सुरेश सेठ
नये वर्ष के आगमन के साथ पूरा देश नये उजाले के आगमन की प्रतीक्षा कर रहा है। बीते वर्ष की महामारी की दहशत, बेकारी, महंगाई और आरोपित निष्क्रियता के पक्षाघात से आज हर नागरिक छुटकारा पाना चाहता है। छब्बीस जनवरी को लोकतंत्र का परचम लहराते हुए देश की युवा पीढ़ी इस नये वर्ष में अवतरित होते नये युग का स्वागत करना चाहती है, जहां बढ़ती हुई महंगाई और बेकारी के कटु सत्य इसे अवसादग्रस्त नहीं करेंगे।
बीते साल के आखिरी दिनों में भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के सूचकांक सामने आये थे। जो बता रहे थे कि भ्रष्टाचार उन्मूलन को एक प्रतिबद्ध संकल्प के रूप में अपनाने के बावजूद वर्तमान सरकार इस संकल्प का एक अंश भी पूरा न कर सकी। अंतर्राष्ट्रीय मानक संस्थानों द्वारा दुनिया के रिश्वतखोर देशों की जो सूची सामने आयी है, उसमें भारत शीर्ष देशों में से एक है। क्या इसका अर्थ यह नहीं कि पुराने नोट बंद करके नये नोट जारी करने और ‘एक देश-एक कर’ जीएसटी के बावजूद भ्रष्ट गन्धाती हुई इस व्यवस्था में कोई क्रांतिकारी परिवर्तन नहीं हुआ।
यह सही है कि इस नये वर्ष की शुरुआत बीते वर्ष को पंगु बना देने वाली कोरोना महामारी से जूझने में प्रभावशाली ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका की मंजूरी से शुरू हुई। अमेरिका का फाइजर और मॉडर्ना टीका तो पहले ही आयात उपचार व्यवस्था के अधीन चल रहा है। भारत ने स्वयं भी बायोटैक की कोवैक्सीन को मंजूरी दे दी। देश भर में टीकाकरण अभियान शुरू हो गया। इस समय स्थिति यह है कि कोरोना से संघर्ष के लिए विदेशी टीकों के साथ अपने दो भारतीय टीकों को भी मैदान में उतारने की घोषणा हो गयी।
इससे पहले ही नया वर्ष यह खबर भी लाया था कि भारत जैसे अत्यधिक भीड़ भरे देश में हर्ड इम्यूनिटी के कारण या लोगों में कोरोना के प्रति एंटीबाडी के विकास के कारण महामारी का प्रकोप दब रहा है। मरीजों की संक्रमण दर घट रही है। देश भर में ही मृत्यु दर निम्नतम स्तर पर नहीं आयी, बल्कि अब तो पंजाब भी मृत्यु दर में कमी दिखाने लगा है। लेकिन इससे पहले कि दुनिया महामारी का दबाव घटने और टीका मिल जाने की खबर से राहत की सांस लेती, ब्रिटेन, दक्षिणी अफ्रीका और पांच अन्य देशों से खबर आ गयी कि विदा लेता हुआ कोरोना बहुरूपिया हो गया है। उसने एक और संक्रामक तेवर अपना लिया है जो पहले से सत्तर प्रतिशत अधिक त्वरित गति से फैलता है, चाहे इसकी मारक क्षमता कम है।
ब्रिटेन से भारत आने वाली यात्री उड़ानों में भी नये कोरोना से संक्रमित मरीजों के उतरने की खबरें मिलने लगीं। भारत ने तत्काल ब्रिटेन से आने वाली हवाई उड़ानें बंद कर दीं। फिर भी नये कोरोना संक्रमण वाले सौ के करीब मरीज तो भारत में उतर ही गये। शेष की तलाश जारी है।
