यूं तो राष्ट्रीय मुद्दों की कोई कमी नहीं है। फिर भी जलकुकड़ों को हमेशा यह शिकायत रहती है कि राष्ट्रीय मुद्दों पर कोई बात ही नहीं करता। उन्हें सबसे ज्यादा शिकायत टीवी चैनलों से है, वैसे ही जैसे टीवी चैनलों के एंकरों को सबसे ज्यादा शिकायत विपक्ष से रहा करती है। जलकुकड़ों काे शिकायत रहती है कि टीवी चैनल हमेशा मंदिर-मस्जिद और हिंदू-मुसलमान करते रहते हैं और महंगाई, बेरोजगारी जैसे राष्ट्रीय मुद्दों पर कभी बात नहीं करते। खैर, टीवी चैनलवालों के लिए राहत की बात यह है कि अब वे कौन-सी फिल्म हिट है और कौन सी फ्लॉप-इस पर भी प्राइम टाइम चर्चा करवा सकते हैं और यूं महंगाई-बेरोजगारी जैसे राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा से साफ बच सकते हैं।
अब वह जमाना तो रहा नहीं साहब कि फिल्मों की चर्चा के लिए फिल्मी पत्रिकाएं छप रही हों। जब सामाजिक विषयों पर चर्चा के लिए तथाकथित सामाजिक पत्रिकाएं ही नहीं छप रही, साहित्य के लिए साहित्यिक पत्रिकाएं नहीं छप रही तो फिल्मी पत्रिकाएं ही कहां से छप जाएंगी। सो अब यह छूट है कि फिल्मों पर भी राष्ट्रीय मुद्दे की तरह चर्चा की जा सकती है। यार जब भूतों पर प्राइम टाइम टीआरपी लूटी जा सकती है, तो फिल्मों पर भी टीआरपी मिल ही जाएगी। चिंता क्या है।
खैर, फिल्मों पर या फिल्मवालों पर कोई अहसान नहीं होगा। अब फिल्मी दुनिया भी दो हिस्सों में बंट चुकी है, वैसे ही जैसे समाज बंट चुका है, शिक्षा बंट चुकी है, राजनीति बंट चुकी है। तो लेखकों, कलाकारों, शिक्षाविदों और बुद्धिजीवियों की तरह ही अब फिल्मी दुनिया का एक हिस्सा राष्ट्रवादी है तो दूसरा अर्बन नक्सलों का है। इसी तरह फिल्मों में अब कुछ राष्ट्रवादी हैं, कुछ नहीं हैं। अब इतिहास से संबंधित तमाम फिल्में राष्ट्रवादी हैं। दूसरी राष्ट्रवादी फिल्में खेलों से संबंधित हैं। कई को लगता है कि बस या तो ऐतिहासिक घटनाओं से संबंधित फिल्में बन रही हैं या फिर खेल से संबंधित फिल्में बन रही हैं। ऐसे में सामाजिक फिल्में बनाने की हिम्मत कौन करेगा। हां, राजनीतिक फिल्में भी बन रही हैं। मसलन कश्मीर फाइल्स बनी और अच्छी बात यह है कि चर्चा का विषय भी रही। वह सिर्फ राजनीतिक फिल्म ही नहीं थी, बल्कि उसने सक्रिय ढंग से राजनीति करवायी भी। किसी ने पक्ष की तो किसी ने विपक्ष में की। पर सबने की। फिल्म के निर्देशक टीवी चैनलों से लेकर सोशल मीडिया पर हर जगह नेताओं की तरह चर्चा में थे।
अब कश्मीर फाइल्स की तरह ही ‘धाकड़’ फिल्म चर्चा में है। वह चर्चा में इसलिए नहीं कि फ्लॉप हो गयी। फ्लॉप तो बहुत-सी फिल्में होती हैं, पर चर्चा कहां होती है। चर्चा इसलिए है कि वह कंगना रनौत की फिल्म है, जो फिल्म जगत का एक राष्ट्रवादी चेहरा है। जलकुकड़ों को लगता है कि फिल्म नहीं, बड़बोलापन फ्लॉप हुआ है।