुट्टो द्वारा आयोजित सर्वदलीय सम्मेलन को ऑनलाइन संबोधित करते हुए इमरान खान और सेना की कड़ी आलोचना करने में कोई कसर नहीं रखी। उन्होंने कहा कि ‘राज के ऊपर राज’ कायम करने के बाद सेना अब ‘राज्य से ऊपर राष्ट्र’ बन गई है और यही हमारी सभी समस्याओं की जड़ है। इससे पहले पाकिस्तानी सेना की इस ढंग से इतनी कड़ी आलोचना कभी किसी ने नहीं की थी।
सेना खुद दबाव में है क्योंकि उसके सबसे ज्यादा मुखर अफसर ले. जनरल असीम सलीम बाजवा पर बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। हालांकि इमरान खान इन आरोपों को नकारकर बाजवा को बचाने में जी-जान से लगे हुए हैं। हाल ही में छपी खबरों के मुताबिक पाकिस्तान सिक्योरिटी एंड एक्सचेंड कमीशन समेत अन्य विभागों से जुटाए गए दस्तावेजों के मुताबिक असीम बाजवा के परिजनों (पत्नी, दो छोटे भाई और दो बेटे) के नाम अकूत दौलत है। इसमें बताया गया है कि बाजवा परिवार ‘बाजको ग्रुप’ नामक एक बड़ा व्यापारिक अदारा चला रहा है, जिसकी 4 देशों में 99 कंपनियां हैं और इनकी कुल दौलत 5.27 करोड़ अमेरिकी डॉलर आंकी गई है।
तथ्य बताते हैं कि असीम बाजवा का पैसा बनाने का अभियान वर्ष 2002 में जनरल मुशर्रफ के निजी स्टाफ में नियुक्ति होने से शुरू हुआ था। खुद जनरल मुशर्रफ की जमीन जायदाद लंदन और दुबई में है। उनके उत्तराधिकारी जनरल अशफाक कियानी भी अपनी सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद रहस्यमयी ढंग से देश से चले गए और कुछ साल ऑस्ट्रेलिया में बिताए थे। कियानी के बाद सेनाध्यक्ष बने राहिल शरीफ भी सऊदी अरब में शानदार समय बिता रहे हैं। प्रभावशाली पद पर रहते हुए इन सभी ने अपने लिए कराची, लाहौर और अन्य जगहों पर मुफ्त या नाममात्र की कीमत पर आलीशान बस्तियों में शानदार रिहायशी प्लाट जारी करवा लिए थे। सच में, पाकिस्तानी जनरल बखूबी जानते हैं कि एक सुख- सुविधापूर्ण जिंदगी जीने की राह पर तेजी से कैसे बढ़ना है!
लेखक पूर्व राजनयिक हैं।