गोपाल मिश्रा
इससे पहले कि सपने सच हों, आपको सपने देखने होंगे। हमारे अंदर थोड़ी-सी अच्छाई होती है तो हमें लगता है कि हम कितने अच्छे हैं। किसी नेत्रहीन को सड़क पार करा दिया तो लगता है कि कुछ बड़ा काम कर दिया। किसी स्वच्छता अभियान में झाड़ू उठा ली तो भी हम प्राउड फील करते हैं। ये सब अपनी जगह ठीक है। जब हम महात्मा गांधी और डॉ़ एपीजे अब्दुल कलाम जैसे महान लोगों के जीवन में झांकते हैं तो समझ आता है कि हम तो कुछ भी नहीं हैं। इनकी सादगी और महानता के बारे में पढ़ कर आंखें नम हो जाती हैं कि कोई ऐसा भी हो सकता है भला। फिर लगता है कि अगर इनके जैसा बनना है तो अन्दर से बहुत सफाई करनी होगी।
डॉ. कलाम का जीवन हम सबके लिए प्रेरणादायक है। हम इन्हें सिर्फ पढ़ें नहीं, बल्कि इनसे मिलने वाली सीख को अपने जीवन में उतारने का प्रयास भी करें। एक बार एक समारोह में जब खाने के वक्त कुछ भारतीय बच्चे डॉ. कलाम से मिलने पहुंचे तब उन्होंने एक स्टूडेंट को अपनी प्लेट में खाने के लिए कहा। बच्चे ने उनके सलाद में से पालक की एक पत्ती उठा ली, जो उसकी बाकी की ज़िन्दगी के लिए ‘लीफ ऑफ इन्सपिरेशन’ बन गयी।
जब डॉ. कलाम डीआरडीओ में थे तो किसी बिल्डिंग की सुरक्षा के लिए उसकी बाहरी दीवारों के ऊपर कांच के टुकड़े लगाने का सुझाव आया। कलाम ने मना कर दिया क्योंकि उन्होंने सोचा कि इससे दीवार पर बैठने वाले पक्षियों को परेशानी होगी। अनेक उदाहरण हैं जो सोचने को मजबूर करते हैं कि वाकई कोई भी व्यक्ति महान तभी बनता है जब वह छोटी-छोटी बातों पर भी सोचता है और कुछ करता है। राष्ट्रपति बनने के कुछ दिन बाद वह जब केरल राजभवन गए तो उन्होंने एक मोची और एक छोटे से होटल के मालिक को भी बुलाया क्योंकि उन्हें ये तब से जानते थे जब वह बतौर वैज्ञानिक त्रिवेंद्रम में रहे थे। बीएचयू वाराणसी के दीक्षांत समारोह में खुद के लिए लगी बड़ी कुर्सी को कलाम साहब ने हटवा दिया और सबके बराबर वाली कुर्सी मंगवाकर उस पर बैठे।
राष्ट्रपति बनते ही डॉ. कलाम ने अपनी सारी सेविंग्स दान कर दीं क्योंकि वह जानते थे राष्ट्रपति रहते एवं उसके बाद भी सरकार उनकी सारी जरूरतें पूरी करेगी। सचमुच डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम जैसे व्यक्तित्व का इस धरती पर जन्म लेना भारत के लिए गौरव की बात है।
साभार : अच्छी खबर डॉट कॉम