आज जब अस्पताल में घुसते ही मरीज आशंकित रहता है कि न जाने डॉक्टर कितनी फीस वसूल ले, ऐसे में एक प्रशिक्षित डॉक्टर सिर्फ दस रुपये में मरीजों का इलाज करे तो हैरानी होती है। डॉक्टर नूरी ने डॉक्टरी की पढ़ाई करने के बाद अपना क्लीनिक उस पिछड़े इलाके में खोला है जहां गरीब लोग महंगा इलाज कराने में सक्षम नहीं हैं। डॉक्टरी की महंगी पढ़ाई करने के बाद जब उसने क्लीनिक खोला तो घर वालों को नहीं बताया कि कहीं वे कहें कि विजयवाड़ा छोड़कर क्यों पिछड़े कडपा इलाके में जा रही है। लेकिन जब उसके घरवालों को उसके नेक इरादों का पता चला तो वे खुश हुए और उसे आशीर्वाद दिया।
दरअसल, डॉ. नूरी का परिवार कई पीढ़ियों से समाज सेवा के कार्यों में लगा रहा। आंध्र प्रदेश के कृष्णा जनपद में जन्मी नूरी के दादा नूर मोहम्मद अस्सी के दशक में साम्यवादी नेता हुआ करते थे। वर्ष 1986 में देहावसान के बाद उनके बेटे ने राजनीति की तरफ तो नहीं झांका, लेकिन अपना काम-धंधा करते हुए अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा देने का संकल्प जरूर लिया। नूरी समेत तीनों बच्चों को बेहतर शिक्षा देने का प्रयास किया। बच्चों ने भी निराश नहीं किया। हाईस्कूल तक नूरी ने उर्दू से पढ़ाई की और आगे की पढ़ाई अंग्रेजी के माध्यम से की। दरअसल, बचपन में एक फिल्म में एक डॉक्टर की सेवा के किरदार और गरीब मरीजों द्वारा दी गई दुआओं ने उसे इतने गहरे तक प्रभावित किया कि उसने डॉक्टर बनने का संकल्प ले लिया। हालांकि, उसके घरवालों ने चिकित्सक बनने और उसके बाद चिकित्सा पेशे की चुनौतियों के बाबत भी बताया, लेकिन वह तो संकल्प कर चुकी थी। परिवार के लोगों ने कहा कि वह शिक्षिका की नौकरी कर ले, यह नौकरी लड़कियों के लिये सुविधाजनक होती है। लेकिन बाद में परिवार को एक ऐसी घटना का सामना करना पड़ा कि पिता ने भी संकल्प ले लिया कि अपनी बच्ची को डॉक्टर ही बनायेंगे। कॉलेज में पढ़ाई के दौरान भी वह अपनी सोच के साथियों के साथ लोगों की सेवा में जुटी रही। दरअसल, इसके पीछे उसके परिवार के संस्कार भी शामिल थे। उसके परिवार ने हमेशा दीन-दुखियों की मदद ही की। उन्होंने तीन बेसहारा बच्चों को गोद लेकर उनका भरण-पोषण किया। यही बातें नूरी को समाज के लिये काम करने के लिये प्रेरित करती रही हैं।
डॉ. नूरी के सेवा-भाव से कडपा के इलाके के गरीब लोगों में खुशी है। लोग आज उन्हें कडपा की मदर टेरेसा कहते हैं। कॉलेज जीवन में प्रतिभावान छात्रा रही नूरी ने जहां शुरुआती पढ़ाई उर्दू में की, तो बाद में पब्लिक स्कूल में अंग्रेजी की पढ़ाई में भी बेहतर अंक हासिल किये। भाषा उसकी प्रतिभा की अभिव्यक्ति में बाधक नहीं बनी। कालांतर उन्होंने कडपा के फतिमा इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस से एमबीबीएस किया। बाद में उसने सोचा कि आगे की पढ़ाई में दाखिला लिया तो बाद की परिस्थितियां उसके लक्ष्य में बाधक बन सकती हैं। उसने मन बनाया कि दूर-दराज के इलाके में क्लीनिक खोलकर गरीबों का उपचार करेंगी, क्योंकि महंगा इलाज गरीबों के बूते से बाहर होता है। उसने मन बनाया और बिना घरवालों को बताये कडपा में एक क्लीनिक खोलने का निर्णय किया। उसने फीस इतनी कम रखी कि कोई भी आसानी दे सके। फीस इसलिये भी रखी क्योंकि मुफ्त के इलाज को लोग गंभीरता से नहीं लेते, वहीं दस रुपये से अस्पताल के कुछ खर्च भी निकल जायेंगे। वर्ष 2019 के आखिरी माह में उसने अपना क्लीनिक खोल ही लिया।
इस तरह डॉ. नूरी का क्लीनिक चल निकला। उन्होंने जांच केंद्र, दवाखाना और तीन बिस्तरों के साथ डॉ. नूरी हेल्थ केयर खोला। फीस दस रुपये और बेड की फीस पचास रुपये रखी ताकि गरीब से गरीब भी इलाज करा सके। विडंबना यह रही कि फरवरी, 2020 में अस्तित्व में आने वाला क्लीनिक देशव्यापी कोरोना संकट के कारण लगे लॉकडाउन में बंद हो गया। शुरू में कुछ दिन तो उन्होंने क्लीनिक बंद रखा। लेकिन उन्हें लगा कि इस दौरान साधनविहीन मरीजों का उपचार कौन करेगा। फिर स्थानीय पुलिस प्रशासन से अनुमति लेकर चौबीस घंटे क्लीनिक खोल दिया, जिससे क्षेत्र के लोगों को बड़ी राहत मिली। फिर मरीजों की कतारें लगने लगीं। इतना ही नहीं, लॉकडाउन के दौरान डॉ. नूरी ने साधनविहीन लोगों को खाना खिलाने का काम भी किया, क्योंकि कुछ मरीज भूख से पैदा हुई बीमारियों के शिकार भी थे। फिर माता-पिता से मिले सेवा के संस्कार महकने लगे। ऐसे वक्त में जब डॉक्टर एक बार देखने के सौ-दौ सौ रुपये मरीजों से ले लेते हैं, निस्संदेह डॉ. नूरी का दस रुपये लेना सुखद अहसास कराता है कि समाज में आज भी मानवता की रक्षा करने वाले लोग हैं। आज तो बच्चे भी दस रुपये मिलने पर मुंह बिचकाने लगते हैं, दस रुपये का इलाज आश्चर्य मिश्रित खुशी ही देता है। इतना ही नहीं, डॉ. नूरी आज गरीबों व निराश्रितों के लिये कई प्रेरक मिशन चला रही हैं। उनके दो सामाजिक संगठनों के जरिये स्वास्थ्य और शिक्षा के लिये युवाओं को प्रेरित किया जा रहा है। अपने दादा की याद में नूर चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना उन्होंने की है। साथ ही वे दहेज व आत्महत्या के विरुद्ध जागरूकता अभियान भी चला रही हैं।