कभी-कभी एक पल, एक निर्णय या एक बिंदु इतना महत्वपूर्ण हो जाता है कि उसे लेकर की गई एक हां अथवा एक ना दुनिया को रंग से बेरंग और बदसूरत से खूबसूरत बना देती है। अर्थ बदल जाते हैं। कुछ संदर्भ देखिए।
याहू ने गूगल के साथ आने से मना कर दिया। नोकिया ने एंड्रॉइड को मना कर दिया। इनका परिणाम-समय के साथ खुद को अपडेट करें, अन्यथा आप अप्रचलित हो जाएंगे। कोई जोखिम नहीं लेना सबसे बड़ा जोखिम है। ऐसे ही एक उदाहरण फेसबुक ने इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप का अधिग्रहण किया। इसका परिणाम-तेजी से बढ़ो, बड़े बनो। दो अन्य कहानियों को समझिए। बराक ओबामा ने शुरुआती जीवन में छोटे-मोटे काम-धंधे कर जीविका चलाई। एलन मस्क एक लंबर मिल में श्रमिक थे। इनमें छिपे संदेश-लोगों को उनकी पिछली नौकरियों के आधार पर जज न करें। आपका वर्तमान आपके भविष्य, आपके साहस और परिश्रम को तय नहीं करता है।
इन सबके बाद दो और अंतिम कहानियां। पहली फेरारी के मालिक ने एक ट्रैक्टर बनाने वाले का अपमान किया। ट्रैक्टर निर्माता ने लेम्बोर्गिनी बनाई। इन कहानियों में नैतिक संदेश क्या छिपा है। एक तो यह कि कभी किसी को कम मत समझो या उसका अनादर मत करो। दूसरा, सफलता सबसे अच्छा बदला है। इन कहानियों को यहां बताने का उद्देश्य यह है कि आप किसी भी उम्र में और किसी भी पृष्ठभूमि से सफल हो सकते हैं। बशर्ते आपको तीन चीजें करनी होंगी। ये तीन चीजें क्या हैं, आइये इन्हें समझिए। एक तो है सोच बड़ी रखना। यह सोच सिर्फ अपने लिए नहीं होती। आपके अपने साथियों के प्रति होती है। आपसे जूनियर के लिए होती है या फिर आपसे सीनियर्स के लिए भी। यदि आपने सोच बड़ी रख ली तो फिर दूसरा काम सामने आता है। यह काम है लक्ष्य को बनाना। आप लक्ष्य निर्धारित कीजिए। पहले बड़ी सोच फिर बड़ा लक्ष्य। फिर अगला पड़ाव आता है मेहनत का। आपको कड़ी मेहनत करनी है। इस कड़ी मेहनत का सिरा होगा आपके लक्ष्य की तरफ और यह लक्ष्य होगा आपकी बड़ी सोच का परिणाम। यानी आपने सोच बड़ी रखी फिर लक्ष्य निर्धारित किया और उसके बाद आप मेहनत में जुट गए तो निश्चित रूप से सफलता आपको मिलेगी। यह सफलता कई अर्थों में होती है। इसे मानसिक बोझ मानकर मत चलिए। सफलता छोटे-छोटे स्तरों से आती है।
साभार : अब छोड़ो भी डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम