भरत झुनझुनवाला
वर्तमान समय में देश के आयात कम और निर्यात अधिक हैं। आयात और निर्यात के अंतर को व्यापार खाता कहा जाता है। आयात कम और निर्यात अधिक होने से हमें व्यापार खाते में लाभ हुआ है। यह लाभ हमने 13 वर्षों के बाद अर्जित किया है जो कि खुशी का विषय है। इसके साथ ही हमें बाहर से निवेश मिल रहा है और अपने देश के कुछ उद्यमी दूसरे देशों में निवेश भी कर रहे हैं। आयात, निर्यात तथा आने और जाने वाले निवेश, चारों माध्यमों से जो विदेशी मुद्रा का आवागमन होता है, उसके योग को चालू खाता कहा जाता है। आयात कम और निर्यात अधिक होने से और निवेश लगभग पूर्ववत रहने से व्यापार खाते में लाभ के साथ-साथ हमारा चालू खाता भी लाभ में हो गया है।
वर्ष 2018–19 की पहली तिमाही में हमें चालू खाते में 15 अरब डालर का घाटा हुआ था जो वर्ष 2020–21 की पहली तिमाही में 20 अरब डालर के लाभ में परिवर्तित हो गया है। यह ख़ुशी की बात है। इसके साथ ही यह भी शुभ संकेत है कि हमारे निर्यातों में सेवा क्षेत्र ने कोविड के संकट के दौरान मामूली बढ़त हासिल की है जो कि इस क्षेत्र में हमारी सुदृढ़ता का द्योतक है।
हमारे सामने चुनौती है कि चालू खाते के इस लाभ को टिकाऊ बनायें। लेकिन यह कार्य अति दुष्कर दिखता है क्योंकि अर्थव्यवस्था की अंदरूनी स्थिति अच्छी नहीं है। हमारा चालू घाटे में लाभ उसी प्रकार है जैसे कोई व्यक्ति बीमार हो जाए और भोजन कम करे तो कहा जाये कि उसका ‘भोजन खाता’ लाभ में हो गया है। हमारी कमजोरी का पहला संकेत रुपये का मूल्य है। सामान्य रूप से जब किसी देश का चालू घाटा लाभ में होता है तो इसका अर्थ होता है कि (1) आयात कम और निर्यात ज्यादा हैं; (2) जाने वाला निवेश कम और आने वाला निवेश ज्यादा है; तथा (3) दोनों माध्यम से बाहर जाने वाले डॉलर की रकम कम और आने वाले डॉलर की रकम अधिक है। डालर कम मात्रा में जाने एवं अधिक मात्रा में आने से हमारे विदेशी मुद्रा बाजार में डॉलर की उपलब्धता बढ़नी चाहिए थी और डालर के दाम गिरने चाहिए थे । जैसे मंडी में आलू की आवक ज्यादा हो तो दाम गिर जाते हैं। लेकिन इस समय हो रहा है इसके विपरीत। सितम्बर 2019 में एक डालर का दाम 72 रुपये था जो सितम्बर 2020 में बढ़कर 73 रुपये हो गया था। यद्यपि डॉलर के दाम में यह वृद्धि मामूली है लेकिन डॉलर का दाम तो घटना चाहिए था। तब माना जाता कि डॉलर कमजोर और रुपया सुदृढ़ हो रहा है।
अतः प्रश्न है कि जब हमारा चालू खाता लाभ में है तो डॉलर का दाम घटने के स्थान पर बढ़ क्यों रहा है? एक डालर जो पिछले वर्ष 72 रुपये में उपलब्ध था, वह आज 70 रुपये में उपलब्ध होने के स्थान पर 73 रुपये में क्यों उपलब्ध हो रहा है? इसका कारण यह दिखता है कि विश्व के निवेशकों को भारतीय अर्थव्यवस्था पर विश्वास नहीं है। जैसे यदि आने वाली आलू की फसल अच्छी हो तो व्यापारी समझते हैं कि आने वाले समय में आलू के दाम गिरेंगे। ऐसे में आज मंडी में आलू की सप्लाई कम हो तो भी दाम बढ़ने के स्थान पर गिर जाते हैं। व्यापारियों को समझ आ जाता है कि आज महंगे आलू खरीदने का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि आने वाले समय में आलू सस्ता मिल जाएगा। इसी