पुष्परंजन
पाकिस्तान, संयुक्त राष्ट्र महासभा में कश्मीर पर न बोले तो ख़बर है। ठीक उसी जुमले की तरह कि इनसान कुत्ते को काट ले, तो ख़बर है। मौका संयुक्त राष्ट्र महासभा की 75वीं बैठक को संबोधित करना था। इमरान ख़ान पहले से रिकार्ड किये भाषण में जम्मू-कश्मीर के पुराने राग को अलाप बैठे, वहां मानवाधिकार हनन का मुद्दा उठाया, और संघ के हिन्दुत्ववादी एजेंडे को लेकर भारत पर निशाना साधा। 25 को इमरान ख़ान बोले, और 26 सितंबर को अपने आभासी वक्तव्य में प्रधानमंत्री मोदी ने ग्लोबल आतंकवाद से लड़ने के वास्ते एकजुटता का आह्वान किया। पाकिस्तान को थोड़ा-सा आईना पीएम मोदी ने भी दिखाया।
ताइवान समेत पूरी दुनिया में 196 स्वतंत्र देश हैं। इनमें से 193 देश यूएन के सदस्य हैं। संयुक्त राष्ट्र के 75वें स्थापना दिवस समारोह पर कोविड ने कैसे पानी फेर दिया, उसे लेकर मायूसी साफ दिखती है। 29 सितंबर तक सारे शासन प्रमुख प्री-रिकार्डेड बयानों के ज़रिये संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करेंगे, इस बारे में जुलाई, 2020 में फैसला ले लिया गया था। 75वें स्थापना दिवस की एक मर्यादा होती है। संयुक्त राष्ट्र के इस ऐतिहासिक अवसर को दरकिनार कर कश्मीर को मुद्दा बनाना इमरान ख़ान की कूटनीतिक क्षुद्रता ही कही जाएगी।
इमरान ख़ान का भाषण जब स्क्रीन पर चल रहा था, संयुक्त राष्ट्र में भारतीय मिशन के प्रथम सचिव मिजितो विनितो सभागार छोड़कर बाहर निकल गये थे। मिजितो ने संयुक्त राष्ट्र में ‘राइट टू रिप्लाई‘ का इस्तेमाल करते हुए कहा कि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर भारत का अविभाज्य अंग है। कश्मीर पर कोई भी संवैधानिक बदलाव भारत का आंतरिक मामला है। पाकिस्तान ने जिस कश्मीर को अपने कब्जे में कर रखा है, उसे तत्काल छोड़ने की मांग भारत करता है। भारतीय मिशन के प्रथम सचिव मिजितो विनितो ने यह भी कहा कि पाकिस्तान वही देश है जो दहशतगर्दों को फंड और ट्रेनिंग देता है, यह वही इमरान ख़ान हैं, जिन्होंने ओसामा बिन लादेन को अपनी संसद में दिये बयान में ‘शहीद‘ का दर्जा दिया था। कुल मिलाकर, भारत ने बयानों के ज़रिये इमरान खान की अच्छी धुलाई कर दी।
पाकिस्तान का लक्ष्य कश्मीर के बहाने केवल भारत को मानवाधिकार हनन वाला देश साबित करना है, ताकि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की स्थाई सीट के वास्ते दावेदारी को कमज़ोर किया जा सके। हाथ में हर वक्त कटोरा थामे और क़र्ज़ से लदा पाकिस्तान भी सुरक्षा परिषद में परमानेंट सीट का दावेदार है, इससे बड़ा कूटनीतिक प्रहसन हो नहीं सकता। माज़ी में पाकिस्तान ‘यूएनएससी नॉन मेंबर सीट’ के वास्ते सातवीं बार चुना गया था। 18 जून 2020 को भारत 2021-22 के लिए आठवीं बार चुना गया।
‘यूएनएससी नॉन मेंबर सीट’ की अवधि दो साल के वास्ते होती है। जापान 11 बार, ब्राज़ील 10 दफा और जर्मनी चार बार चुने जा चुके हैं। इससे पहले भारत 2011-12 में ‘यूएनएससी नॉन मेंबर सीट’ के वास्ते सातवीं बार चुना गया था। उस समय भारत को 97.9 प्रतिशत वोट मिले थे। इस बार भारत को 95.8 फीसद वोट मिले हैं। उसमें सबसे उल्लेखनीय 55 सदस्यीय एशिया-प्रशांत समूह का संपूर्ण वोट मिलना भी रहा है। पाकिस्तान के लिए यह सब कष्ट का कारण है, इसलिए कश्मीर के बहाने केवल वह कीचड़ उछालता रहा है। इस बार पाकिस्तान ने दक्षेस की चर्चा भी महासभा की बैठक के दौरान छेड़ दी, ताकि भारत की छवि यह बने कि एक क्षेत्रीय संगठन का भट्टा नयी दिल्ली की वजह से बैठ गया।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के ढांचे में बुनियादी परिवर्तन हो, इस वास्ते 2005 में ‘जी-फोर’ की बुनियाद रखी गई थी। उस समय संयुक्त राष्ट्र महासभा में 60वीं वर्षगांठ मनाई जा रही थी, जब जापान, जर्मनी, भारत, ब्राज़ील के तत्कालीन शासन प्रमुखों ने इस समूह का गठन किया था। ये चारों देश एक-दूसरे की दावेदारी का समर्थन करते हैं। यह समझने की आवश्यकता है कि जर्मनी की दावेदारी रोकने के वास्ते इटली और स्पेन आड़े आते हैं। ब्राज़ील को रोकने के लिए मैक्सिको, कोलंबिया और अर्जेंटीना हैं। दक्षिण कोरिया बिल्कुल नहीं चाहता कि जापान को यह अवसर मिले।
यह बात अरसे से उठाई जा रही है कि केवल चीन, अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और रूस को वीटो का अधिकार क्यों हो? यूएनएससी में अफ्रीक़ा, दक्षिण अमेरिका, आस्ट्रेलिया, अंटाकर्टिका से कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। यूरेशिया में रूस मिलाकर तीन देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के परमानेंट मेंबर हैं और शेष एशिया से केवल एक प्रतिनिधि। यह ध्यान देने वाली बात है कि पांच में से चीन को छोड़कर बाक़ी चार देश अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और रूस बयान दे चुके हैं कि भारत को सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्य देश का दर्जा मिलना चाहिए।
1997 से 2006 तक संयुक्त राष्ट्र के महासचिव रहे कोफी अन्नान भी सुरक्षा परिषद में सुधार चाहते थे। 21 मार्च 2005 को कोफी अन्नान ने एक पूरा प्रोजेक्ट रखकर यह उम्मीद जगा दी थी कि सुरक्षा परिषद में स्थाई सीट का विस्तार होगा। उस समय उन्होंने प्लान ए और बी सामने रखा था। कोफी अन्नान के प्लान ए के अनुसार, ‘15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद की संख्या 24 कर दी जाए, जिसमें छह नये स्थाई सदस्य और तीन नये नाॅन परमानेंट सदस्य देश शामिल किये जाएं।’ प्लान बी में यह था कि आठ नये परमानेंट सदस्य चार-चार वर्षों के वास्ते सुरक्षा परिषद में चुने जाएं। इनके साथ एक नॉन परमानेंट सदस्य हो। मगर, यह मामला किंतु-परंतु में उलझ कर रह गया।
इस बार पीएम मोदी ने सवाल उठाया कि पूरा विश्व पिछले आठ-नौ महीने से कोविड की लड़ाई लड़ रहा है। इस लड़ाई में संयुक्त राष्ट्र कहां है? एक प्रभावशाली रिस्पांस कहां है? पीएम मोदी ने भारत की कई उपलब्धियां गिनाईं। कहा, ‘जब हमने 60 करोड़ लोगों को खुले में शौच से मुक्ति दिलाई, 40 करोड़ लोगों के बैंक खाते खुलवाये। 6 लाख गांवों को आप्टिकल फाइबर से जोड़ने और 15 करोड़ घरों को पानी का पाइपलाइन देने जा रहे हैं, ऐसे में पांच सदस्यीय परमानेंट सीट का विस्तार कर भारत को जोड़ने में देरी का औचित्य क्या है?’ यों, यह तर्क चुनावी मंच पर तो ठीक लगता है। मगर, यूएन? सवाल यह भी है कि क्या सचमुच कोविड जैसी महामारी से निपटने और उससे जनित विश्वव्यापी मानवीय संकट से मुक़ाबले में संयुक्त राष्ट्र की कोई भूमिका नहीं रही है? कोविड-19 से लड़ने के वास्ते यूएन क्या कर रहा है, उसका ब्योरा उसकी वेबसाइट पर है। 7 अप्रैल 1948 को स्थापित विश्व स्वास्थ्य संगठन जो कुछ कर रहा है, उसमें संयुक्त राष्ट्र की सहमति बिल्कुल होती है!
लेखक ईयू-एशिया न्यूज़ के नयी दिल्ली संपादक हैं।