
पुष्परंजन
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भूटान में 2023 में संसदीय चुनाव हैं। चुनांचे, कुर्सी दोबारा पाने की चाह ने प्रधानमंत्री लोटे को चीन के क़रीब जाने को विवश कर रखा है। 15 सितंबर, 2018 को पिछली बार आम चुनाव हुआ था। तब आर्थिक असमानता, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार, क्रिमिनल गैंग के सवाल ने सत्तारूढ़ पीडीपी (पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी) की चूलें हिलाकर रख दी थीं। पीडीपी के भारत के प्रति निष्ठा भाव को भी लोगों ने नकार दिया था। 50 वर्षीय सर्जन लोटे शिरिंग की सेंटर-लेफ्ट पार्टी, ड्रूक न्यामरूप त्शोगपा (डीएनटी) को संसद की 47 में 30 सीटों पर फतह हासिल हुई। इस समय लोटे शिरिंग को तिनके का सहारा के रूप में चीन दिख रहा है।
2008 में लोकतंत्र आने के बाद भूटानी जनता ने किसी एक पार्टी को दोबारा से सत्ता में आने नहीं दिया। 25 जुलाई, 2007 को स्थापित ड्रूक फुंसूम शोंगपा (डीपीटी) को साल भर बाद ही भूटान की सत्ता में आने का अवसर मिला था। 24 मार्च, 2008 के प्रथम आम चुनाव में डीपीटी को 47 में से 45 सीटें हासिल हुई थीं। अपार बहुमत वाली डीपीटी को पांच साल बाद, 2013 के चुनाव में मात्र 15 सीटें मिलीं। 2013 के दूसरे आम चुनाव में विजयी, पीडीपी (पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी) को 32 सीटें मिली थीं। लेकिन पांच साल बाद पब्लिक ने ‘पीडीपी’ को भी नकार दिया था।
प्रधानमंत्री लोटे शिरिंग पेशेवर सर्जन रहे हैं। इस बार उनकी राजनीतिक सर्जरी यदि सफल हुई, तो इतिहास रचेंगे। लोटे की पार्टी ‘ड्रूक न्यामरूप त्शोगपा‘ (डीएनटी) के लिए भी अग्नि परीक्षा है। 20 फरवरी, 2023 को थिंपू से प्रकाशित दैनिक ‘क्वेनसेल’ की रिपोर्ट थी, ‘2022 में भूटान में 46.7 फीसद बेरोज़गारी है, जिससे सबसे अधिक प्रभावित युवा हैं।’ इसका अर्थ यही निकलता है कि प्रधानमंत्री लोटे शिरिंग भी हवा-हवाई साबित हुए हैं। ग्रामीण इलाक़ों में सर्वाधिक तीन लाख 1 हज़ार 37 बेरोज़गार दर्ज किये गये। शहरी बेरोज़गार थे 1 लाख 83 हज़ार 929। थिंपू, गासा, वांगदू, पारो, सरपांग, ज़ेमगांग में कई मौकों पर जाना हुआ था, तब विपन्नता और बेरोजग़ारी भयावह रूप में नहीं थी।
प्रधानमंत्री लोटे शिरिंग के लिए जो चिंता वाली बात है, वो ये कि उनकी पार्टी की सदस्यता अर्श से फर्श पर आ गई है। भूटान के निर्वाचन आयोग ने हाल में एक सूची जारी की, जिसमें पार्टियों की सदस्यता का ब्योरा है। पांच साल पहले लोटे की सेंटर-लेफ्ट पार्टी, ड्रूक न्यामरूप त्शोगपा (डीएनटी) के 11 हज़ार से अधिक सदस्य रजिस्टर्ड थे, अब इनकी संख्या केवल 200 रह गई है। ड्रूक फुंसूम शोंगपा (डीपीटी) जिसने भूटान का पहला चुनाव जीता था, उसके सदस्यों की संख्या सर्वाधिक है, 5 हज़ार 267। पीडीपी के सदस्य हैं, 5,143। भूटान क्वेन न्याम पार्टी के केवल 1100 रजिस्टर्ड मेंबर हैं। प्रधानमंत्री लोटे शिरिंग ‘औरों को नसीहत, ख़ुद मियां फ़ज़ीहत’ वाली स्थिति में हैं। ऐसे में कोई चीन से आकर उन्हें चुनाव में विजयी बना देगा, इस ‘चमत्कार’ की प्रतीक्षा कर लेते हैं।
47 सदस्यीय भूटानी संसद ‘ग्येलयोंग त्शोग्दू’ के वास्ते दो चरणों में मतदान 15 सितंबर और 18 अक्तूबर, 2018 को हुआ था। भूटानी संविधान के मुताबिक, चुनाव के आखि़री दौर में सिर्फ़ दो पार्टियां ही मुक़ाबले में रह सकती हैं। सत्तारूढ़ पार्टी ड्रूक फेंन्सुम त्शोंगपा (डीपीटी) की हार और सेंटर लेफ्ट विचारधारा वाली लोटे की पार्टी ड्रूक न्यामरूप त्शोंगपा (डीएनटी) की जीत से तब लगा था कि चीन अपना कार्ड खेलेगा।