प्रकार यद्यपि आज हमारा चालू खाता लाभ में है, आज डालर भारी मात्रा में आ रहे हैं लेकिन फिर भी डॉलर का दाम बढ़ रहा है। निवेशकों का आकलन है कि डालर की यह आवक स्थाई नहीं होगी और शीघ्र भारत को डालर मिलना कम हो जायेंगे। इसलिए हमारे मुद्रा बाजार में डालर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने के बावजूद उसका दाम घटने के स्थान पर बढ़ता जा रहा है। मूल बात यह है कि विश्व के निवेशकों को भारतीय अर्थव्यवस्था पर इस समय विश्वास नहीं है।
दूसरा संकट यह है कि यद्यपि हमारे आयात की तुलना में निर्यात अधिक हैं लेकिन ये निर्यात कच्चे माल के अधिक और उत्पादित माल के कम हैं। जून 2019 की तुलना में जून 2020 में हमारे लौह खनिज के निर्यात में 63 प्रतिशत की वृद्धि हुई और चावल के निर्यात में 33 प्रतिशत की। इसके सामने उत्पादित माल जैसे ज्यूलरी के निर्यात में 50 प्रतिशत की गिरावट आई, चमड़ा उत्पादों के निर्यात में 40 प्रतिशत की गिरावट आई और कपड़े के निर्यात में 35 प्रतिशत की गिरावट आई है। इसका अर्थ यह हुआ कि हमारा मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र कमजोर पड़ रहा है। दूसरे देश हमसे लौह खनिज कच्चे माल के रूप में खरीदकर उससे तैयार माल बना कर बेच रहे हैं जबकि हम स्वयं अपने ही खनिज से उसी माल को बना कर नहीं बेच पा रहे हैं। हमारा सपना है कि देश को मैन्युफैक्चरिंग हब बनायें लेकिन परिस्थिति इसके ठीक विपरीत बढ़ रही है। हमारा मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र दबाव में आ रहा है। इन दोनों कारणों से वर्तमान में हमारे चालू घाटे में लाभ के टिकाऊ होने की संभावना नहीं के बराबर है।
इस परिस्थिति में सरकार को तीन कदम उठाने चाहिए। पहला, सेवा क्षेत्र में जो हमारे निर्यातों की सुदृढ़ता है, इसको कायम रखने के लिए अपनी शिक्षा व्यवस्था में अंग्रेजी को प्राथमिक स्तर से ही अनिवार्य बना देना चाहिए। अपनी सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए स्थानीय भाषा का और आधुनिक जगत में रोजगार के लिए अंग्रेजी भाषा दोनों को साथ-साथ लेकर चलना चाहिए, जिससे हमारे युवा सेवा क्षेत्र में आगे बढ़ सकें। दूसरा, सरकार को आधुनिक तकनीकों को खरीदने के लिए देश के उद्यमियों को सब्सिडी देनी चाहिए। हमारी उत्पादन लागत कम करने के लिए यह जरूरी है कि हम आधुनिकतम तकनीकों का उपयोग करें लेकिन उद्यमियों के पास इन तकनीकों को हासिल करने की क्षमता नहीं होती। इसलिए सरकार को उन्हें मदद करनी चाहिए, जिससे कि हम उत्पादित माल आधुनिक तकनीकों से सस्ता बना सकें। तीसरा, स्थानीय स्तर पर नौकरशाही द्वारा उद्योगों की वसूली पर लगाम लगाने के प्रयास करने चाहिए।
अपने देश में उत्पादित माल के मूल्य अधिक होने का एक प्रमुख कारण यह है कि नौकरशाही द्वारा जो वसूली की जाती है, उसके कारण हमारे देश की उत्पादन लागत बढ़ जाती है और हम विश्व बाजार में अपना माल नहीं बेच पाते हैं। हमें चालू खाते में लाभ से अति उत्साहित नहीं होना चाहिए बल्कि इसके पीछे जो खतरा मंडरा रहा है, उसका सामना करने के कदम उठाने चाहिए।
लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं।