अरुण नैथानी
राजनीति इतनी निष्ठुर होती है कि सत्ता की महत्वाकांक्षा के लिये किसी प्रतिभा और संभावना को कुचलने से भी गुरेज नहीं करती। अब चाहे किसी के सपने कुचलें या राजनीतिक जीवन बर्बाद हो। ऐसे ही राजनीतिक षड्यंत्रों से जूझते मलेशिया के चर्चित राजनेता अनवार इब्राहिम को अपार जनसमर्थन और योग्यता के बावजूद सत्ता की बागडोर हासिल करने में चौथाई सदी का इंतजार करना पड़ा। दरअसल, सत्ता की कामधेनु से चिपके उनके प्रतिद्वंद्वी ने 92 साल की उम्र में भी सत्ता में काबिज रहने का मोह नहीं छोड़ा। जिसके लिये उन्होंने कभी भ्रष्टाचार के आरोप में अनवार को सींखचों के पीछे भिजवाया। जब अदालत ने बरी किया तो नये आरोपों में नाप दिया। कभी मलेशिया के समाज में वर्जित दैहिक रिश्तों के आरोप लगाये। बार-बार अदालत ने बरी किया तो फिर-फिर जेल भिजवाया। लेकिन जब राजनीति हित साधने में उनकी जरूरत पड़ी तो उन्हें जेल से रिहा कराकर गले लगा सत्ता की चाबी हासिल कर ली। लेकिन अब पच्चीस साल बाद जनादेश हासिल करके वे सत्ता की दहलीज पर पहुंचे। अब 75 साल की उम्र में वे मलेशिया में सत्ता की बागडोर संभालने जा रहे हैं।
बहरहाल, लंबे अरसे से मलेशिया की बागडोर संभालने की आकांक्षा रखने वाले अनवार इब्राहिम के अनुकूल परिस्थितियां तो कई बार बनीं। लेकिन राजनीतिक तिकड़मों ने उनकी मंजिल दूर कर दी। कम से कम दो बार उनकी मंजिल उन्हें छू कर निकल गई। लेकिन तमाम राजनीतिक आक्षेपों के बावजूद जनता में उनकी साख बनी रही। विपक्ष का नेतृत्व उन्हें मिलता रहा। तमाम गंभीर आक्षेपों के बावजूद जनता में उनकी स्वीकार्यता बनी रही। यहां तक कि जब उनके धुर विरोधी भी राजनीति में कमजोर नजर आए तो उनका सहयोग लेने से भी गुरेज नहीं किया गया। राजनीति व अपराध के गठजोड़ के दौर में भी यदि किसी का राजनीतिक भविष्य खत्म करने के लिये साजिशन अपराध गढ़ दिये जाएं तो यह दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जा सकता है। बहरहाल, 75 साल में जन समर्थन और राजा द्वारा उन्हें प्रधानमंत्री मनोनीत करना इस बात का परिचायक है कि उन पर लगे आरोप राजनीति की छाया में थे।
एक प्रतिभावान और उम्मीदों के नेता के रूप में अनवार इब्राहिम का उदय छात्र राजनीति की देन माना जाता है। वे मलेशिया में इस्लामिक युवा आंदोलन के अगुवा रहे हैं। तभी लगने लगा था कि वे भविष्य में कद्दावर नेता हो सकते हैं। उन्होंने मलेशियाई युवाओं में विशिष्ट पहचान बनायी। जो कालांतर उनकी करिश्माई छवि गढ़ने में सहायक भी बनी। उनकी शुरुआती सधी राजनीति का प्रमाण उनका मलेशिया के मुख्य राजनीतिक दल यूनाइटेड मलय नेशनल ऑर्गेनाइजेशन से जुड़ना माना जाता है। जिससे मलेशिया की राजनीति में उनका कद तो ऊंचा हुआ लेकिन दल के महत्वाकांक्षी नेता उन्हें चुनौती के रूप में भी देखने लगे। यहां तक कि दल के मुखिया महातिर मोहम्मद के बाद दूसरे नंबर के नेता में देखे जाने लगे। कयास लगे कि भविष्य में वे महातिर मोहम्मद के विकल्प बन सकते हैं।
लेकिन बीसवीं सदी के आखिरी सालों में आर्थिक संकट में आये मलेशिया की सरकारी आर्थिक नीतियों व भ्रष्टाचार के मुद्दे पर उनके व महातिर मोहम्मद के बीच टकराव की स्थिति बन गई। फिर उन्हें डिप्टी के पद से हटा दिया गया। लेकिन जब उन्होंने सरकार के खिलाफ विपक्षी आंदोलन की अगुवाई की तो वे सत्ताधीशों की आंखों का कांटा बन गये। फिर अनवार इब्राहिम को बंदी बना लिया गया। पहले उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। जब उससे अदालत ने उन्हें बरी कर दिया तो भी सोडोमी के आरोप लगा दिये गये। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस कार्रवाई की खासी आलोचना हुई। जिसे राजनीतिक बदले की भावना से की गई कार्रवाई बताया गया। इतना ही नहीं उनकी रिहाई को लेकर देश में उग्र प्रदर्शन भी हुए।
अनवार कहते रहे कि महत्वाकांक्षी महातिर उन्हें अपने रास्ते से हटाने के लिये साजिशें रच रहे हैं। फिर वर्ष 2003 में महातिर मोहम्मद के सत्ताच्युत होने के बाद मलेशिया के सुप्रीम कोर्ट ने अनवार के खिलाफ आरोपों को नकारते हुए उन्हें रिहा कर दिया। वे विपक्ष का नेतृत्व करते रहे लेकिन साजिशों का दौर भी चलता रहा। उन पर फिर आरोप लगे लेकिन 2012 में अदालत ने फिर आरोप मुक्त कर दिया। लेकिन वर्ष 2014 में चुनाव लड़ने की तैयारी के दौरान आरोप फिर ताजा हुए और फिर गिरफ्तारी हुई।
कालांतर मलेशिया के राजनीतिक परिदृश्य में फिर अप्रत्याशित बदलाव हुए। राजनीति से किनारा कर चुके महातिर मोहम्मद की राजनीतिक महत्वाकांक्षा फिर 92 साल की उम्र में जाग्रत हुई। लेकिन सत्ता की कामधेनु के लिये राजनीतिक समर्थन की जरूरत थी। उन्होंने जेल में बंद अनवार इब्राहिम को सत्ता की चाबी हासिल करने के लिये दोस्त बना लिया। वे जानते थे कि जनता व विपक्ष में अनवार इब्राहिम की लोकप्रियता बरकरार है। जिसके सहारे वे सत्ता की चाबी हासिल कर सकते हैं। निस्संदेह, राजनीति में कोई स्थायी शत्रु-मित्र नहीं होता। यही वजह है कि वर्ष 2018 के चुनावों में इस राजनीतिक गठबंधन को आशातीत सफलता मिली। इस गठबंधन सरकार में शामिल चार दलों में भारतीय मूल के लोगों की भी भागीदारी थी। सरकार बनने के बाद न केवल अनवार को रिहाई मिली बल्कि सरकार ने आरोपों से भी बरी कर दिया। लेकिन उम्र के दसवें दशक में सत्ता के मोहपाश में बंधे महातिर ने वायदा करके भी अनवार इब्राहिम को सत्ता की बागडोर नहीं सौंपी। कालांतर महातिर को इस्तीफा देना पड़ा और गठबंधन टूट गया। वर्ष 2022 में मध्यावधि चुनाव के बाद इब्राहिम के गठबंधन को सफलता मिली। फिर मलेशिया के राजा ने इब्राहिम को प्रधानमंत्री नियुक्त करके उनके राजनीतिक वनवास को खत्म कर दिया।