क्षमा शर्मा
जब से मोबाइल हर एक के हाथ में आया है तब से जीवन में बहुत -सी चीजें बदल गई हैं। अब किसी नयी चीज को खरीदने के लिए बाजार जाकर देखने की जरूरत नहीं है। घर बैठे ही बहुत-सी चीजों की जानकारी मिल जाती है और नये उपभोक्ताओं का प्रवेश बाजार में हो जाता है। इसीलिए हर त्योहार, हर दिवस पर तरह-तरह की मार्केटिंग स्ट्रेटेजीज अपनाई जाती हैं।
लगभग एक हफ्ते पहले घोषणा कर दी जाती है कि फलां दिवस, त्योहार आने वाला है। आइए हमारे साथ मिलकर मनाइए। संसार की सारी खुशियों को आप तक पहुंचाने की जिम्मेदारी हमारी है। मोबाइल पर ऐसे संदेशों की भीड़ लग जाती है, जिसमें किसी भी दिवस या त्योहार को मनाने के तरह-तरह के प्रलोभन दिए जाते हैं। कहा जाता है कि आइए हमारे साथ महिला दिवस मनाइए और हीरे पर भारी डिस्काउंट ले जाइए। जहां जाने के बारे में आप न जाने कब से सोच रही थी, वहां हमारे साथ चलिए। अब हम आपके इस सपने को पूरा करेंगे।
अमुक रिसोर्ट में अपने प्रियजनों के साथ महिला सशक्तीकरण का आनंद गीत, संगीत, अच्छे भोजन और सैर-सपाटे के साथ उठाइए। आप तो इस दौर की नारी हैं। क्या बढ़ते वजन से परेशान हैं, हम बताते हैं कि अपने वजन को कैसे नियंत्रण में रखें। फलां ब्रांड का तेल खाइए, फलां का आटा, नये वाले ये मसाले, यह घी, यह तेल, ये दालें। आज ही आॅनलाइन आर्डर करिए। अरे लीजिए, आप जैसी आजाद नारी के घर में अभी तक वे ही पुराने पर्दे, चादरें, गैस का चूल्हा, माइक्रोवेव, फ्रिज, वाशिंग मशीन, टीवी, बर्तन, क्राकरी है। आप इस जमाने की लिबरेटेड नारी हैं। अपने घर को अपने व्यक्तित्व के हिसाब से ही नया रंग-रूप दें। एक साथ पचास हजार का आर्डर देंगी तो पांच हजार की छूट मिलेगी। जल्दी कीजिए। आफर बस दो दिन तक ही है। आपकी असली ताकत तभी है, जब आप पूरी तरह से स्वस्थ हों। हमारे अस्पताल ने तय किया है कि यदि आप इस हफ्ते में बाॅडी चैकअप कराने आएंगी तो अगले साल के बाॅडी चैकअप पर आपको पचास फीसदी छूट दी जाएगी।
हर नये विचार को व्यापार अपने लिए किसी भारी मुनाफा कमाने वाले अवसर की तरह देखता है। कैसे विचार के बहाने अपना उत्पाद बेचा जाता है, इसे ये संदेश स्पष्ट तौर पर दिखाते हैं। तकनीक ने इसमें काफी मदद की है। अब तो आपके हाथ में मोबाइल पर सीधे-सीधे संदेश भेजे जा सकते हैं। अखबारों या तमाम अन्य माध्यमों पर विज्ञापन देने का खर्चा भी बच गया।
जब किसी विमर्श पर व्यापार और बाजार की नजर पड़ती है तो उसका तीखापन और शिकायतें किसी न किसी ब्रांड या उत्पाद के पेट में समा जाती हैं। सच तो यह है कि स्त्री सम्बंधी तमाम अच्छे नारों और विचारों को व्यापार और बाजार ने हड़प लिया है। निगल लिया है।
