पुष्परंजन
राजपक्षे कुनबे की श्रीलंका पीपुल्स पार्टी (एसएलपीपी) जिसका सिंहाला नाम है, श्रीलंका पोदूजना पेरामुना, को ‘सुपर मेजॉरिटी’ मिली है। अकेली इस पार्टी को संसद की 225 में से 145 सीटें प्राप्त हुई हैं। बाक़ी इसके सहयोगी दलों को मिला लेने से दो-तिहाई सीटें पा लेने की आकांक्षा पूरी हो गई। अब इस संख्या के बूते महिंदा राजपक्षे आसानी से संविधान में बदलाव ला सकेंगे। सजित प्रेमदास की पार्टी समागी जन बलवेगया (एसजेबी) को 54 सीटें मिली हैं, जिसकी भूमिका संसद में एक कमज़ोर प्रतिपक्ष की रहेगी। तीसरे नंबर पर दस सीटें पाने वाली इलंकाई तमिल आरासू कच्ची (आईटीएके) है, जिसके नेता मवाई सेंतीराजा आने वाले दिनों में अपनी पार्टी की भूमिका तय करेंगे। चौथे नंबर पर जातिका जन बलवेगय (जेजेबी) है, जिसे तीन सीटें मिली हैं। दो-दो सीटें पाने वाली एआईटीसी और ईपीडीपी हैं, बाकी नौ पार्टियों को एक-एक सीट अंतिम परिणाम में प्राप्त हुई हैं। 70 दलों के 7452 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे।
आम चुनाव में राजपक्षे कुनबे की श्रीलंका पीपुल्स पार्टी (एसएलपीपी) को टक्कर सजित प्रेमदास की पार्टी ‘एसजेबी’ दे रही थी। सजित देश के तीसरे राष्ट्रपति आर. प्रेमदास के सुपुत्र हैं, जिनकी हत्या लिट्टे आत्मघातियों ने 1 मई 1993 को कर दी थी। कह सकते हैं कि देश के आम चुनाव में दो वंशवादी पार्टियां मैदान में उतरी थीं। सजित प्रेमदास की पार्टी समागी जन बलवेगया (एसजेबी), सबसे पुरानी यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) से फरवरी 2020 में अलग होकर अस्तित्व में आई है। लंदन स्कूल आॅफ इकोनाॅमिक्स से पढ़े सजित प्रेमदास संसद में नेता प्रतिपक्ष थे। पिता की हत्या के बाद से राजनीतिक विरासत उन्होंने संभाली थी। इस पार्टी की कहानी भारत में कांग्रेस से थोड़ी-बहुत मिलती जुलती है। संयोग देखिये, चुनाव परिणाम भी कमोबेश उसी तरह से है।
2 करोड़ 20 लाख की आबादी वाले इस देश में जल्द आम चुनाव हो, उस वास्ते कोरोना प्रभावितों के डाटा में हेराफेरी का काम भी सरकारी स्तर पर हुआ था। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि कोविड-19 से केवल 11 नागरिकों की मौत हुई है, और कोरोना पाॅजिटिव के केस मात्र 2 हज़ार 823 पाये गये। मार्च में संसद भंग कर अप्रैल में चुनाव की घोषणा कर दी गई थी। मगर, कोरोना जैसी आफत की वजह से चुनाव को स्थगित कर दिया गया था। देश पहले से ही कर्ज़ के भंवर में घूम रहा था, ऊपर से मंदी और कोरोना ने कोढ़ में खाज का काम किया है। श्रीलंका का पर्यटन व्यवसाय तो लगभग धंस चुका है, ऐसे में चुनाव के वास्ते किन लोगों ने पैसे लगाये? बड़ा सवाल है।
कोलंबो स्थित थिंक टैंक, इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप के सीनिसर कंसलटेंट अलेन कीनन मानते हैं कि राष्ट्रपति गोटवाया राजपक्षे से बड़े भाई महिंदा राजपक्षे की अनबन आरंभ हो चुकी थी। 2005 से 2015 तक दो बार राष्ट्रपति रह चुके महिंदा राजपक्षे को तकलीफ संविधान के 19वें संशोधन से है, जिसमें प्रधानमंत्री के पावर कम किये गये थे। नौकरशाही राष्ट्रपति गोटवाया राजपक्षे की ताबेदारी में अधिक लगने लगी थी, जिससे महिंदा राजपक्षे को लगता था, जैसे वे हाशिये पर जा रहे हों। दोनों भाइयों के बीच तनाव था, यह बात अलेन कीनन जैसे प्रेक्षक स्वीकार करते हैं। मगर, यह इतना भी नहीं था कि परिवार और पार्टी में टूट की स्थिति तक पहुंच जाती।
