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चट मंगनी पट तलाक से हलकान ज़िंदगी

व्यंग्य/तिरछी नज़र

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राकेश सोहम‍्

उसके सिर पर बड़ा-सा व्हाइट-क्रॉस चिपका हुआ था। मैंने छेड़ा, ‘भाभी जी से झगड़कर आए हो?’ वह चौंका, ‘तुम्हें कैसे मालूम?’ मैं समझा मज़ाक कर रहा है। दिलो-दिमाग में उसकी सुखी वैवाहिक जीवन की छवि बनी हुई थी। उसने खुद बताया था कि उनकी आपसी समझ कितनी अच्छी है। मैं उनकी ‘अंडर-स्टैंडिंग’ से प्रभावित था- बीवी हो तो ऐसी। तभी वह उदास-सा बोला, ‘नहीं यार, तेरी भाभी ने सिर पर फूल मार दिया।’ मैं चौंका, ‘अरे! फूल से ऐसी चोट लगती है भला?’ वह रुआंसा होकर बोला, ‘दरअसल, फूल गमले में लगा था और गुस्से में गमला सहित सिर पर दे मारा।’ एक सुखी विवाहित का ऐसा रूप! जब उसकी शादी न हुई थी तब वह मर-मिटने को तैयार था, कहता था- यदि उससे शादी न हुई तो मर जाएगा। अब मर रहा है तो रोता है?

यह घटना चुटकुले-सी लगती है। वास्तव में सच्चाई से चुटकुले जनमते हैं। जिसे लोग समाज, राजनीति, व्यवस्था या धर्म के डर से सीधे नहीं सुन पाते, उसे चुटकुला कहकर स्वीकारते हैं। चुटकुले सच्चाई को बेअसर कर देते हैं। आपसी अंडर-स्टैंडिंग का ज़ामा पहने पति-पत्नी घर के बाहर अच्छे लगते हैं। अच्छी पोशाकें, कॉस्मेटिक्स व परफ्यूम का जादू हटते ही सब कुछ बदल जाता है। कुंठाएं, अनबन, तनाव, तू-तू, मैं-मैं, मारपीट और प्रताड़नाएं नर्तन करने लगती हैं। विवाहित जीवन की मधुरता दूसरा खूबसूरत पहलू भी है। खबर है एक विवाहिता ने ज़हर खाकर जान दे दी तो उसके दुखी पति ने इमारत की चौथी मंज़िल से कूदकर जान दे दी। अनोखी है विवाहित जीवन की ऐसी लालसा। प्यार के चरमोत्कर्ष का ऐसा अनूठा रूप है। हालांकि, मसखरे कहते हैं- बगैर शादी मुक्ति नहीं मिलती। शादी पूर्व स्वर्ग से उतरी अप्सरा-सी वधू पति के घर को स्वर्ग बनाती है तथा पति को स्वर्गवासी!

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बहरहाल, आज मैं कुंवारे दिनों को याद करता हूं तो नाक से ‘घर-घर जल’ के नलों की तरह सूं-सूं कर हवा निकलती है। मन के नल से आंसुओं की सप्लाई नहीं होती। हमें याद है, हमारी शादी ‘चट मंगनी पट ब्याह’ के दौर में हुई थी। हमने लड़की देखी और हां कर दी। चट मंगनी हो गई। पंडित ने 27 गुणों का मिलान करके पट ब्याह करा दिया। बस, यहीं गड़बड़ी हो गई। पंडित की गुण-मिलान-एक्यूरेसी ने कठिनाई पैदा कर दी। मेरी प्रत्येक पसंद न-पसंद पत्नी की पसंद न-पसंद से बिल्कुल मिलती है। मुझे खाना-बनाना पसंद नहीं, उसे भी नहीं। मुझे आराम अच्छा लगता है, वह भी आराम-परस्त है।

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बहरहाल, अब पछताने से क्या होगा? पत्नियां नाराज़ न हों। उनका दोष नहीं है। विवाहित जीवन के सवालों का कोई अचूक जवाब नहीं होता। कुछ दिनों से पश्चिमी सभ्यता ने नई सोच दी है- चट शादी, पट तलाक़।

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