दिल्ली में जो डिप्लोमेट भूटान डेस्क देख रहे हैं, पांच साल पहले भी चीनी पैठ की ख़बर से उन पर असर नहीं पड़ा था। चीन और भूटान के बीच कूटनीतिक संबंध नहीं हैं, फ़िर भी नई दिल्ली स्थित चीनी राजदूत लुओ झाओ हुई 2018 में हुए आम चुनाव से पहले, 21 से 25 जनवरी, 2017 को थिंपू में थे। चीनी राजदूत की उन दिनों डीएनटी के अध्यक्ष डॉ. लोटे छिरिंग से मुलाक़ात हुई थी। जनवरी से अक्तूबर, 2018 के बीच नई दिल्ली से चीनी दूतावास के डिप्लोमेट पांच बार थिंपू की यात्रा कर चुके थे।
सेंटर लेफ्ट के नेता से एंबेसडर लुओ झाओ हुई मिल रहे हैं, इस ख़बर पर दिल्ली में चुप्पी-सी थी। एक वाकया पहली अगस्त, 2018 को दिल्ली में ही हुआ था। उस दिन चीनी दूतावास में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की 90वीं वर्षगांठ मनाई जा रही थी, उस मौके पर भूटान के राजदूत वेत्सोप नामग्याल डिनर पर आमंत्रित थे। भूटान के 53 देशों से कूटनीतिक संबंध हैं। चीन उस सूची में नहीं है। बावजूद उसके, चीन के उप विदेश मंत्री खोंग शूएनयू एक हाई लेबल डेलीगेशन के साथ 22 जुलाई, 2018 को थिंपू पधारते हैं।
भूटान में चीन लगातार अपनी कठपुतली सरकार की स्थापना के प्रयास में लगा रहा है। एक उदाहरण ड्रूक नेशनल कांग्रेस (डीएनसी) है, जिसकी स्थापना 16 जून, 1994 को काठमांडो में हुई थी। उसके अध्यक्ष रोंगथोंग कूनले दोरजी काठमांडो में तैनात तत्कालीन चीनी राजदूत शाओ चियोंग छू के संपर्क में आये। उन्हें पार्टी चलाने के वास्ते धन की चिंता से मुक्ति मिल गई। यह नई दिल्ली को रास नहीं आया। रोंगथोंग कूनले दोरजी काठमांडो से किसी बहाने दिल्ली लाये गये। 13 वर्षों तक लगभग रोज़ थाने में हाज़िरी लगाते। दिल्ली के थाने से छुटकारे के बाद रोंगथोंग कूनले दोरजी को सिक्किम जाने का अवसर मिला, वहीं 19 अक्तूबर, 2011 को उन्होंने देह त्याग दिया। चीन अपने प्रयासों से थकता नहीं है। 2018 में चुनाव से पहले जो नई पीढ़ी नेपाल से प्रभावित थी, उसने सेंटर लेफ्ट विचारधारा को भूटान में मज़बूत किया था।
प्रधानमंत्री लोटे शिरिंग ने 23 हज़ार प्रसार संख्या वाले बेल्जियम के अख़बार ला-लीब्रे को जो इंटरव्यू दिया, उससे दिल्ली में भूटान डेस्क देखने वाले हमारे कूटनीतिकों को कतई टेंशन नहीं है। बेल्जियम दौरे के समय ‘ला-लीब्रे’ से साक्षात्कार में लोटे ने यही कहा था कि चीन ने जो अधोसंरचना खड़े किये, वो भूटानी सीमा में नहीं आते। अब सवाल यह है कि प्रधानमंत्री लोटे शिरिंग ऐन चुनाव के समय चीन से पंगा क्यों लें?
पांच वर्षों में चीन की जड़ें भूटान में कितनी गहरी हुई हैं, सही से पड़ताल हो, तो हमारी कूटनीति हाशिये पर जाती दिखेगी। सुन वेईतोंग 2019 से 2022 तक दिल्ली में चीन के राजदूत रहे हैं। 25 नवंबर, 2019 को पीएम लोटे ने स्वयं अपने अकाउंट से ट्वीट किया कि सुन वेईतोंग आज थिंपू में मिले, विभिन्न मुद्दों पर बात की। सुन वेईतोंग 2022 तक के कार्यकाल में निरंतर भूटानी पीएम लोटे से मिलते रहे, सीमा समझौते पर बातचीत के लिए अक्तूबर, 2019 में एमओयू पर हस्ताक्षर हुए। जल विद्युत और अधोसंरचना में चीनी सहयोग का अहद किया गया। हमारे नीति-नियंता खामोशी से यह सब देखते रहे।
लेखक ईयू-एशिया न्यूज़ के नयी दिल्ली संपादक हैं।
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