अरुण नैथानी
केरल के कोझीकोड की जासना सलीम पिछले दिनों सुर्खियों में तब आई जब एक प्रतिष्ठित मंदिर के गर्भगृह में उसके रचे श्रीकृष्ण प्रतिष्ठित हुए। जासना ने विधिवत् चित्रकला का प्रशिक्षण नहीं लिया, रूढ़िवादी मुस्लिम परिवार में पली-बढ़ी। अपने घर में किसी अन्य धर्म के चित्र रखने की भी उसे इजाजत नहीं है। लेकिन वह श्रीकृष्ण के मोहक बालरूप का जीवंत चित्र उकेर देती है। एक समय ऐसा भी था जब उसके चित्र बनाने का परिचितों व रिश्तेदारों ने विरोध किया। वहीं उसे मंदिर में जाने की इजाजत भी नहीं थी। दुविधाओं और मुश्किलों के बावजूद वह पिछले छह साल से श्रीकृष्ण के सैकड़ों चित्र बना चुकी है। केरल व राज्य के बाहर उसके चित्रों की काफी मांग है। अब यह उसकी आय का जरिया भी बन रहा है। उसके गहरे अहसासों को इस बात से महसूस किया जा सकता है कि जब उसके प्रिय विषय पर बात होती है, तो वह चहक उठती है।
यूं तो सदियों से भारत की गंगा-जमुनी संस्कृति में मुस्लिम साहित्यकारों, चित्रकारों व कवियों ने श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन किया है, लेकिन मौजूदा दौर में जासना सलीम की गाथा वाकई प्रेरणादायक है। वह धर्म के उस रूप को परिभाषित करती है जो लोगों को जोड़ता है। श्रीकृष्ण की बालसुलभ क्रीड़ाओं की अभिव्यक्ति उसे सुकून देती है। धर्म विशेष में आस्था न होने के बावजूद श्रीकृष्ण का नख-शिख चित्रण जीवंतता के साथ उभरता है। उनके अधिकांश चित्रों में श्रीकृष्ण का वह रूप है, जिसमें उनके मुख पर मक्खन लगा है और हाथ मक्खन की मटकी के भीतर हैं। पहले उसने वह चित्र बनाया, जिसमें श्रीकृष्ण के हाथ बंधे हुए हैं, लेकिन उसे उनका मक्खन खाते हुए का रूप ज्यादा मोहक लगा। वह पिछले छह सालों की मेहनत से करीब पांच सौ चित्र बना चुकी है।
जासना सलीम इस बात से बेहद खुश है कि बाल श्रीकृष्ण के चित्र को वह स्वयं एक प्रतिष्ठित मंदिर को भेंट कर सकी है। दरअसल, बाल-कृष्ण की पूजा के लिये मशहूर पन्दलम शहर स्थित अस्सी साल पुराने उलानाडु श्रीकृष्ण स्वामी मंदिर को उसने बाल श्रीकृष्ण की पेंटिंग उपहार के रूप में भेंट की है। जब मंदिर के प्रबंधकों को पता चला कि जासना की पेंटिंग गुरुवायूर के प्रसिद्ध कृष्ण मंदिर को दी गई है तो मंदिर समिति ने स्वयं जासना से पेंटिंग मांग ली।
बताते हैं कि एक बार बेड रेस्ट पर आई जासना को एक कागज में श्रीकृष्ण की तस्वीर दिखाई दी थी। तब वह गर्भावस्था में थी और श्रीकृष्ण के बारे में ही सोचती थी। उसने चित्र बनाने का प्रयास किया। उसने जीवन में पहली बार चित्र बनाया था। वह कहती है कि स्कूल में पढ़ाई के दौरान उसने नक्शे तो बनाये लेकिन चित्रकला उसका विषय नहीं था। उसके पति ने जब श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़ी रोचक कथाओं से परिचित कराया तो उसकी बालसुलभ कृष्ण के चित्र बनाने की रुचि बढ़ी। उसे श्रीकृष्ण की बाल जीवन की मोहकता का अहसास हुआ। हालांकि, जासना ने चित्रकला की कोई पेशेवर ट्रेनिंग नहीं ली है। लेकिन इसके बावजूद वह श्रीकृष्ण के मोहक चित्र बनाती है, जिसे लोग हाथों-हाथ लेते हैं। मगर जासना की दिक्कत यह थी कि वह रूढ़िवादी मुस्लिम परिवार से आती थी और चित्र को घर में नहीं रख सकती थी। हालांकि उसके ससुराल वालों ने पेंटिंग बनाने पर कोई एतराज नहीं किया। पति के संबल ने उसके अरमानों को पंख दिये। पहला चित्र बनाया तो घर में न रख पाने के कारण एक नंबूदरी परिवार की सहेली को वह चित्र दे दिया। उस परिवार के लिये भी यह चौंकाने वाला वाकया था कि एक मुस्लिम महिला ने कितना सुंदर श्रीकृष्ण का चित्र बनाया है।
अक्सर जासना सलीम से यह प्रश्न किया जाता है कि वह मटकी से मक्खन खाने वाला ही चित्र क्यों बनाती हैं। वह मुस्कराते हुए व्याख्या करती है कि वे दोनों हाथ से मटकी पकड़े होते हैं, जैसे कि उन्हें चिंता हो कि कोई उनका मक्खन न छीन ले। यह भी कि यह एक ऐसा चित्र है, जिसमें एक बालक अपनी मनपसंद चीज के साथ सुकून में नजर आता है। इस चित्र को देखने से खुशी मिलती है। उसका मानना है कि मैं यह चित्र लाभ के लिये नहीं बनाती, बल्कि इसे बनाने से मुझे मानसिक संतुष्टि मिलती है।
निश्चित रूप से आज जब दुनिया में धर्म को टकराव का माध्यम बनाया जा रहा है, जासना सलीम की सद्भावना की पहल सुकून देने वाली है। वह वर्षों से प्रसिद्ध गुरुवायूर श्रीकृष्ण मंदिर को नटखट श्रीकृष्ण के चित्र उपहार में देती रही है। इसके बावजूद कि मुस्लिम होने के चलते उसे मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं थी। अब जब उलानाडु में श्रीकृष्ण स्वामी मंदिर के गर्भगृह में उसकी पेंटिंग प्रतिष्ठित हो गई है तो उसका कहना कि यह उसके लिये सपने के सच होने जैसा है। इस पेंटिंग को ‘उन्नी कन्नन’ नाम दिया गया है जिसका मलयालम में अर्थ होता श्रीकृष्ण का बालरूप। इससे जुड़ा एक रोचक प्रसंग यह भी है कि दो बच्चों की मां जासना तीन भाई-बहनों में सबसे छोटी थी। बचपन में उसके मां-बाप प्यार से कन्ना संबोधन से बुलाते थे, जिसका अर्थ होता है प्रिय बच्चा या श्रीकृष्ण। कहीं न कहीं उसके अवचेतन में श्रीकृष्ण बचपन में आए थे।
बहरहाल, आज जासना परंपरागत मीडिया व सोशल मीडिया में सुर्खियां बटोर रही है। लोग दूर-दूर से पेंटिंग लेने उसके पास आते हैं। कक्षा दसवीं तक पढ़ी जासना की समृद्ध कला अलौकिक देन जैसी ही है। जासना की इच्छा है कि एक दिन वह प्रधानमंत्री मोदी से मिलकर उन्हें श्रीकृष्ण की पेंटिंग भेंट करे।