आलोक पुराणिक
रचनात्मक लेखन अकादमी ने प्रतिशत विषय पर एक लेख प्रतियोगिता का आयोजन किया, इस प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार विजेता लेख इस प्रकार है :-
परसेंट कई तरह के होते हैं जैसे कोरोना टीका कोई कह रहा है कि 95 परसेंट कामयाब होगा कोई कह रहा है कि 90 परसेंट कामयाब होगा।
प्रतिशत कई तरह के होते हैं। एक तो प्रतिशत वह होते हैं, जो कक्षा 12 के परीक्षार्थी लाते हैं—95 परसेंट, 99 परसेंट, 90 परसेंट। इस तरह के प्रतिशत से कुछ को बहुत खुशी हासिल होती है, और अधिकांश दुखी घूमते हैं। जिस बच्चे के 75 प्रतिशत आते हैं, उसके घरवाले उसका हवाला देकर बहुत सुनाते हैं, जिसके 95 प्रतिशत आये हुए होते हैं। देख शर्माजी के लड़के के 98 परसेंट आये हैं और तेरे-इस तरह के वाक्य से संवाद की शुरुआत होती है, बस बच्चा अपने बाप को यह न कह पाता है कि अंबानी की दौलत हर साल बीस प्रतिशत बढ़ जाती है पापा तुम्हारी तो न बढ़ती हर साल बीस प्रतिशत दौलत। मैंने कभी कुछ कहा तुमसे। नयी पीढ़ी उदार होती है, बापों को किसी और के प्रतिशत बताकर शर्मिंदा न करती। बल्कि नयी पीढ़ी के कई लड़के तो परम संतोषी होते है।
देखें तो बड़े बुजुर्ग बच्चों को और अधिक लाने, और अधिक संग्रह करने के लिए लोभी बनाते हैं। लोभ के बीज इस तरह की प्रतिशतबाजी में ही पड़ते हैं। बच्चा कम में राजी है, पर घरवाले मार मचाये हुए हैं। इस तरह से बच्चे लोभी हो जाते हैं, और जैसा कि कई परम संत बता चुके हैं कि लोभ पाप का मूल है। पाप का मूल अधिक प्रतिशत में निहित है।
प्रतिशत वतिशत पूछे ना कोई-नोट छापै, वो सच होई—ऐसा परम उद्गार सेठ चोरड़िया मल दे चुके हैं। सेठ साहब ने किसी भी तरह के अक्षर ज्ञान को, पढ़ाई लिखाई को अपने विकास में बाधा न बनने दिया। पकौड़े छानते थे, इतने टेस्टी छाने कि बहुत रकम आ गयी। तो शहर से दूर सौ एकड़ का प्लाट लेकर डाल लिया। कालांतर में जब उच्च शिक्षा का निजीकरण हुआ, तो सेठ साहब ने चार-पांच कालेज डाल लिये। सेठ साहब ने हर कालेज के बीचोबीच एक पकौड़ा रखवा दिया और लिखवा दिया—‘विद्या नास्ति गिवंती पकौड़ा, यद्यपि पकौड़ा गिवंति उच्च विद्या।’ इस का हिंदी में आशय हुआ कि विद्या पढ़ने से पकौड़ा छानना न आता, यद्यपि पकौड़ों से बहुत से उच्च विद्या के कालेज निकल सकते हैं।
शादी के करीब बीस साल पुरुष-स्त्री का वजन शादी पूर्व के वजन के मुकाबले करीब 70 प्रतिशत बढ़ जाता है। और इस वजन को कम करने के जो कारोबार चल रहे हैं, स्लिमिंग कोर्स, डाइटिंग कोर्स, उन कारोबारों को करने वालों का बैंक बैलेंस औसतन हर साल करीब पच्चीस प्रतिशत बढ़ जाता है।