के.के. तलवार
मौजूदा कोविड-19 महामारी के आरंभिक चरण में वायरस के फैलाव को सीमित करने में पंजाब ने काफी बढ़िया काम कर दिखाया था। कड़े लॉकडाउन उपाय लागू किए गए थे और इस अवधि का इस्तेमाल टेस्ट संख्या की क्षमता में इजाफा करने और स्वास्थ्य सेवा ढांचे को सुदृढ़ करने के लिए किया गया। पूरे इलाके को सील करने की बजाय चंद घरों की नाकेबंदी वाली ‘माइक्रो-कंटेनमेंट’ जुगत पहली बार पंजाब ने लगाई और राष्ट्रीय स्तर पर इसकी प्रशंसा हुई थी।
लेकिन लॉकडाउन में ढील और बाहरी राज्यों से लोगों की आमद बढ़ने की वजह से सूबे के शहरों, खासकर सघन आबादी वाले इलाके और कालोनियों में कोरोना के मामलों में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। लगता है लोगों में स्वेच्छा से सावधानी बरतने वाले उपाय जैसे कि मास्क पहनने और आपसी दूरी बनाए रखने की इच्छाशक्ति कम हो गई है। भ्रामक सूचनाएं फैलने की वजह से टेस्ट करवाने में लोग-बाग कतराने लगे, जिसने वायरस के संपर्क में आए लोगों की पहचान और रोकथाम को कमजोर किया है। इससे इलाज के लिए समय पर संक्रमित रोगी की पहचान-इलाज-संक्रमण कड़ी के नियंत्रण पर प्रभाव पड़ता है।
हालांकि प्रशासन के प्रयासों से लोगों में भरोसा जगा और धीरे-धीरे ज्यादा लोग टेस्ट करवाने के लिए खुद आगे आने लगे, साथ ही अपने संपर्क में आए लोगों की पहचान करवाने में सहयोग देने लगे थे। सही समय पर सटीक परीक्षण, ऑक्सीजेनेशन कौनुला और पल्स स्टिरॉयड थेरेपी ने कोरोना से गंभीर अवस्था में पंहुचे रोगियों को बचाने और उफान की रोकथाम में काफी अहम भूमिका निभाई है, नतीजतन मौतों की संख्या कम रही है।
अब कोविड-19 के मामलों में कमी आने लगी है और यह सकारात्मक चाल अभी जारी रहेगी। हालांकि रोजमर्रा के कामों के सिलसिले में जिस तरह आए दिन नियंत्रणों से ज्यादा छूट देनी पड़ रही है, आगामी त्योहारी मौसम के चलते कोविड-19 की दूसरी लहर बनने का डर है। माहिरों की वैज्ञानिक भविष्यवाणी को मानें तो अगले 6 से 8 हफ्तों में कोरोना की दूसरी लहर आने के संकेत हैं। कुछ देशों में पहले ही कोविड-19 संक्रमण की दूसरी लहर शुरू हो चुकी है। हालिया अनुभवों से हमें सीख लेनी होगी ताकि बेहतर परिणाम सुनिश्चित कर पाएं। हालांकि सरकार और जनता दोनों को मिलकर वे तमाम प्रयास करने होंगे, जिससे कि वायरस का फैलाव कम-से-कम रखा जा सके।
सर्वप्रथम हमें रोकथाम में मास्क की महती उपयोगिता का भान होना बहुत जरूरी है। जापान, थाइलैंड और चेक गणराज्य जैसे देशों ने बड़े पैमाने पर मास्क पहनने में अच्छा कर दिखाया है और परिणाम बहुत कारगर रहे हैं। कोविड-19 की रोकथाम में मास्क पहनने से ज्यादा सरल और सस्ता दूसरा कोई क्रियान्वयन उपाय नहीं है। कई संगठन उन लोगों को मुफ्त में मास्क बांट रहे हैं जो इन्हें खरीदने में असमर्थ हैं। अगर हम सब लोगों ने जरूरी एहतियात नहीं बरती तो त्योहारों में बढ़ने वाली सामाजिक गतिविधियों के परिणामस्वरूप दूसरी कोरोना लहर बन सकती है। मास्क न केवल पहनने वाले को सुरक्षा प्रदान करता है बल्कि वायरस का फैलाव अन्य लोगों तक सीमित करने में सहायक है। मास्क का इस्तेमाल दूसरों को सुरक्षित रखने से अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