यों, राष्ट्रपति गोटबाया का व्यवहार मतवाले हाथी जैसा हो चुका था। देश में मानवाधिकार कार्यकर्ता, पत्रकार, वकील व सामाजिक कार्यकर्ताओं की ख़ैर नहीं थी। बात-बात पर गिरफ्तारियों का सिलसिला शुरू हो चुका था। एमनेस्टी इंटरनेशनल, ह्यूमन राइट्स वाच और रिपोर्टर विदाउट बॉर्डर जैसी संस्थाओं ने सरकार को पत्र लिखकर दमनचक्र को बंद करने को कहा था। कोरोना से मृत मुसलमानों को दफन के बदले, जलाने का हुक्म देकर गोटबाया ने मुसलमानों को यह कहने का अवसर दे दिया कि सरकार उन्हें दबा रही है। गोटबाया के आदेश के विरुद्ध वकील हिज़ाज हिज़बुल्ला अदालत में गये। दूसरे दिन हिज़ाज हिज़बुल्ला को टेररिज़म एक्ट के तहत उठा लिया गया। आरोप लगाया कि 2019 को ईस्टर वाले दिन बमबारी की साजिश में वकील हिज़ाज हिज़बुल्ला शामिल थे। सत्तारूढ़ श्रीलंका पीपुल्स पार्टी (एसएलपीपी) के मुस्टंडों ने राष्ट्रवादी नारों के ज़रिये पूरे चुनाव में दहशत का वातावरण बना रखा था, इसकी शिकायत उपरोक्त सभी अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के पास गई थी।
ख़ैर, गुरुवार देर शाम मतगणना के रुझानों को देखकर प्रधानमंत्री मोदी ने महिंदा राजपक्षे को बधाई देने में तनिक भी देर नहीं लगाई। इसकी प्रतिक्रिया तुरंत मिली। महिंदा राजपक्षे ने एक ट्वीट के ज़रिये अपनी प्रसन्नता व्यक्त की। इस आभार संदेश से यह स्पष्ट होता है कि देश के ताक़तवर प्रधानमंत्री के रूप में महिंदा राजपक्षे आने वाले दिनों में भारत के प्रति कैसा रुख़ रखेंगे।
7 फरवरी 2020 को महिंदा राजपक्षे भारत पधारे थे। उनके अनुज राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे, नवंबर 2019 में भारत आ चुके थे। उस समय प्रधानमंत्री मोदी की ओर से श्रीलंका को 5 अरब 5 करोड़ डाॅलर के लाइन आॅफ क्रेडिट दिये जाने की घोषणा हुई थी। नवंबर में ही गोटबाया राजपक्षे की भारत यात्रा से पहले विदेश मंत्री एस. जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल कोलंबो गये थे। 18 नवंबर 2019 को गोटबाया के राष्ट्रपति पद के शपथ की अगली सुबह मुलाकात से यह बात सामने आई थी कि भारत माज़ी में पैदा ग़लतफहमियों को दूर कर श्रीलंका को इंगेज रखने को प्राथमिकता दे रहा है।
महिंदा राजपक्षे जब फरवरी 2020 में भारत आये, चार दिनों की यात्रा में बोध गया, बनारस काशी विश्वनाथ मंदिर, तिरुपति के दर्शन के वास्ते भी गये। संभवतः बौद्धों के साथ-साथ तमिल वोट बैंक भी अड्रेस किया जाना उनका राजनीतिक लक्ष्य रहा हो। भारत से अक्सर मछुआरों के समुद्री सीमा पार कर जाने को लेकर विवाद रहा है, उसके हल के वास्ते उस यात्रा में ‘ज्वाइंट मरीन रिसोर्स मैनेजमेंट’ की स्थापना की गई। भारत ने यह भी तय किया था कि युद्ध से बर्बाद श्रीलंकाई इलाकों में 46 हज़ार घर बनवायेंगे। कोविड की वजह से यह काम स्थगित रखा गया है।
हमें श्रीलंका में चीन की उपस्थिति कभी नहीं भूलनी चाहिए। इसे भी याद रखने की ज़रूरत है कि पाकिस्तान, दक्षिण एशिया में भारत के बाद दूसरा सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है। वह पहला देश है, जिसने श्रीलंका से फ्री ट्रेड एग्रीमेंट किया था। कोरोना से पहले पर्यटन को बढ़ाने के वास्ते श्रीलंका, पाकिस्तान के प्रमुख शहरों से विमान सेवाएं आरंभ किये जाने का प्रस्ताव दे चुका है। भारत को चाहिए, श्रीलंका की कूटनीति में धर्मगुरुओं को सक्रिय करे। अयोध्या से अनुराधापुरा को जोड़े। पाकिस्तान की काट वहां है!
लेखक ईयू-एशिया न्यूज़ के नयी दिल्ली संपादक हैं।