अरुण नैथानी
मेट्रोमैन ई. श्रीधरन की गिनती देश के चोटी के तकनीकी विशेषज्ञों के रूप में होती है। वे उस श्रेणी में आते हैं जिन्होंने देश में मेहनत, लगन व ईमानदारी से असंभव समझी जानी वाली आधुनिक रेल परियोजनाओं को मूर्त रूप दिया। उन्हें ठीक वैसे ही सम्मान दिया जाता है जैसे डॉ. कूरियन वर्गीज का नाम श्वेत क्रांति के लिए और सैम पित्रोदा का नाम दूरसंचार क्रांति के लिए याद किया जाता है। तकनीकी विशेषज्ञ के रूप में उन्होंने देश को छह दशक तक अपनी सेवाएं दीं। लेकिन यहां सवाल उठना स्वाभाविक है कि कभी बड़ी योजनाओं के क्रियान्वयन में राजनीतिज्ञों के हस्तक्षेप के प्रति जीरो टोलरेंस की नीति अपनाने वाले ई. श्रीधरन क्यों राजनीति की चौखट पर पहुंचे हैं? वह भी उस उम्र में जब उनसे कम उम्र के मुरलीमनोहर जोशी सरीखे दिग्गज उम्र के पैमाने में भाजपा के मार्गदर्शक मंडल में शामिल कर दिये गये हों।
भारतीय सार्वजनिक परिवहन के क्षेत्र में गुणवत्ता का आमूल-चूल परिवर्तन करने वाले 89 वर्षीय ई. श्रीधरन ने पिछले दिनों भाजपा की सदस्यता हासिल की है। पार्टी चाहती है कि वे केरल में आसन्न विधानसभा चुनाव लड़ें। उनका कहना है कि वे भाजपा में इसलिये शामिल होना चाहते हैं क्योंक वे नरेंद्र मोदी के बड़े प्रशंसक रहे हैं। उनका मानना है कि उनका राजनीति में आने का लक्ष्य केरल के आधारभूत ढांचे में व्यापक बदलाव करना तथा राज्य में उद्योग धंधों का विकास करना है। उनका कहना है कि श्रमिक आंदोलनों व ट्रेड यूनियनों की टकरावकारी नीतियों के कारण राज्य में उद्योगों का अपेक्षित विकास नहीं हो पाया है, जिसके चलते राज्य में बड़ी संख्या में बेरोजगारी पैदा हुई है। फलस्वरूप बड़ी संख्या में कर्मशील आबादी दूसरे राज्यों और परदेश की ओर पलायान कर रही है।
कुछ लोग मानते हैं कि ई. श्रीधरन देश के चोटी के तकनीकी विद्वान हैं, उन्हें राज्यसभा के जरिये संसद में भेजकर मंत्री बनाया जाना चाहिए था ताकि देश उनके अभिनव विचारों और अनुभव का लाभ प्रगति यात्रा में उठा सके। एक विधायक के रूप में वे केरल में कितना नया कर पायेंगे? दरअसल, भाजपा को राज्य में राष्ट्रीय पहचान वाले एक ऐसे चेहरे की तलाश थी जो केरल में पार्टी का जनाधार विकसित कर सके। वैसे यह भी हकीकत है कि अपने क्षेत्र के कई सिकंदर राजनीतिक विद्रूपताओं के आगे ज्यादा कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं रहे हैं। दरअसल, व्यावहारिक राजनीति के अपने तमाम तरह के किंतु-परन्तु हैं और धीर-गंभीर सोच के खरे सिक्के को खोटे सिक्के चलन से बाहर कर देते हैं।
कभी सुबह चार बजे उठकर योग-ध्यान से दिनचर्या की शुरुआत करने वाले ई. श्रीधरन भले ही आज पहले जैसे कड़े अनुशासन में नहीं बंधे हैं, लेकिन सुबह पांच बजे उठकर योग के बाद उनकी दिनचर्या शुरू होती है। वे 89 साल की उम्र में पूरी तरह फिट व सचेतन हैं और नई राजनीतिक पारी शुरू करने के लिए उत्साहित हैं। यह समय का खेल है कि कभी शीर्ष नेतृत्व के संरक्षण में उन्होंने अपने काम में राजनीतिक हस्तक्षेप बिलकुल बर्दाश्त नहीं किया। आज उसी राजनीति के दरिया में डुबकी लगाने जा रहे हैं। उनकी छवि एक सख्त और ईमानदार अधिकारी के रूप में रही है। नब्बे के दशक में दिल्ली मेट्रो परियोजना के लिए उन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा ने चयनित किया। कालांतर शीला दीक्षित समेत विभिन्न राजनीतिक दलों के नेतृत्व ने उनके काम को आगे बढ़ाने में पूरा सहयोग किया। उनका राजनेताओं ने भी तीखा विरोध किया, लेकिन उनकी योग्यता, ईमानदारी व शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व के सहयोग के कारण उनका अभियान निर्बाध रूप से चलता रहा। इसी तरह रामेश्वरम को तमिलनाडु की मुख्य भूमि से कुछ ही दिनों में जोड़ने और कोकण रेलवे लाइन के असंभव जैसे दिखने वाले कार्य को हकीकत में बदलकर उन्होंने अपार ख्याति अर्जित की और पद्म विभूषण व अन्य पुरस्कार भी हासिल किये।
ई. श्रीधरन बेहद सख्त और ईमानदार अधिकारी के रूप में जाने जाते रहे हैं। एक समय वे देश में सबसे अधिक वेतन पाने वाले अधिकारी रहे हैं। हालांकि, वे यदि किसी निजी कंपनी को चुनते तो कई गुना अधिक वेतन पा सकते थे। लेकिन उन्होंने देशसेवा को प्राथमिकता दी और बड़ी-बड़ी परियोजना को बेहद अनुशासित ढंग से पूरा किया। उन्होंने बेहद योग्य लोगों की टीम बनायी और कड़े अनुशासन से लक्ष्यों को पूरा किया। सही मायनों में लखनऊ से कोच्चि तक की जो मेट्रो योजनाएं आज हकीकत बनी हैं उसके मूल में ई. श्रीधरन की योजना और कौशल रहा है। उनका समर्पण इस बात से ही पता चलता है कि जब दिल्ली मेट्रो योजना मूर्त रूप में सामने आई तो वे अस्सी साल के थे। आज भी वही ऊर्जा व उत्साह उनकी बातचीत में नजर आता है।
89 साल की उम्र में उनका जज्बा गौर करने लायक है कि मैं देश के लिए कुछ और करना चाहता हूं। उनकी यह ललक ही उन्हें राजनीति में लेकर आई है। अन्यथा एक समय उन्होंने कहा भी था कि राजनीति उनके बस की बात नहीं है। इस उनकी क्षमताओं पर देश ने सदा विश्वास किया। यही वजह है कि देश के सार्वजनिक परिवहन में बड़ा बदलाव लाने वाले ई. श्रीधरन को मेट्रोमैन उपनाम दिया गया, जिसके चलते लोग कम पैसे में उच्च गुणवत्ता का सफल कम समय में पूरा कर पाये और सड़कों पर वाहनों का दबाव कम हुआ। साथ ही पर्यावरणीय रक्षा के लक्ष्यों को भी संबल मिला। उम्मीद की जानी चाहिए कि टीएन शेषन के साथ स्कूल, कॉलेज व इंजीनियरिंग कॉलेज में एक साथ दाखिला लेने वाले ई. श्रीधरन की राजनीतिक पारी का हश्र टीएन शेषन की राजनीतिक पारी जैसा न हो।