जिन लोगों को कुछ बीमारियां पहले से हैं, उनकी पहुंच जनस्वास्थ्य सुविधाओं तक बनाने की जरूरत ज्यादा है। सरकारी अस्पताल और निजी स्वास्थ्य सुविधाओं को लोगों में भरोसा पैदा करना होगा। इस मंतव्य की पूर्ति हेतु राज्यों को चल-चिकित्सालय जैसे उपाय अपनाने होंगे। इससे रोगियों का यथेष्ठ और सही समय पर इलाज होने से न केवल कोविड-पॉजिटिव मामलों में बेहतर परिणाम मिलेंगे बल्कि बाकी अन्य बीमारियों से ग्रस्त लोगों को वायरस की चपेट में आने से बचाया जा सकता है। इससे मृत्यु-दर में अवश्य ही कमी आएगी।
एक अन्य महत्वपूर्ण सबक सीखने को यह है कि अगर उक्त रोगियों का इलाज प्रभावशाली ढंग से करना है तो परीक्षण-जांच आधारित निदान पद्धति को अपनाना होगा। कुछ एंटीवायरल दवाएं या स्टिरॉयड का अतार्किक इस्तेमाल करना दुष्प्रभावी हो सकता है (हालांकि अगर ढंग से इस्तेमाल किया जाए तो यह दवाएं जिंदगी बचाने में सहायक होती हैं)। स्टिरॉयड का इस्तेमाल उन मरीजों पर करने से बचना चाहिए, जिन्हें ऑक्सीजन की जरूरत नहीं पड़ती। सार्स-मर्क-इंफ्लुएंजा के रोगियों में वायरस से निजात पाने में देरी उन मामलों में पाई गई है जहां इलाज के दौरान रोगी को जरूरत बनने से पहले ही स्टिरॉयड दे दिए हों। इसलिए अन्य मामलों में उपयोगी सिद्ध होने वाली इन दवाओं का बिना सोचे-समझे प्रयोग रोगी को उलटा हानि पंहुचा सकता है। कोविड-19 में अन्य महत्वपूर्ण जीवनरक्षक अवयव है हाईपॉक्सिया (सांस लेने में कठिनाई) का इलाज। जाने-माने मेडिकल संस्थानों और अस्पतालों का अनुभव बताता है कि रोगी के मुख पर मास्क रूपी खोल लगाकर या फिर नथुनों से सटे कौनुला के माध्यम से या किसी अन्य बाहरी उपायों से दी जाने वाली ऑक्सीजन और पेट के बल लिटाना ज्यादा कारगर सिद्ध हुआ है। गले की श्वास नली के अंदर ट्यूब घुसाकर आक्सीजन देना (वेंटिलेटर) जैसे उपाय को तब तक अमल में न लाया जाए जब तक कि तमाम बाहरी उपाय असफल न हो जाएं। जरूरत बनने से पहले ही श्वास नली के अंदर पाइप का प्रयोग उलटे नुकसानदायक हो सकता है। इसलिए जब तक कोविड-19 की कोई कारगर वैक्सीन या निदान की दवा नहीं आ जाती तब तक परीक्षण-जांच आधारित यथेष्ट उपचार प्रणाली अपनाकर बेहतर नतीजे पाए जा सकते हैं।
जिस एक जांच प्रक्रिया का इस महामारी में काफी दुरुपयोग हो रहा है, वह है सीटी स्कैन। बिना कोविड-19 टेस्ट करवाए या बगैर लक्षणों वाले लोगों को भी सीटी स्कैन करवाने की सलाह दी जा रही है। सीटी स्कैन की उपयोगिता उन मामलों में है जहां किसी को सांस लेने में कठिनाई लगातार बढ़ती जाए। गैर जरूरी और बेबात किए जाने वाले टेस्टों से लोगों का विश्वास मेडिकल एवं स्वास्थ्य व्यवसायियों से उठ जाएगा, क्योंकि पहले से धन की कमी झेल रहे लोगों के कीमती स्रोतों का ह्रास होता है। विशेषज्ञों को सरकारी एवं निजी स्वास्थ्य सेवा सहयोगियों को यह सलाह और मार्गदर्शन देना चाहिए कि वे जांच-परीक्षण आधारित इलाज पद्धति का पालन करें ताकि मरीजों को यथासंभव सर्वोत्तम इलाज मिल सके।
संक्षेप में, सरकार, स्वास्थ्यकर्मी, जनता, सबको मिलकर प्रयास करने होंगे ताकि कोविड-19 वायरस की दूसरी संभावित लहर से बचाव और सामना किया जा सके।
लेखक पीजीआईएमईआर के पूर्व निदेशक और पंजाब सरकार के स्वास्थ्य सलाहकार हैं।