सुहैल आया था मिलने… अपनी नयी महंगी बाइक को इस ऊंचे पहाड़ तक दौड़ाता हुआ मेरे अड्डे पर। तीन दिन डेरा जमा कर कूच किया, यह कह कर कि अगली बार जब आयेगा तो तीन सौ सत्तर का हटना कश्मीर के लिए पुरानी बात हो चुकी होगी। इस लड़के की कहानी भी ग़ज़ब की है। विरासत में ख़ूब सारी दौलत मिली है। वालिद के पास उनके वालिद का छोड़ा हुआ जाने कितने ही एकड़ों में पसरा हुआ सेब का बागान है और दसियों शिकारे और एक विशाल सीमेंट की फैक्टरी। लेकिन सुहैल को गणित के फॉर्मूलों से कुछ इस क़दर इश्क़ हुआ कि उसने इंजीनियर बनने की ठानी और कूच कर गया रूस की ओर। वहां मुहब्बत हो गयी वहीं की एक बाला से। कुछ को यह नागवार गुजरा। सुहैल को बुलवा लिया गया। कुछ महीने पहले ही ख़रीदी हुई हार्ले डेविडसन को उठाये श्रीनगर से कुपवाड़ा और फिर कुपवाड़ा से यहां मेरे पास तक की चढ़ाई पर डुग-डुग करता आ गया।
सुहैल जैसे चंद युवा वर्तमान परिदृश्य में कश्मीर का नया इतिहास रचने जा रहे हैं। गवर्नर का बुलावा आया था इसको और इसके ही जैसे ढेर सारे युवा बिजनेसकर्ताओं को। आधुनिक ज़िन्दगी की समस्त सुविधाओं का लुत्फ़ लेते हुए महज विरोध के नाम पर विरोध की दुदुम्भी बजाने वाले ‘की-बोर्ड रिवोल्यूशन’ के क्रांतिकारियों की टोलियां अपने ड्राइंग-रूम में बैठ कर ऑनलाइन पिज्जा और बर्गर ऑर्डर करती हैं, लेकिन इन्हीं सुविधाओं से धरती के इस कथित जन्नत के बाशिंदों को वंचित रखना चाहती हैं। श्रीनगर में बुलेवर्ड-रोड पर अभी कुछ साल पहले ही खुले ‘कैफे कॉफ़ी डे’ की रौनक और स्कूल-कॉलेज आवर के पश्चात उमड़ते लड़के-लड़कियों का ग्रुप इसी अशांत कश्मीर की कितनी दिलकश छवि प्रस्तुत करते हैं। सुहैल कह रहा था कि ‘यार देख, हम लोग दिल्ली जाते हैं …ओला और उबेर की टैक्सियों को देखते हैं और एप से उनको हुक्म देते हैं कि हम यहां खड़े हैं, आओ और हमें पिक करो…। लेकिन किसी रोज़ हम एकदम आराम से आना चाहते हैं इन्हीं पहाड़ों पर अपने मोबाइल एप से बुक की गयी टैक्सी में बैठ कर।’ वैसे डायरी डियर, मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि बादशाह जहांगीर ने ऐसे ही किसी ख्व़ाब की ताबीर करते हुए कहा होगा :-
‘अगर फ़िरदौस बर-रू-ए-ज़मीं अस्त… हमीं अस्त ओ हमीं अस्त ओ हमीं अस्त।’
साभार : गौतम राजऋषि डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम