आलोक पुराणिक
वह कंपनी कुछ दिनों पहले ही एक मोबाइल फोन लेकर आयी थी, बताया गया था कि उसकी स्पीड बहुतै तेज है। बहुतै तेज मतलब, बटन दबाते ही मोबाइल खुल जाता है और तमाम वेबसाइटें खुल जाती हैं। इधर स्पीड-स्पीड-स्पीड की बातें बहुत डराती हैं। कुछेक सेकंड बचाकर करना क्या है। हवाई जहाज से उतरते वक्त एक सीन अक्सर देखने को मिलता है। जहाज जैसे ही लैंड करता है, कई लोग बेचैन होकर खड़े हो जाते हैं सीट पर। निकलने के लिए धक्कामुक्की करने लगते हैं।
पर लोग मार मचाये रहते हैं, स्पीड, स्पीड, दस मिनट बचाकर कोई क्या करता है। क्या कर सकता है। मिनट-मिनट काटकर कोई समय बचाता है, फिर सवाल उठता है कि इस समय का क्या किया जाये। समय बहुत लगता है अगर काटना हो। नेटफ्लिक्स देखो, यूट्यूब के वो वीडियो देखो, जिनमें एक वीरांगना साड़ी पहनकर कूद रही है। वीरांगना की तरह जो बालिका हवाई जहाज से धक्कामुक्की करके उतरी थी, वही टाइम पास करने के लिए वीरांगना वाला वीडियो देख रही होती है।
टाइम ऐसे ही काटना है तो टाइम बचाना क्यों। पहले टाइम बचाने के लिए माथापच्ची करो, फिर टाइम काटने के लिए टेंशन लो। नेटफ्लिक्स देखो, फिर यह देखो, फिर वो देखो।
स्पीड वाली कार दफ्तर आधे घंटे पहले पहुंचा देती है। पहले पहुंचकर क्या करते हैं, चुगली, साजिशें। अहा क्या सीन हो, बंदा बारह किलोमीटर दूर दफ्तर पैदल जा रहा है। सुबह आठ बजे निकल ले पैदल, ढाई घंटे में दफ्तर पहुंचेगा। बाडी फिट रहेगी।
फास्ट मोबाइल क्या करेगा, कुछ सेल्फी ज्यादा फास्ट ले लेगा। एक मिनट में आठ नहीं, दस सेल्फी ले लेगा। टाइम है तो सदुपयोग नहीं, सेल्फी-उपयोग होगा। अहा क्या दिन थे वो जब मोबाइल सिर्फ बात करने के काम आता था। अब बातें होती हैं तो यह कि तूने सोशल मीडिया पर सेल्फी सिर्फ लाइक की, कमेंट ना लिखा।
आफत क्या है, टाइम ज्यादा होना, या टाइम कम होना, इधर अपना टाइम में इस प्रश्न पर सोचने में लगा रहा हूं।
टाइम ज्यादा हो जाता है, तो बंदा घुस जाता है उस सीरियल में, जहां एक पड़ोसी अपने उस पड़ोसी की पत्नी को फंसाने की कोशिश कर रहा है, जो खुद इसी परियोजना में लगा हुआ है। कई सालों से लगे हुए हैं। कामयाब ना हो पा रहे हैं, सिर्फ सरकारी परियोजनाएं ही लंबी ना खिंचती, कई बार निजी छिछोरेपने की परियोजनाएं भी खिंचती चली जाती हैं। वो लोग टाइम निकाल कर इस सीरियल को देख रहे हैं, जो कहते पाये जाते हैं-मरने की फुरसत नहीं है पर छिछोरेपन के लिए तो टाइम निकाला जाता है।
पर मोबाइल स्पीड बढ़ा रहा है, टाइम बचा रहा है। और इस बात के पैसे बढ़ाकर ले रही है मोबाइल कंपनी। सोच रहा हूं टाइम बचाकर हो क्या रहा है-छिछोरगर्दी को प्रोत्साहन देने के सिवाय़।