सिंघई सुभाष जैन
अखबारों में मुखपृष्ठ पर खबर छपी है कि दुनिया के सबसे शक्तिशाली लोकतंत्रीय देश के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति के दायें पैर की हड्डी टूट गई। दरअसल पुरुषों के दायें पैर की हड्डी टूटना एक शुभ संकेत माना जाता है। कहा जाता है कि जीवन की बला सिर से शुरू होकर पैर से निकल जाती है। लेखकों के पैर की हड्डी टूट जाने के बाद लेखन में निखार आ जाता है। आदरणीय व्यंग्य दादा हरिशंकर परसाई जी के पैर की हड्डी टूटने की खबर विख्यात है ही। कोरोना काल में पैर की हड्डी टूटना एक महत्वपूर्ण और स्वहित प्रक्रिया है। बुजुर्गों को अपना ध्यान रखने और माला जपने के बहुत अवसर स्वतः मिल जाते हैं।
मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए बचपन के अच्छे दिनों को याद करना ठीक रहता है। अतः फ्रेक्चर होने पर बचपन के खेल ‘डेढ़ टांग की दौड़’ का स्मरण हुआ करता है। बॉलीवुड में टकला, मच्छर, सर्किट व लंगड़ा आदि संबोधन अक्सर कहे जाते हैं। अब डेढ़ पैर से घर में चलने या खिसकने का लुत्फ लिया जा सकता है। घर पर किसी व्यक्ति के आने पर दरवाज़े खोलना और रात को कंपाउंड गेट बंद करने के काम से मुक्ति मिल जाती है। घर के छोटे बच्चों के मन बहलाने का काम बहुओं को शिफ्ट हो जाता है।
बिस्तर पर लेटे-लेटे फेसबुक, व्हाट्सएप , इंस्टाग्राम, ट्विटर पर समय गुजारने का सुख मिल जाता है। सबसे अधिक फायदा डॉक्टरों को हो रहा है। पैर के चार एक्सरे करवाते हैं। जहां फ्रेक्चर हो गया है, उसके आगे और दाएं व बाएं भी करवाते हैं। डॉक्टर कहते हैं कि चोट के भूकंप से आसपास की हड्डी भी चरमरा सकती है।
कोरोना काल के कारण मरीज कम आ रहे हैं, सो फीस ज्यादा है। हड्डी टूटने पर अब कोई पूछने नहीं आता। लोग मोबाइल पर पूछते हैं-ये क्या हुआ, कैसे हुआ, कब हुआ? अच्छे डॉक्टर से इलाज कराने की सलाह भी दे देते हैं। हम भी भुक्तभोगी हैं। हमने तो हड्डी टूटने के कारण स्वरूप एक पांच मिनट की ऑडियो बना दी है। कोई पूछता है तो सुनाने लगते हैं। तब सामने वाला कहता है-व्हाट्सएप पर भेज दें।