याद आता है कि आज से कुछ साल पहले तक महिला सशक्तीकरण के बहुत से विज्ञापन दिखाई देते थे। आमतौर पर इनमें सरकारें महिला सम्बंधी अपनी योजनाओं के बारे में बताकर, खुद ही अपनी पीठ ठोकती थीं। लेकिन इन दिनों ऐसे विज्ञापन कम हो चले हैं। अब तो रेडियो, दूरदर्शन पर विचार-विमर्श, महिला संगठनों द्वारा स्त्री को वस्तु की तरह पेश करने पर सभाएं, सेमिनार, प्रदर्शन भी अक्सर सुनाई नहीं देते। पहले सुबह के शो में चलने वाली फिल्में, जिन्हें वयस्क फिल्में कहा जाता था, उनके खिलाफ मोर्चे निकाले जाते थे। औरतें एक हाथ में सीढ़ी पकड़े और एक हाथ में काले रंग का डिब्बा पकड़कर, इन फिल्मों के पोस्टर्स पर कालिख पोतती फिरती थीं। हाय-हाय और मुर्दाबाद के नारे लगाती थीं। उस समय महिलाओं को इस बात पर विशेष आपत्ति थी कि महिलाओं को अश्लील ढंग से पेश क्यों किया जाता है।
लेकिन जैसे-जैसे समय बदला, घर-घर में टीवी, मोबाइल, कम्प्यूटर के जरिए ग्लैमर की दुनिया का प्रवेश हो गया तो औरतों के मान-अपमान और अश्लीलता आदि की परिभाषाएं भी बदल गईं । पुराने जमाने की औरतों को जिस तरह स्त्री देह का प्रदर्शन अश्लील लगता था, उसे महिलाओं की अपनी रुचि और चुनाव का मामला बना दिया गया। और इस तरह से व्यापार, बाजार और उत्पाद ने अपने पक्ष में बहुत कुछ बदल लिया। मध्य वर्ग की कमाऊ औरत की जेब या पर्स तक पहुंचना इनका प्रमुख लक्ष्य था, जो नारी सशक्तीकरण के बहाने अपने उत्पादों को लोकप्रिय बनाने में सफल रहा है।
पुराने जमाने के महिला संगठनों की तमाम नेत्रियों जैसे कि विमल रणदिवे, विमला फारुकी, प्रमिला दंडवते, अहिल्या रांगणेकर, मृणाल गोरे, प्रमिला नरूला, वृंदा करात की जगह औरतों को नेतृत्व देने की जिम्मेदारी किसी दीपिका पादुकोण, आलिया भट्ट, कैटरीना कैफ, तापसी पन्नू को सौंप दी गई है। सेक्सी दिखना, बनना अब फिल्मी दुनिया से आगे बढ़ाकर आम स्त्री के जीवन का हिस्सा बना दिया गया। कल की वे औरतें जो इस तरह औरतों के शरीर को अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करने और मुनाफा कमाने के लिए ठीक नहीं मानती थीं, उन्हें धकिया कर ओल्ड स्कूल या पुराना विचार कहकर एक किनारे कर दिया गया है।
टिंडर, बम्बल जैसी डेटिंग साइट्स के बारे में लड़कियां गर्व से बताती हैं कि इनके जरिए वे खुद को बहुत एमपावर्ड या शक्तिशाली महसूस करती हैं क्योंकि यहां जब चाहे तब आप किसी को चुन सकते हैं और पीछा भी छुड़ा सकते हैं। किसी भी अनजान आदमी से एक दिन के लिए दोस्ती गांठ सकते हैं और छोड़ सकते हैं। होने तो यह लगा है कि शादीशुदा लोग भी बड़ी संख्या में इन साइट्स पर दिखाई देते हैं। एक बार जब एक लड़की से इस लेखिका ने कहा कि अनजान लोगों के साथ जाने में डर नहीं लगता। मान लो कोई हादसा हो जाए, जैसी कि खबरें आती रहती हैं। उसने अपने बालों को झटकते हुए कहा-ऐसा होगा तब देखा जाएगा। डरकर आखिर कब तक घर में बैठे रहेंगे। फिर जोर से चिल्लाकर बोली-सैक्स इज माई च्वाइस और खिलखिलाई भी।
शायद यही कारण है कि आज उस समय के महिला संगठनों की आवाजें सुनाई नहीं देतीं। उनकी जगह नये एनजीओज और विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रवक्ताओं ने ले ली है, जिनका अपरोक्ष सम्बंध व्यापार से भी है।
लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं।