राजशेखर चौबे
नाबालिग से दुष्कर्म और हत्या के दोषी को राजा के सामने लाया गया। कौन बनेगा करोड़पति में चार विकल्प दिए जाते हैं परंतु राजा ने अपराधी को दो विकल्प दिए। पहला, फांसी और दूसरा गुप्त सज़ा। स्वाभाविक रूप से उसने दूसरा विकल्प चुना। हम भी चुनाव में कई बार दूसरा विकल्प चुन लेते हैं और पांच या दस साल तक पछताते हैं। उसके साथ भी वही हुआ। दूसरी गुप्त सज़ा थी कोड़े मार-मार कर मौत के घाट उतार देना। रिसोर्ट का रुख करने वाले विधायकों के विकल्पों की जानकारी दुर्लभ है। अलग चाल, चरित्र और चेहरे का दावा करने वाले दल में शामिल होने वाले दक्षिण के एक विधायक ने अलग बयान दिया और बताया कि दो विकल्प दिए गए थे। पहला, नोट और दूसरा, पद। उन्होंने दूसरा विकल्प चुना। पहला विकल्प उन्हें मिला या नहीं इसकी सूचना नहीं है। फिलहाल उन्हें दूसरा विकल्प भी नहीं मिला है। वे किसी पुराने दलबदलू से एक्सपर्ट ओपिनियन ले सकते हैं। शायद हम सबको मालूम है कि दूसरे से पहला अर्जित किया जा सकता है।
जो हिंदी प्रेमी इस बात से दुखी हैं कि देश में अंग्रेजी के लिए एक और हिंदी के लिए दो दबाना पड़ता है। वे अब जान लें कि दूसरे (पद) का महत्व कितना अधिक है। हमारा लोकतंत्र परिपक्व होता जा रहा है। ऐसी पारदर्शिता और स्वीकारोक्ति इंग्लैंड और अमेरिका जैसे पुराने लोकतंत्र के लिए भी अभी तक एक अभिलाषा ही है। केंद्र सरकार को बचाने के लिए देशहित में एक क्षेत्रीय दल के सांसदों के बैंक खातों में रुपये डाले गए। सरकार और वे सांसद बच गए क्योंकि संसद में सांसद के व्यवहार को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती। तत्कालीन मुखिया को रिश्वत के आरोप पर अवश्य ही अपने अंतिम समय में न्यायालयों के चक्कर काटने पड़े। इसी तरह हॉर्स ट्रेडिंग (खरीद-फरोख्त) के प्रमाण जुटाने के लिए केंद्रीय एजेंसियों ने पता नहीं कितने चक्कर काटे होंगे परंतु चूंकि पृथ्वी गोल है अतः वे वापस उसी स्थान पर पहुंच जाते हैं। अब वे इन विधायक की मदद ले सकते हैं कि उन्हें किसने और कितना ऑफर दिया था? दूसरों के ऑफर और उनके ऑफर में क्या अंतर था? यह खुलासा धनलोलुप भावी दलबदलुओं के लिए वरदान साबित हो सकता है। प्रायः नेता गोल-मोल बात करते हैं परंतु उन्होंने अपने मन की बात की है और सच्चाई बयान की है। उन्होंने बता दिया कि उन्हें नोट नहीं मंत्री पद चाहिए ताकि वे समाज की सेवा कर सकें। ऐसे समाजसेवी व्यक्ति को समाजसेवा से वंचित रखना नाइंसाफी है। मैं भी ऐसी ही समाज सेवा करना चाहता हूं। पता नहीं मुझे समाज सेवा का सुअवसर कब मिलेगा?