देश अब नये वर्ष को सामान्य रूप से जीने की इच्छा में है। पिछड़ती हुई उत्पादन गतिविधियां लय पकड़ना चाहती हैं। मनोरंजन और सेवा क्षेत्र को सबसे अधिक धक्का लगा है। चाहे भारत ने नये वर्ष में कोरोना संकट से ग्रसित लघु, मध्यम और सूक्ष्म उद्योगों को नया जीवनदान देने और एक नया कृषक भारत बनाने की घोषणा की थी, लेकिन कोरोना संक्रमण के हालात में नये वर्ष में टीकों और उपचार की सही व्यवस्था हो जाने की उम्मीद में देश बढ़ती आर्थिक दर की लय को पकड़ लेगा और स्वत: स्फूर्त अर्थव्यवस्था की दस प्रतिशत विकास दर का लक्ष्य प्राप्त कर लेगा, यह अभी दूर की कौड़ी लगती है। देश का केवल एक ही क्षेत्र एेसा है, जो पस्त होती अर्थव्यवस्था के लिए आस्था का नया संबल बन सकता है, और वह है नये भारत की खेतीबाड़ी का पुन:उद्धार। मत भूलें कि पिछले वर्ष जब देश के सभी उत्पादन और व्यवसाय क्षेत्र ऋणात्मक विकास दर दिखा रहे थे, यह देश के किसानों की भरपूर मेहनत ही थी, जिसने धनात्मक 3.4 प्रतिशत आर्थिक वृद्धि दी, जबकि इससे पिछले वर्ष में यह वृद्धि दर केवल नाममात्र अर्थात चार प्रतिशत थी।
जब भारत कृषि के बल पर आर्थिक गिरावट की गहराइयों से बाहर आ सकता है तो देश का किसान भारत सरकार के नये किसान कानूनों के प्रति इतना आशंकित क्यों हो गया? कुछ आधारभूत शिकायतों को दूर करने के लिए नौ दौर की बात करनी पड़े या सुप्रीम कोर्ट के आदेश का आसरा समाधान के लिए तलाश करना पड़े, क्या यह इस जागते देश की भावना के अनुरूप है? देश के नवनिर्माण के लिए किसानों की शक्ति और देशभक्ति को कभी भी नकारा नहीं जा सकता।
कोरोना के नये टीके दिलासा दे रहे हैं कि इन टीकों में इतनी ताकत है कि वे कोरोना के इस नये संक्रामक तेवर से निपट सकें। विशेष रूप से अमेरिका के फाइजर टीके ने इसका दावा भी किया। निस्संदेह टीकों की इस आमद ने देश की शेयर मार्किट को एक नयी ऊंचाई दी है। नया वर्ष एक भरपूर उम्मीद लेकर आया है कि अब नव उत्पादक जीवन एक नयी अंगड़ाई लेगा। लेकिन कोरोना का रूप बदलकर टिके रहने का हठ यह बता रहा है कि अभी शारीरिक दूरी और मास्क युग से छुटकारा नहीं मिलेगा।
लेकिन इससे कहीं जरूरी है देश के उत्पादन, आय, व्यवसाय और कृषि क्षेत्र में नवजीवन की आस्था और विश्वास का लौटना। देश के सांख्यिकी संस्थान द्वारा बीते वर्ष की तिमाही आर्थिक गतिविधियों के आंकड़े इस बात की गवाही नहीं देते। बीते वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पादन और आय के आंकड़े -22 प्रतिशत की गिरावट दिखा रहे थे, वहां दूृसरी तिमाही ने भी गिरावट कम तो की लेकिन अभी भी यह 8-9 प्रतिशत है। देश के बजट पर घाटे का दबाव है और उत्पादन गतिविधियों के शिथिल पड़ जाने के कारण कुल राजस्व और जीएसटी संग्रह में आशानुरूप परिणाम नजर नहीं आ रहे।
केंद्र की कई आर्थिक अनुदान और राहत योजनाओं के बावजूद, उदार मौद्रिक नीति के समर्थन से भी देश की आर्थिक विकास दर जाग्रत नहीं हुई। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों में जान नहीं पड़ी। मांग नहीं बढ़ी, मंदी की विदाई नहीं हो रही और उत्सव के महीने गुजर जाने बाद भी बाजार ग्राहकों से बेजार रहे। अब नया जीवन मिलने का विश्वास सरकार से चाहते हैं किसान तो यह अनुचित नहीं है। यह अधिकार उन्हें मिलना ही चाहिए। शब्दावली और भाषायी शीर्षकों का हेरफेर उनकी चाह में रुकावट बने, यह नहीं होना चाहिए।
नये भारत के नव निर्माण के लिए देश के धरती पुत्रों की, देश के किसानों की जगह उनके खेतों और खलिहानों में है, धरना-प्रदर्शन करने में नहीं, यह याद रखा जाये। इसे न भूलें।
लेखक साहित्यकार एवं पत्रकार हैं।