रमेश पठानिया
पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजों ने सबको चौंका दिया है, जिस तरह चार राज्यों में फिर से भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी और पंजाब में भारी बहुमत से आम आदमी पार्टी को सफलता हासिल हुई। आम आदमी पार्टी की नज़र अब हिमाचल में होने वाले चुनावों पर है।
आम आदमी पार्टी का गठन 2012 में दिल्ली में किया गया था, इंडिया अगेंस्ट करप्शन के बड़े आंदोलनों के बाद। उस आंदोलन ने युवाओं को जो सच में यह विश्वास रखते थे कि भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेंका जा सकता है, बढ़-चढ़कर इन आंदोलनों में भाग लेने को प्रेरित किया।
पार्टी के गठन के 10 साल के अंतराल में, हाल ही हुए चुनावों में दिल्ली के साथ-साथ पंजाब में भी अपनी सरकार बना ली। एक ऐसी पार्टी, जिसके पास कोई संगठन नहीं था, लेकिन जिस तरह से उन्होंने युवाओं और शिक्षित वर्ग को संगठित किया, वह तारीफ़ के योग्य है। आम आदमी पार्टी ने पिछले दस साल में बहुत तीव्रता और समझ-बूझ से काम किया है और उत्तरी भारत में अपनी पहचान बनाई है। दिल्ली के अतिरिक्त पंजाब पर भी अपना प्रभुत्व बना लिया है जबकि पार्टी को उत्तराखंड और गोवा में सफलता नहीं मिली।
हिमाचल में सभी चुनावों में दो पार्टियों ने और स्थानीय दलों ने ही चुनाव लड़े हैं। स्थानीय दलों में वे विधायक जिन्हें पार्टी ने टिकट नहीं दिया उन्होंने अपना अलग से दल बनाया। वर्ष 1998 में पूर्व कांग्रेस नेता पंडित सुख राम ने ‘हिमाचल विकास कांग्रेस’ बनाई, और भाजपा का सहयोग किया, चुनाव भी जीता। कुल्लू से महेश्वर सिंह ने 2012 में ‘हिमाचल लोकहित पार्टी’ का गठन किया लेकिन उन्हें चुनाव में सफलता नहीं मिली और 2016 में पार्टी को भंग कर दिया गया और इसके बाद वह फिर से भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए।
हिमाचल में चुनाव इतिहास में मुख्यत: दो दलों ने ही चुनाव लड़े हैं। हां, कम्युनिस्ट पार्टी ने काफी कोशिश की लेकिन उन्हें छात्र राजनीति से ज्यादा विधानसभा चुनावों में इक्का-दुक्का सीट ही मिली। हिमाचल में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी प्रमुख हैं। बाहर की कोई दूसरी पार्टी अभी तक हिमाचल में अपने कदम स्थापित करने में सफल नहीं रही है और प्रदेश में जितने भी छोटे दल बने, उनमें से भी किसी को भी सफलता नहीं मिली।
आम आदमी पार्टी को पंजाब के चुनावों में उम्मीद से ज्यादा सफलता मिली है, 117 सीटों में उनके पास 92 सीट हैं। भगवंत मान आये दिन नयी घोषणाएं कर आम जनता को चौंका रहे हैं जो जनहित में हैं। रूढ़िवादी राजनीति से पंजाब को पहली बार छुटकारा मिला है। पंजाब में बदलाव की नयी बयार है लेकिन आम आदमी पार्टी का यह प्रयोग बाकी राज्यों में सफल नहीं हुआ। आप की नज़र अब हिमाचल में होने वाले चुनावों पर है। आम आदमी पार्टी अगर हिमाचल में किसी तरह से अपनी पहचान बनाने में सफल हो जाए तो फिर उन्हें हरियाणा में चुनावों में अपनी पहचान बनाना और भी आसान हो जायेगा। इस तरह दिल्ली के करीब तीनों राज्यों को आम आदमी पार्टी अपनी सरकार दे सकती है।
पिछले दिनों आम आदमी पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सुरेंद्र जैन को शिमला भेजा था। पार्टी हिमाचल में आने वाले चुनावों को गंभीरता से ले रही है, सदस्यता अभियान और दूसरी रणनीति तैयार की जा रही है। युवा वर्ग को रोजगार और दूसरे प्रलोभन देकर अपनी तरफ किया जाएगा। सोशल मीडिया के इस युग में आप की पहुंच दूरदराज़ के इलाकों में और भी आसान हो गयी है। आप कभी भी किसी से भी आभासी रूप से जुड़ सकते हैं। पंजाब में परंपरागत राजनीति को उखाड़ फेंकना सबसे जटिल कार्य था लेकिन आम आदमी पार्टी ने यह काम बड़ी निपुणता से किया।
नि:संदेह हिमाचल के चुनाव इस बार बहुत दिलचस्प होने वाले हैं, क्या हिमाचल के लोग ‘बाहर’ की पार्टी को हिमाचल में आने देंगे। आम आदमी पार्टी क्या हिमाचल में अपनी जगह बना पाएगी, क्योंकि पहाड़ की सोच और समस्याएं बिलकुल अलग होती हैं। जैसे उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी को अपने पैर जमाने में सफलता नहीं मिली, क्या हिमाचल में भी ऐसा होगा। यह तो आने वाला समय ही बताएगा, 10 साल पुरानी इस पार्टी के लिए यह कठिन जरूर है लेकिन असंभव नहीं। भाजपा की जी-तोड़ कोशिश रहेगी कि बाकी राज्यों की तरह हिमाचल में पुन: भारतीय जनता पार्टी की ही सरकार बने और एक नया उदाहरण कायम हो। कांग्रेस पार्टी को इस बार चुनाव में बहुत मेहनत करनी होगी, क्योंकि उनके पास राजा वीरभद्र सिंह जैसा नेता नहीं है, न ही उन्हें जनता से कोई सहानुभूति मिलेगी। अंदेशा है कि आम आदमी पार्टी हिमाचल में आने वाले चुनावों में सेंध लगा पाएगी या नहीं।